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सिरमौर (हिमाचल) का प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री बालासुंदरी मंदिर
आंचल भरता है
अभिनव
शक्ति की आराधना का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। कहा जाता है कि शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा को सभी देवताओं ने अपनी शक्ति का अंश प्रदान किया है। शक्ति का जन्म दुष्टों के वध व जनमानस के कल्याण के लिए ही हुआ है। यही कारण है कि आमजन में माता के प्रति अगाध श्रद्धा है।
भारत वर्ष के कोने-कोने में माता के विभिन्न स्वरूपों को अलग-अलग नामों से पूजा जाता है। वैसे तो मां दुर्गा की 51 शक्तिपीठ पूरे भारत में हैं, परन्तु इन शक्तिपीठों के अतिरिक्त श्री माता के कई नाम तथा रूपों को श्रद्धालुओं द्वारा शक्तिपीठों के समान ही मान्यता प्रदान की जाती है। इन्हीं रूपों में से माता का एक प्रसिद्ध नाम “माता बाला सुंदरी” भी है। माता के इस रूप को हिमाचल प्रदेश व उत्तरी हरियाणा में कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। माता बाला सुंदरी का सबसे प्राचीन व प्रसिद्ध स्थान हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में है। हरियाणा प्रांत के अम्बाला जिले की सीमा से सटे काला अंब नामक कस्बे के निकट ही त्रिलोकपुर गांव में यह प्रसिद्ध शक्ति पिण्डी स्थापित है। शिवालिक पर्वतमाला की गोद में बसे इस गांव की छटा अत्यंत दर्शनीय है। हिमाचल का नाहन नगर यहां से लगभग 20 कि.मी. है। हरियाणा के यमुनानगर व अम्बाला से इस स्थान की दूरी 50 कि.मी. है। सड़क मार्ग द्वारा यहां सुगमतापूर्वक पहुंचा जा सकता है। त्रिलोकपुर में माता के भव्य मंदिर का निर्माण सिरमौर के शासक राजा दीप प्रकाश ने वर्ष 1573 ई. में करवाया था। यहां स्थापित माता की प्राचीन पिण्डी के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख आता है- लगभग 400 वर्ष पूर्व त्रिलोकपुर का एक व्यापारी रामदास उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से नमक लाकर यहां बेचा करता था। एक दिन माता बाला सुंदरी की मूल पिण्डी नमक की बोरी के साथ त्रिलोकपुर आ गई। व्यापारी जो नमक इस बार बेचने को लाया था वह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। यह माता का साक्षात् चमत्कार था। अत: माता ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर बताया कि मैं तुम्हारे नमक के साथ यहां आ गई हूं और तुम्हारे घर के पास स्थित पीपल के पेड़ के नीचे मेरा स्थान है। तभी तेज आंधी आई और पीपल के पेड़ की जड़ उखड़ गई। वहीं पर व्यापारी को माता की पिण्डी के दर्शन हुए। तब पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ माता को उसी स्थान पर स्थापित किया गया।
वह व्यापारी पिण्डी के ऊपर एक भव्य मंदिर का निर्माण करना चाहता था। परन्तु धन के अभाव के कारण ऐसा संभव न था। अत: उसने माता से मन ही मन प्रार्थना की, कि माता आप कोई ऐसा चमत्कार करें कि वह मंदिर निर्मित हो जाए। दैवी कृपा से सिरमौर रियासत के शासक दीप प्रकाश को स्वप्न में मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली। माता के भक्त सिरमौर नरेश ने तुरंत अपने मंत्री के द्वारा माता के स्थान का पता लगवा कर मंदिर निर्माण प्रारंभ करवा दिया। निर्माण पूर्ण होने पर राजा स्वयं माता के दरबार में उपस्थित हुए और 84 घंटियां भेंट कीं। तभी से माता का एक नाम “84 घंटियों वाली माता” भी है। सिरमौर राज्य पर गोरखा शासन के दौरान 1804 से 1815 के दौरान गोरखा सरदार रणजीत सिंह भी माता की सेवा में उपस्थित हुए।
