यदि एक आम आदमी के नशे में धुत्त होने या ड्रग्स लेने की बात सार्वजनिक हो जाए तो क्या होगा? वह अपनी नौकरी खो सकता है, परिवार बर्बाद हो सकता है और यहां तक कि उसका सामाजिक बहिष्करण हो सकता है। परंतु यदि आप फिल्मी सितारे हैं तो ड्रग्स का सेवन न केवल सिर उठाकर कर सकते हैं, बल्कि आपके आभामंडल के पीछे यह काला कृत्य ऐसे छिप जाएगा कि किसी को कभी नजर नहीं आएगा।
नशे की ऐसी आजादी किसी अन्य भारतीय के पास तो नहीं दिखती। हालांकि पूरी फिल्म बिरादरी तो नशेड़ी नहीं हो सकती। और ऐसा भी नहीं है कि हर फिल्म स्टुडियो, फिल्म सेट आदि पर ड्रग्स आसानी से मिल जाता है। परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नशा-ड्रग्स और इनके सेवन से बॉलीवुड सितारों का दशकों से गहरा याराना रहा है।
नशे और नशीले पदार्थों का महिमामंडन करने वाली फिल्मों के निर्माण में हर किसी ने बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया है। हालांकि यह अंतर करना मुश्किल है कि इसका असर उनकी निजी जिंदगियों पर भी पड़ा है या निजी जिंदगियों की रंगीली रातों और जश्न का असर ही बॉलीवुड की फिल्मों और गीतों पर पड़ा है। क्योंकि नशे में धुत्त दिखते फिल्म सितारों की पार्टीज की वीडियोक्लिप्स तो ऐसा ही कुछ दर्शाती हैं, जो आज सार्वजनिक रूप से इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।
फिल्मी गीतों में नशे का घोल
हम सब इस तरह के गीतों से परिचित हैं और बेबस हैं अपने लाडले और लाडलियों को इन पर थिरकते देखने के लिए। चार बोतल वोदका, काम मेरा रोज का…, हां मैं अल्कोहॉलिक हूं…. सरीखे गीत बताते हैं कि नशेड़ी होना और नियम से शराब का सेवन करना कितने गर्व की बात है। शराब के गीतों से दिल ऊब जाए तो चरस-गांजे और सुट्टे को समर्पित गीत हाजिर हैं।बाबाजी की बूटी… और मनाली ट्रांस… के जरिये ड्रग्स की ट्रेनिंग ली जा सकती है और बदनामी के लिए तो बाबाजी हैं ही। मैं टल्ली हो गई…, दारू देसी…, मैं शराबी…, हमकोपीनी है…, छोटे-छोटे पेग…, टल्ली हुआ…, रम एंड व्हिस्की…, दारू पीके डांस…, दारू विच डांस… इत्यादि गीतों की पूरी शृंखला है, जो यह दर्शाती है कि नशे से सराबोर गीतों और इस थीम पर आधारित फिल्मों का भविष्य बॉलीवुड में सदैव उज्जवल रहा है। अतीत में झांककर देखें तो दम मारो दम…, प्यार दो प्यार लो.. मुझे पीने का शौक नहीं… पीले-पीले ओमेरे राजा…, एक-एक हो जाए…जैसे गीत मिलते हैं।
दरअसल, अब जाकर फिल्मों के माध्यम से बड़ी आसानी और सहजता से शराब पीने का सामान्यीकरण कर दिया गया है, साथ ही पार्टी गीतों के नाम पर शराब के साथ-साथ अन्य मादक पदार्थों जैसे चरस, गांजा वगैरह को भी सामान्य जनजीवन का हिस्सा बनते देखा जा सकता है। दर्शक एक ही समय में यह देखकर हैरान हो सकते हैं कि एक तरफ कई बॉलीवुड सितारे ऐसी कुरीतियों को बढ़ावा देती फिल्मों और गीतों का हिस्सा बने नजर आते हैं, तो दूसरी तरफ से नोटू ड्रग्स की तख्ती थामे समाजसेवा की नौटंकी करते भी दिखते हैं।
