गत 21 नवंबर को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने 12 समाजसेवियों और संस्थाओं को ‘संत ईश्वर सेवा सम्मान’ से सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि यह सम्मान पिछले छह साल से उन समाजसेवियों को दिया जाता है, जो नि:स्वार्थ भाव से समाज सेवा में लगे हैं।
पश्चिम बंगाल के श्री सुकुमार रॉय चौधरी, कर्नाटक के श्री शांताराम बुदना सिद्धि, मेघालय के श्री हाजोंग अर्णब, झारखंड के श्री मेघा उरांव, महाराष्ट्र की डॉ. निरुपमा सुनील देशपांडे, मध्य प्रदेश के श्री आशीष कुमार गुप्ता, हरियाणा के श्री धर्मबीर चहल, कर्नाटक के श्री ए.पी. चंद्रशेखर, उत्तराखंड की साध्वी कमलेश भारती, दिल्ली के श्री चिरंजीव मल्होत्रा और गुजरात की आर्य चावड़ा को इस सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा असम की संस्था ‘रूरल हेल्थ एंड वी’, बिहार की संस्था ‘बिरसा सेवा प्रकल्प’, आंध्र प्रदेश की संस्था ‘अमृतवर्षिनी बाल कल्याण आश्रम’, महाराष्ट्र की संस्था ‘विवेकानंद सेवा मंडल’ और असम की संस्था ‘आत्मनिर्भर : एक चैलेंज’ के संचालकों को भी सम्मानित किया गया। इन सभी को सम्मानस्वरूप प्रतीक चिह्न, शॉल और प्रशस्तिपत्र दिया गया।
श्री मोहनराव भागवत ने अपने आशीर्वचन में कहा कि सेवाभाव के कारण ही मनुष्य को मनुष्य माना जाता है। सेवा का भाव मनुष्य के अंतर्मन में निहित होता है। एक संवेदनशील व्यक्ति ही सेवा कर सकता है। मनुष्य यदि संवेदनशीलता को चुनता है तो देवता बन जाता है। उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य यदि अपने मन की संवेदना की सुनता है, तो नर से नारायण हो जाता है और यदि वह अपने अंदर के अहंकार की सुनता है तो वह नर से अधम बन जाता है। सेवा करने वाला अपने लिए किसी भी तरह की अपेक्षा नहीं करता।
सेवा तो मन से की जाती है। सेवा मानवता की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि किसी भी मनुष्य में सेवा का भाव तभी आता है जब वह पूरी तरह से करुणा, सदाचार, पवित्रता और संयमयुक्त हो और किसी के विरोध में नहीं, बल्कि सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता हो।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आज यहां जिन सेवाभावियों का सम्मान किया जा रहा है, वे नि:स्वार्थ भाव से चुपचाप सेवा कार्य कर रहे हैं। ये लोग नए भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हम सभी अलग-अलग तरीके से सेवा कार्य करते हैं, लेकिन जिन्हें कोई दायित्व नहीं दिया गया हो, वे स्वयं की जिम्मेदारी निर्धारित करके काम करते हैं, वे वास्तव में सम्माननीय हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संत सम्मान फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री कपिल खन्ना ने की।
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