आज त्रिलोकपुर एक भव्य शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त कर चुका है। राजा द्वारा निर्मित मंदिर भव्य गुंबदीय शैली का है। मुख्य मंदिर चारों तरफ से ऊंचे किलेनुमा परकोटे से घिरा हुआ है। विशाल व सुन्दर प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते ही बड़ा दालान है जिसके मध्य में माता का सुंदर मंदिर बना है। गुंबद के चारों तरफ भित्ति चित्र व नक्काशी की गई है। गर्भ गृह में छत्र के नीचे माता की पिण्डी विराजमान है। साथ ही माता की मनोहारी संगमरमर की मूर्ति भी स्थापित है। यहां सदैव अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित रहती है। गर्भगृह के आंतरिक भाग को रजत पत्रों द्वारा मंडित किया गया है। चांदी के दरवाजे मंदिर की शोभा में चार चांद लगा देते हैं। सामने ही माता की सवारी सिंह की विशाल प्रतिमा शोभायमान है। साथ ही बने प्राचीन हवनकुंड में हर रोज हवन होता है। मुख्य मंदिर के पाश्र्व में माता काली की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इसी प्रकार मंदिर के बाईं तरफ माता के द्वारपाल तथा दाईं तरफ माता मनसा देवी की मूर्ति है। वर्तमान में भक्तों के सहयोग के चलते मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया गया है। शिव परिवार व भैरव के नए मंदिर भी बनाए गए हैं। विशाल लंगर हाल में बड़ी संख्या में श्रद्धालु एक साथ भोजन कर सकते हैं।
महामाया बाला सुंदरी मंदिर में वर्ष में दो बार चैत्र तथा आश्विन नवरात्रों के मेले लगते हैं। अष्टमी व चौदश को भारी भीड़ दर्शन हेतु आती है। मेले के 15 दिन तक कई लाख श्रद्धालु माता के दर्शन करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल व उत्तर प्रदेश से लोग यहां आकर लंगर लगाते हैं। मेले के दौरान कई प्रकार की सांस्कृतिक व व्यापारिक गतिविधियां भी चलाई जाती हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों से परिवहन निगम की विशेष बसें चलाई जाती हैं। मंदिर का प्रबंध व व्यवस्था देखने के लिए हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्व विन्यास अधिनियम, 1984 के अन्तर्गत मंदिर न्यास का गठन किया गया है। चढ़ावे के रूप में आने वाले धन द्वारा मंदिर के साथ-साथ समस्त त्रिलोकपुर का कायाकल्प हो गया है। गांव के प्रवेश द्वार पर भव्य द्वार का निर्माण किया गया है, जिस पर माता की सुंदर प्रतिमा सुशोभित है। इसके अतिरिक्त बस स्टैंड, जलपान, गृह, निगरानी कक्ष, धर्मशाला, लंगर हॉल इत्यादि भी बनाए गए हैं।
माता के दरबार के अतिरिक्त त्रिलोकपुर में कुछ अन्य भी दर्शनीय मंदिर हैं। जैसे गांव में प्रवेश करते ही ध्यानुभक्त का सुंदर मंदिर है जिसके संबंध में मान्यता है कि माता के दर्शन से पूर्व यहां माथा टेकना आवश्यक है। थोड़ा ऊपर जाने पर भव्य सरोवर के मध्य में शिवालय के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार त्रिलोकपुर से 2 कि.मी. की पैदल चढ़ाई के पश्चात् माता ललिता देवी का प्राचीन मंदिर भी दर्शनीय है।
इस प्रकार त्रिलोकपुर में आकर भक्तों का अपनी आराध्य माता दुर्गा में अटूट विश्वास साक्षात् देखा जा सकता है। हर जाति, वर्ग के लोग, अमीर-गरीब यहां समान रूप से सिर झुकाते हैं और माता समान रूप से उनका आंचल खुशियों से भरती हैं। द
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