मौजूदा दौर की फिल्मों में शराब के सेवन का चित्रण आम बात हो गया है। वह दौर गया जब फिल्म सेट पर शराब की बोतलों की खेप पर विलेन और उसके गुर्गों का ही एकाधिकार होता था। मौका लगा तो हीरो ने दो-चार पेग उड़ा लिये। इससे ज्यादा पेग हीरो ने उड़ाये तो समझें कि बात दिल टूटने पर आ गई है। सन् 1959 में फिल्म मैं नशे में हूं का नायक मोहन खन्ना (राज कपूर) नशे में होने की तसकीद तोकर रहा है, साथ ही माफी भी मांग रहा है। मुकेश की आवाज में इस फिल्म का गीत मुझको यारों माफ करना मैं नशे में हूं… ब्लैक एंड व्हाइट रील पर फिल्माया गया एक महफिल वाला गीत है।
आज के दौर में इस गीत का रीमेक या कहिए, रीमिक्स वर्जन बनाया जाए तो कैसे बनेगा, आप समझ सकते हैं। थोड़ा-सा और आगे बढ़ने पर दिलीप कुमार की फिल्म लीडर (1964) का गीत मुझे दुनियावालो शराबी ना समझो… याद आता है। श्वेत-श्याम से ईस्टमैन कलर यानी रंगीन पिक्चर के दौर में आलीशान पार्टीज के माहौल में फिल्माया गया यह गीत भी एक पार्टी गीत था, जो शराब के नाम पर शमिंर्दा तो कतई नहीं करता।
ऐसे और बहुत से उदाहरण हैं जब किसी वजह से शालीनता के साथ शराब या नशे का जिक्र किसी गीत में किया गया। फिर बाद की फिल्मों में पार्टी के दृश्यों, बिगड़ैल बेटा और समाज से ठुकराया कोई सज्जन सुरा सेवन को आतुर दिखाई देने लगा। शुरुआती फिल्मों में शराब की तस्करी, विलेन के अड्डे पर शराब के साथ ग्लैमर इत्यादि को जोड़ा गया। हिप्पी कल्चर, पाश्चात्य संस्कृति और नशे की गिरफ्त में आई युवा पीढ़ी पर आधारित देव आनंद की फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा (1971) में नशे से दूर रहने की बात पर बल दिया गया और बाद की फिल्मों में यानी अस्सी के दशक के आस-पास देसी शराब के भट्टे और फिर जहरीली शराब के दुष्परिणामों को भी दिखाया जाने लगा। यही वह दौर था जब फिल्मों की थीम में शराब तो थी, लेकिन चरस-गांजे के साथ हेरोइन और कोकीन जैसे नशीले पदार्थ भी व्यापक रूप से दिखाई देने लगे थे।
इसी दौर में आई संजय खान की फिल्म काला धंधा गोरे लोग (1986), फिरोज खान की जांबाज (1986) और अमिताभ बच्चन की फिल्म शराबी (1984)। संजय और फिरोज की फिल्मों में ड्रग्स की तस्करी और सेवन पर जोर था, जबकि बिग बी नाचती बोतल के जरिए मसाला मनोरंजन परोसते दिखे। लेकिन अब तक भी शराब की बात घर के बाहर की बात थी। लेकिन मिलेनियम की शुरुआत के साथ आई आमिर खान की फिल्म मेला (सुपर फ्लॉप) ने मानो पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। अपने भाई के साथ उन्होंने शराब कोकोला के माफिक पिया है। बाद में रही-सही कसर आयुष्मान खुराना की फिल्म विक्की डोनर से पूरी होगई, जिसमें एक बहू और सास रोज सांझ ढले पेग लड़ाने बैठ जाती हैं।
