आयुर्वेद पर गुलाम की तलवार?
|
अब तिब्बिया कालेज बना सेकुलर राजनीति का अखाड़ा
आलोक गोस्वामी
देश की राजधानी दिल्ली के दिल में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों की शिक्षा देने वाला तिब्बिया कालेज सेकुलर मनमोहन सरकार के धुर सेकुलर स्वास्थ्य मंत्री (पूर्व मुख्यमंत्री, जम्मू- कश्मीर) गुलाम नबी आजाद की लापरवाही और सेकुलर सोच की राजनीति का नया अखाड़ा बन गया है। 90 से ज्यादा सालों से आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा की पढ़ाई के प्रमुख केन्द्र तिब्बिया कालेज में आजाद के मंत्रालय के “आयुष” विभाग की हेकड़ी के चलते आयुर्वेद चिकित्सा की पढ़ाई के बी.ए.एम.एस. कोर्स में 2011-12 के लिए दाखिलों पर तलवार लटक गई है। बी.ए.एम.एस.की 40 सीटों और स्नातकोत्तर (एम.डी.) की 3 सीटों पर 2011-12 के लिए नए दाखिले नहीं करने का फरमान जारी कर दिया गया है, जिसके पीछे वजह शिक्षकों की कमी बताई गई है, जबकि कालेज के प्रधानाचार्य डा.अहमद यासीन और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री डा.अशोक कुमार वालिया के पत्रों की मानें तो, कमी कब की पूरी की जा चुकी है। दिलचस्प बात तो यह है कि जो खामियां आजाद के तहत “आयुष” विभाग ने आयुर्वेद कोर्स में दाखिले न करने के तहत गिनाई थीं, वैसी ही खामियां यूनानी कोर्स में भी थीं, पर यूनानी के लिए आजाद का सेकुलर दिल पसीजना ही था, सो उसमें नए दाखिलों की छूट दे दी गई।
महज संदर्भ के लिए बता दें कि आयुर्वेद चिकित्सा पर हिन्दू धर्म शास्त्रों में काफी वर्णन है, धनवंतरी ने आयुर्वेद चिकित्सा युगों पहले आरंभ की थी। उधर यूनानी चिकित्सा पद्धति पढ़ाने वाले लगभग सभी शिक्षक और अधिकांश पढ़ने वाले मुस्लिम समुदाय से आते हैं। दिल्ली सरकार के तहत और भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की सरपरस्ती में तिब्बिया कालेज से जुड़े इस मौजूदा विवाद की शुरुआत “आयुष” विभाग देखने वाले अवर सचिव अंशुमन शर्मा के 21 अक्तूबर 2010 के उस पत्र से मानी जा सकती है जिसमें उन्होंने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव को लिखा था कि तिब्बिया कालेज में आयुर्वेद कालेज का कोई प्रधानाचार्य नहीं है इसलिए वे 31 दिसंबर, 2010 तक प्रधानाचार्य की नियुक्ति करें। यह स्वास्थ्य सचिव के उस पत्र (4 अक्तूबर, 2010) के जवाब में था जो 2010-11 के लिए बी.ए.एम.एस. में दाखिलों की सशर्त अनुमति के लिए लिखा गया था। इसके बाद 29 जुलाई 2011 को जनाब अंशुमन शर्मा ने तमाम आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा कालेजों के प्रधानाचार्यों/डीन/निदेशकों को चिट्ठी के जरिए सूचित किया कि मध्य अप्रैल 2011 तक सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन का दल सबका निरीक्षण करके मध्य मई 2011 तक केन्द्र सरकार को अपनी पड़ताल और सुझावों की जानकारी देगा। संबंधित पक्षों की सफाई सुनने के बाद “आयुष” 2011-12 के लिए दाखिलों, कुछ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, “कट आफ” तारीख 31 अक्तूबर 2011 से पहले निर्णय लेकर बता देगा।
बहरहाल, सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन की टीम के सुझावों का उल्लेख करते हुए “आयुष” ने 5 अगस्त 2011 को तिब्बिया कालेज को पत्रक भेजा कि 25-26 अप्रैल 2011 को टीम ने कालेज जाकर हालात का मुआयना करके 30 मई 2011 को केन्द्र सरकार को सुझाव दिया कि 2011-12 के लिए बी.ए.एम.एस. में दाखिले न किए जाएं। अवर सचिव के पत्रक में कालेज में 36 योग्य शिक्षकों की जगह बस 29 योग्य शिक्षक होने, स्नातकोत्तर में 10 प्रोफेसर/रीडर की जगह बस 4 होने का जिक्र करते हुए लिखा गया कि कालेज योग्यता की शर्तें पूरी नहीं करता, लिहाजा कालेज को बी.ए.एम.एस. की 40 सीटों के लिए 2011-12 के दाखिले की अनुमति न देने का फैसला किया गया है। इसके अलावा तीन-तीन सीटों वाले दो स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों यानी “क्रिया शरीर” और “काया चिकित्सा” में भी 2011-12 के लिए दाखिले न किए जाएं। लेकिन, पत्रक में कहा गया कि, 30 नवम्बर 2011 तक कालेज ये खामियां पूरी कर ले तो टीम की पड़ताल के आधार पर 2012-13 के लिए दाखिलों की सशर्त अनुमति दी जा सकती है।
