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— डा. हर्षवर्धन
पिछले लेखों में मैंने भोजन से जुड़े अनेक विषयों पर बातचीत की है। आज भी चर्चा का यही विषय है। आप भी सोचते होंगे कि यह विषय समाप्त क्यों नहीं हो रहा है? मेरा मानना है कि अभी तो केवल विषय की जानकारी की शुरुआत ही हुई है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पोषण तत्वों से सम्बंधित जानकारी प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। उसके लिए हमें अभी अनेक बार और आपसे बात करनी होगी, लेकिन मैं आपको विश्वास दिला सकता हूं कि अगर आपने हमसे अपने परिवार की पोषण सम्बंधी जानकारी ईमानदारी से ली होगी तो बीमारी के विरुद्ध युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण भाग आप बिना किसी चिकित्सक या चिकित्सालय की सहायता के जीत चुके होंगे। क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में 87 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं खून की कमी अर्थात् एनीमिया से प्रभावित हैं और इन प्रभावित माताओं में से 8 प्रतिशत के लिए यह गंभीर और जानलेवा रोग बन जाता है। आज हम इन गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में पूरी तरह स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक भोजन के सेवन से सम्बंधित विषय पर चर्चा करेंगे। गर्भकाल में पोषक तत्वों की आवश्यकता बहुत अधिक होती है, इसलिए गर्भ में विकसित हो रहे बच्चे को इन पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अतिरिक्त भोजन करना जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान लौह तत्व की प्रचुर मात्रा से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए। शरीर में लौह तत्व की आवश्यकता हीमोग्लोबिन को बनाने, मस्तिष्क के विकास तथा शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता की अभिवृद्धि के लिए आवश्यक होती है और लौह तत्वों की कमी के कारण एनीमिया का प्रकोप होता है। गर्भावस्था के दौरान लौह तत्वों की कमी मृत्युदर को बढ़ाती है और कम वजन के बच्चों के जन्म को प्रोत्साहन देती है। इनकी कमी से प्रभावित बच्चों में अनेक प्रकार के संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। फलियों, सूखे मेवों तथा पत्तीदार हरी शाक-सब्जियों में लौह तत्व विद्यमान होते हैं। यद्यपि यह तत्व मांस-मछली तथा कुक्कुट उत्पादों से भी प्राप्त किया जा सकता है परन्तु जहां तक संभव हो शाकाहारी भोजन, शाक-सब्जियों, फलों व दूध को ही भोजन में प्राथमिकता देनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को अनाज के साबुत दाने, अंकुरित चने तथा किण्वित (फरमेंटेड) खाद्य पदार्थ का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए तथा तम्बाकू का प्रयोग तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए शराब तथा किसी भी योग्य चिकित्सक के निर्देश के बिना किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से बचना चाहिए। गर्भावस्था में गर्भ ठहरने के 14-16 सप्ताह के बाद लौह तथा कैल्श्श्वियम की गोली तथा कैप्सूल अवश्य लेने चाहिए तथा इन्हें बच्चे को दूध पिलाने की अवधि के दौरान भी जारी रखना चाहिए। बच्चे में हीमोग्लोबिन के लिए फोलिक एसिड की भी लौह तत्व की तरह आवश्यकता होती है और यह बच्चे के भार को बढ़ाता है तथा बच्चे में जन्मजात होने वाली असंगतियों को कम करता है। पत्तीदार हरी शाक सब्जियां, फलियां इत्यादि फोलिक एसिड के अच्छे स्रोत हैं। गर्भवती महिला को चाहिए कि शिशु को पहले छह महीनों में केवल स्तन से प्राप्त आहार (दूध) का ही सेवन कराए। शिशु के स्वास्थ्यकर विकास के लिए माता का दूध सबसे अधिक प्रभावी, स्वास्थ्यवद्र्धक व सम्पूर्ण आहार है तथा पीयूष दूध (कोलस्ट्रम) में प्रचुर मात्रा में पोषक तथा प्रति-संक्रामककारक तत्व होते हैं। प्रसव के एक घंटे के अंदर ही बच्चे को मां का दूध देना चाहिए तथा पीयूष दूध को कभी फेंकना नहीं चाहिए। स्तन पान गर्भाशय के आकुंचन में भी सहायक होता है तथा जनन क्षमता पर नियंत्रण कर यह संतति-अंतराल में सहायक होता है। वैज्ञानिक तथ्यों से अब यह भी सिद्ध हो गया है कि दुनिया में हर आठ में से एक महिला को स्तन का कैंसर है। ऐसे भयानक आंकड़ों के बावजूद यह सत्य है कि स्तन पान कराने वाली माताओं में स्तन कैंसर होने की संभावना कम होती है। बच्चों को संपूरक आहार प्रारम्भ करने के बाद भी दो वर्ष तक स्तन पान निरन्तर जारी रखा जा सकता है और यह हितकर भी है।
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हमारे विशेषज्ञ
1. डा. हर्षवर्धन, (एम.बी.बी.एस., एम.एस.) नाक, कान एवं गले के देश के सुप्रसिद्ध चिकित्सक हैं। वह दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं। सम्प्रति वि·श्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण एशिया के सलाहकार हैं।
2. डा. इन्द्रनील बसु राय, (एम.बी.बी.एस., एम.डी.) कलकत्ता के सुप्रसिद्ध ह्मदय रोग विशेषज्ञ हैं।
3. डा योगेन्द्र सिंह, (आयुर्वेदाचार्य) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली कार्यालय स्थित केशव चिकित्सालय एवं विश्व हिन्दू परिषद् के मुख्यालय रामकृष्णपुरम्, नई दिल्ली स्थित चिकित्सालय के मुख्य चिकित्साधिकारी हैं।
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आरोग्य चर्चा
द्वारा सम्पादक, पाञ्चजन्य
संस्कृति भवन, झण्डेवाला
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