रीति-रिवाज मंडली ने इस चलन का खुले दिल से स्वागत किया। नतीजतन आयुष्मान की एक अन्य फिल्म ड्रीमगर्ल (2019) में अम्माजी के रूप में एक ऐसा ही किरदार देखने को मिला। पूरी बोतल गटकने को आतुर दिखाई देने वाली एक बुजुर्ग महिला के इर्द-गिर्द कॉमेडी का ताना-बाना बुना गया और लोग इसे सहजता से पचाते गए।
मुझे याद आता है दि कपिल शर्मा का एक एपिसोड जिसमें कपिल शर्मा, गेस्ट रैप सिंगर योयो हनी सिंह से चार बोतल वोदका गीत की पंक्तियों का राज पूछते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हनी सिंह ने क्या जवाब दिया, मोटी बात यह है कि शराब की बोलतों को केन्द्र रखकर ये सारी बातें एक ऐसे मंच पर हो रही थीं, जिसे करोड़ भारतीय परिवार देखते हैं। बाद में किसी ने नहीं बताया कि हनी सिंह इतने साल कहां गुम रहे। इतना ही सामने आ सका कि वे बाईपोलर विकार से जूझ रहे हैं। जरा सोचिए कि जब ऐसे गीत गाने वाले को ऐसे विकार से जूझना पड़ा तो उसके गीतों को सुन-सुनकर युवा पीढ़ी के न जाने कितने लाड़ले-लाड़लियों को कैसे-कैसे विकारों से गुजरना पड़ा होगा। यहां अकेले हनी सिंह नहीं हैं। शराब की बोतल में स्याही डाल लगभग सभी नशीले गीत लिख रहे हैं
फिल्म में कोई अश्लील सीन हो तो आप चैनल बदल देंगे, लेकिन उस गीत का क्या जिसे बच्चे कहीं भी सुन और देख सकते हैं। नशे और शराब को बढ़ावा देते ऐसे गीत हम जैसे अभिभावकों की चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। स्थिति तब और अटपटी होजाती है, जब बच्चे हमारे माता-पिता के सामने चार बोतल वोदका… गुनगुनाने लगते हैं। ऐसे गीत बनने ही नहीं चाहिए।
— संजय जैन, बिजनेसमैन, नोएडा, उत्तर प्रदेश
ऐसे गीत पहले भी बनते रहे हैं, लेकिन बहुत कम। और बने भी तोएक सभ्यता के दायरे में ताकि समाज या किसी वर्ग पर बुरा असर ना पड़े। लेकिन अब तोहद हो गई है। नाती-पोते जब नशे पर आधारित ऐसे गीतों पर हमारे सामने डांस करते हैं तोआंखें शर्म से झुक जाती हैं। उन्हें कैसे समझाएं हम लोग। लेखकों कोइस पीढ़ी कोभटकने से रोकना चाहिए।
— अशोक शर्मा, सेवानिवृत सरकारी अधिकारी, रोहिणी, दिल्ली
हमारे फिल्म सितारों कोसोचना चाहिए कि जिस तरह से युवा पीढ़ी उनके फैशन ट्रेंड्स कोअपना लेती है, ठीक वैसे ही कुछ अन्य बातों कोभी बिना कुछ सोचे-समझे फॉलोकरने लगती है। फिल्म सितारों द्वारा परदे पर या परदे के बाहर नशा करना या नशे से उनका जुड़ना, ऐसे खबरें युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव डालती हैं। बॉलीवुड कोइसका ध्यान रखना होगा।
— अभिजीत सावंत, नौकरीपेशा, मुंबई