फिर 10 अक्तूबर 2011 को तिब्बिया कालेज के प्रधानाचार्य डा.अहमद यासीन ने 13 पन्नों में आयुर्वेद के तमाम शिक्षकों का ब्योरा देते हुए “आयुष” को लिखा कि फिलहाल आयुर्वेद में 38 शिक्षक हैं जो 40 सीटों के आयुर्वेद पाठ्यक्रम को पढ़ाने की न्यूनतम तादाद की शर्तें पूरी करते हैं। प्रोन्नति के बाद उच्च शिक्षा के लिए 4 प्रोफेसर और 9 एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इसलिए अब न्यूनतम योग्यता पर खरे उतरने के कारण कालेज को बी.ए.एम.एस. और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में 2011-12 के लिए दाखिलों की अनुमति दी जाए। पाञ्चजन्य से बात करते हुए डा.अहमद यासीन ने कहा कि उनके कालेज में जो खामियां गिनाई गई थीं उनको पूरा करने के बाद वे खुद पत्र लेकर “आयुष” को दे आए थे। पर अभी तक वहां से कोई जवाब नहीं आया है। 13 अक्तूबर 2011 को दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री डा.अशोक वालिया ने भी गुलाम नबी के नाम चिट्ठी लिखकर कालेज द्वारा न्यूनतम योग्यता पूरी कर लेने पर आयुर्वेद चिकित्सा में 2011-12 के लिए दाखिलों की अनुमति देने को कहा था। इसके बाद फिर 21 अक्तूबर 2011 को “आयुष” के अंशुमन शर्मा ने तिब्बिया कालेज के प्रधानाचार्य डा.यासीन को एक और चिट्ठी भेजकर कहा कि केन्द्र सरकार ने कालेज को बी.ए.एम.एस. की 40 सीटों पर और स्नातकोत्तर में 2011-12 के लिए दाखिलों की अनुमति न देने का फैसला किया है। कारण वही बताया कि, पढ़ाने वालों की कमी है। जबकि डा.यासीन का पत्र, मय शिक्षकों की फेहरिस्त, 10 अक्तूबर 2011 को भेजा जा चुका था। उस पत्र पर क्या गौर नहीं किया गया? ध्यान दें कि अंशुमन की चिट्ठी दिल्ली से 21 अक्तूबर 2011 को चली और दिल्ली में ही तिब्बिया कालेज में 27 अक्तूबर 2011 को पहुंची। दिल्ली के दिल्ली में चिट्ठी, वह भी बेहद महत्वपूर्ण, को पहुंचने में 7 दिन लगे! या जान बूझकर लगाए गए?
फिलहाल स्थिति यह है कि 40 सीटों के लिए 300 से ज्यादा छात्रों ने अर्जियां भेजी थीं। काउंसिलिंग के लिए 28 और 31 अक्तूबर के दिन तय किए गए और उन छात्रों की अंतिम सूची बनाई जा चुकी है जिन्हें 2011-12 के लिए दाखिला देना है। यह प्रक्रिया प्रधानाचार्य ने निश्चित ही इस आश्वस्ति के बाद की होगी कि न्यूनतम योग्यताएं पूरी कर लेने के बाद अब “आयुष” के पास शिकायत का कोई मौका नहीं होगा। लिहाजा, सोचा होगा कि अनुमति अब मिली कि तब मिली। पर आखिरकार अभी तक नहीं मिली गुलाम नबी की अनुमति। आयुर्वेद पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य अधर में लटका है, साथ ही, आने वाले समय में आयुर्वेद की पढ़ाई ही धीरे-धीरे खत्म करने की सेकुलर सोच हावी होने की भी आशंका है। डीन डा.रजनी सुषमा ने पाञ्चजन्य से बात करते हुए मौजूदा अड़चन पर खेद जताया और कहा कि हमने अपनी तरफ से पूरी कार्रवाई की थी, खामियां दुरुस्त कर ली गई थीं, लेकिन बी.ए.एम.एस. में दाखिले की हरी झंडी अभी तक नहीं दी गई है।
डा.यासीन का कहना है कि हर पाठ्यक्रम के दाखिले के लिए एक ही पैमाना होना चाहिए था। “आयुष” ने अड़चन क्यों डाली, समझ से परे है। डा.यासीन ने कहा कि वे खुद और दूसरे लोग भी, “आयुष” के कई चक्कर काट चुके हैं, पर जहां के तहां हैं। बस चिट्ठियां भेजी जाती रही हैं। डा.यासीन ने चिंता भी जताई कि ऐसे तो आयुर्वेद की पढ़ाई पर तलवार लटक जाएगी।
गुलाम नबी के विभाग के अड़ियल रवैए को देखते हुए इसमें शक नहीं कि तिब्बिया कालेज में आयुर्वेद की कक्षाओं पर ताले लटकाने की जुगत भिड़ाई जा रही है। यूनानी पाठ्यक्रम के भी शिक्षकों की कमी थी, पर खामी “एडजस्ट” कर ली गई, उसमें दाखिले होंगे। कौन सा कालेज है जिसमें पढ़ाने वालों की किसी न किसी विभाग में कमी नहीं रहती, पर क्या उस वजह से किसी कालेज में उस पाठ्यक्रम के नए दाखिले नहीं होते? तिब्बिया कालेज के मौजूदा विवाद पर एक वर्ग है जो मानता है कि गुलाम नबी योजनाबद्ध तरीके से आयुर्वेद की छुट्टी कराने में जुटे हैं और निश्चित ही उनके इशारे पर “आयुष” एक के बाद एक चिट्ठी भेजकर नित नए पैंतरे चल रहा है। द
टिप्पणियाँ