|
द डा. रवीन्द्र अग्रवालउत्तर प्रदेश शासन ने निर्णय किया है कि जिन विद्युतीकृत गांवों में 25 वैध कनेक्शन नहीं हैं, वहां से लाइनें व ट्रांसफार्मर हटवा लिए जाएं। शासन को यह निर्णय लेने से पूर्व यह सोचना चाहिए था कि किसी गांव में 25 कनेक्शन भी क्यों नहीं लिए जा सके? स्पष्ट है कि गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बिजली के कनेक्शन का खर्च वहन कर सकंे। होना तो यह चाहिए था कि विद्युत विभाग गांव के सभी परिवारों को बिजली के कनेक्शन लेने के लिए प्रेरित करता। परन्तु हो इसका उलटा रहा है। 25 कनेक्शन न होने की स्थिति में गांव को अन्धकार के गर्त में धकेला जा रहा है।अब ऐसे गांवों को निकट भविष्य में बिजली के प्रकाश की आशा नहीं करनी चाहिए जिन गांवों की बिजली की तारें दण्ड स्वरूप समेट ली गईं हैं। इन गांवों को उस पूरी दुनिया से काटा जा रहा है जिसके विकास का आधार विद्युत आपूर्ति है।उत्तर प्रदेश शासन इन गांवों को विकास की मुख्यधारा से काटकर इन्हें किस बात का दंड दे रहा है-इनके पिछड़पन का या विद्युत विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और उसके नाकारापन का?अगर किसी गांव से बिजली की तारें केवल इसलिए समेटी जा रही हैं कि उस गांव के 25 परिवार भी बिजली का कनेक्शन लेने में समर्थ नहीं है तो उन्हें उनके पिछड़ेपन की सजा देना किसी भी प्रकार से न्यायसंगत नहीं है। इन गांवों की बिजली काट कर इन्हें विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग किया जा रहा है। यह कैसा विरोधाभास है? एक ओर तो गांवों के विकास की बात कही जा रही है और दूसरी ओर किसी गांव को विकास की मुख्यधारा से इसलिए काटा जा रहा है कि वहां 25 परिवारों में बिजली का कनेक्शन लेने की सामथ्र्य नहीं है। अगर विकास के ऐसे ही मानदण्ड अपनाए जाएं तो कुछ गांव ही नहीं, मानव विकास के मानदण्डों के आधार पर पिछड़ रहा पूरा प्रदेश ही अलग-थलग पड़ जाएगा और प्रदेश में पिछड़ेपन का अन्धकार पैर पसार लेगा।जो विकसित है, समृद्ध है, उसे विकास और साधन उपलब्ध कराने का कोई विशेष महत्व नहीं है। महत्व तो इस बात का है कि साधनहीन को कितने साधन उपलब्ध कराए गए जिससे कि वह विकास की दौड़ में अन्यों के समकक्ष खड़ा हो सके। उत्तर प्रदेश शासन जो करने जा रहा है वह बाजारवादी व्यवस्था का अंग तो हो सकता है, किसी संवेदनशील शासन का नहीं। लोकतंत्र ही नहीं राजतन्त्र में भी राजा अपनी प्रजा की सुख-सुविधा का ध्यान रखते थे। सड़के बनवाते थे, पेयजल की व्यवस्था करते थे। सिंचाई के साधन उपलब्ध कराते थे। अगर ऐसा न होता तो देश में न तो शेरशाह सूरी मार्ग(जीटी रोड) होता और न ही राजस्थान में स्थान-स्थान पर विशाल सरोवर।हां, अगर मामला गांव में चल रहे अवैध कनेक्शनों का है तो निश्चित मानिए यह अवैध कनेक्शन विद्युत विभाग के भ्रष्ट अफसरों के कारण हैं जो गांव वालों से नियमित तौर पर वसूली करते हैं। भ्रष्ट अफसरों की सजा गांव वालों को क्यों? गांव वाले अपनी मर्जी से तो ऐसा नहीं करते। अक्सर देखने में आया है कि जो ग्रामीण वैध कनेक्शन लेकर काम करना चाहता है उसे बिजली चोरी के आरोप में फंसा दिया जाता है। ऐसे में उसकी मजबूरी बन जाता है अवैध कनेक्शन लेना और अफसरों को पैसा देना। तो भ्रष्ट अफसरों की सजा गांव वालों को क्यों? सजा देनी है तो बिजली विभाग के मुख्य अफसरों को दी जाए। इसके बिना बिजली विभाग सुधरने वाला नहीं और न ही प्रदेश का विकास होने वाला है। द13
टिप्पणियाँ