एक अध्यापक होने के नाते हमारी चिंता और बढ़ जाती है कि हम विद्यार्थियों को नशे की तरफ जाने से कैसे रोकें। ऐसे में शराब और नशे कोबढ़ावा देते गीत मुश्किलें बढ़ा देते हैं। ऐसे गीतों के बोल के साथ-साथ उनका फिल्मांकन भी काफी उत्तेजक होता है और आजकल तोछोटी उम्र के बच्चे भी सब कुछ आसानी से कहीं भी देख सकते हैं। ये वाकई काफी चिंताजनकक है।
— अतिरेक गौड़, टीचर, दिल्ली
हम देखते हैं कई फिल्मों में सब ठीक होता है, लेकिन ड्रग्स या नशे के अत्याधिक और गहन चित्रण के चलते फिल्म को ए या यूए सर्टिफिकेट देना पड़ता है। हमें महसूस होता है कि इससे बचा जा सकता है। नशे के खिलाफ लड़ाई में जागरुकता जरूरी है। लेकिन हमें किसी चीज के महिमामंडन की बारीक लकीर कोपहचानना होगा।
— संजय शर्मा, एडवायजरी पैनल सदस्य, केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड
ये समझ से परे है कि किसी गैंगस्टर पर फिल्म क्यों बनाई जाए। उसने समाज को क्या दिया है। हमारे देश में हर क्षेत्र में इतनी प्रबुद्ध हस्तियां रही हैं कि अगले सौ वर्ष तक भी फिल्में बनाते रहे तोकम न पड़ें। धर्म, समाज, वीरों और समयकाल को लेकर भारत में विषयों की कोई कमी है क्या। माफिया, ड्रग्स और नशे की फिल्मों का चित्रण बंद होना चाहिए।
— विशाल जैन, चाटर्ड अकाउंटेंट, उदयपुर, राजस्थान
गंदे शब्दों वाले गीतों का सबसे ज्यादा खामियाजा शायद महिलाओं कोही भुगतना पड़ता है। कोई सड़क पर भद्दा गीत गाकर फब्ती कस देगा। और बाद में ये चिंता कि कहीं बच्चा ये सब न सीखने लगे। सिनेमा का काम मनोरंजन करना है न कि कदम-कदम पर चुनौतियां पेश करना।
— माधवी ठाकुर, गृहिणी, दिल्ली
हां, मैंने ड्रग्स ली है
अलग-अलग मौकों पर कई बॉलीवुड सितारों ने कबूल किया है कि वे नशे के आदी रहे हैं। अभिनेता संजय दत्त वर्षों तक नशे के आदी रहे। अपने कई साक्षात्कार में उन्होंने नशे के सेवन की बात को माना। हालांकि बाद में उन्होंने नशा करने से तौबा कर ली और एक साफ-सुथरा जीवन बिताने के लिए प्रतिबद्ध हुए। नरक के नौबरस, जी हां, वह अपने नशे के दिनों को इसी नाम से पुकारते हैं। कहा जाता है कि वह कोकीन और हेरोइन जैसे ड्रग्स के आदी थे और इनसे छुटकारा पाने के लिए टैक्सास के किसी रिहैब सेंटर में दस वर्ष तक रहे।
ताजा प्रकरण की बात करें तो अभिनेता अरमान कोहली का नाम ड्रग्स से जुड़ा पाया गया है। उनके घर से नशीले पदार्थ बरामद भी हुए हैं। वह अब जेल में हैं और बेल के लिए गुहार लगा रहे हैं। बीते साल अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में नशे के ऐंगल के जांच कर रही एनसीबी अभिनेता अर्जुन रामपाल से भी पूछताछ कर चुकी है। इस प्रकरण में एनसीबी अर्जुन की प्रेमिका एवं लिव-इन पार्टनर गैब्रिएला डेमेट्रिएड्स और उसके भाई अगिसियालोस डेमेट्रिएड्स से भी पूछताछ कर चुकी है। ब्यूरोकोअगिसियालोस के पास से हशीश और नशीली दवाओं की गोलियां (एल्प्राजोलम) बरामद हुई थीं और इसके बाद ही अर्जुन से पूछताछ की गई थी।
और फिर किसी सिंडिकेट की तरह कई कड़ियां खुलने लगीं। यह भी सामने आया कि अगिसियालोस उन ड्रग्स पेडलर्स से जुड़ा रहा है, जिनसे कथित तौर पर रिया चक्रवर्ती, शौविक, दीपेश सावंत और सैमुएल मिरांडा ने सुशांत सिंह राजपूत के लिए ड्रग्स खरीदे थे। यह सब बीते साल नवंबर माह की घटनाएं हैं और उन्हीं दिनों निर्माता फिरोज नाडियाडवाला की पत्नी सबीना सईद कोभी एक मामले में एनसीबी ने गिरफ्तार किया था, जिन्हें अगले दिन जमानत मिल गई थी। इस बीते साल में ड्रग्स और ड्रग्स माफिया के संबंध में दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर और रकुलप्रीत सिंह आदि से भी पूछताछ हो चुकी है। इसके कुछ दिन बाद टीवी की मशहूर कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिम्बाछिया के अंधेरी स्थित घर पर छापा मारा गया, जहां से बताया जाता है कि 86.50 ग्रा. गांजा बरामद किया गया था।
और ज्यादा पीछे जाकर देखें तो साल 2001 में अभिनेता फरदीन खान को कोकीन के साथ गिरफ्तार किया गया था। एक जमाने में मशहूर अभिनेत्री मनीषा कोईराला कोभी कुछ समय के लिए ड्रग्स की आदत लग गई थी। पूजा भट्ट भी कभी शराब की लत में थीं। इसी प्रकार से प्रतीक बब्बर भी बहुत छोटी उम्र में ड्रग्स लेने लग गए थे। एक इन्टरव्यू में रणबीर कपूर ने कबूल किया था कि फिल्म रॉकस्टार की शूटिंग के दौरान उन्होंने ड्रग्स ली थी। कंगना रानावत भी यह खुलासा कर चुकी हैं कि तनाव के दिनों में वह कभी ड्रग्स लिया करती थीं, लेकिन बाद नें उन्होंने इससे दूरी बना ली। नब्बे के दशक की मशहूर अभिनेत्री ममता कुलकर्णी का नाम भी ड्रग्स माफिया के साथ जुड़ा पाया गया।
क्लिप्स ने खोली कलई?
मगर यह बात कभी सामने नहीं आती कि बॉलीवुड की हाई सोसाइटी में रंगीली रातों में क्या-क्या गुल खिलाए जाते हैं। पर तकनीक का यह ऐसा युग है, जहां कुछ भी नहीं छिपता। बीते साल इन्हीं दिनों की बात है, जब बॉलीवुड और नशे के बीच संबंधों की परतें उधेड़ी जा रही थीं। तभी एक वीडियोक्लिप सामने आई, जो कथित तौर पर निर्माता करण जौहर की पार्टी की बताई जाती है। इस क्लिप में बॉलीवुड सितारे जैसे रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, विक्की कौशल, मीरा राजपूत, शकुन बत्रा, मलाइका अरोड़ा, अर्जुन कपूर, शाहिद कपूर, वरुण धवन, जोया अख्तर, अयान मुखर्जी इत्यादि दिखाई दे रहे हैं। साफ दिखता है कि कैसे ये सारे सितारे नशे में धुत्त हैं। कह नहीं सकते कि शराब के नशे या ड्रग्स के नशे में। लेकिन यह वीडियो बताता है कि इन पार्टियों में क्या होता है। बीते साल इस वीडियोके सामने आने के बाद काफी हो-हल्ला भी हुआ था, जिसके संबंध में करण जौहर ने सफाई दी थी कि उनकी पार्टी में किसी प्रकार के ड्रग्स का सेवन नहीं किया गया था औरर बाद में एफएसएल रिपोर्ट में भी उन्हें क्लीन चिट मिल गई थी।
माफिया की बड़ाई
शायद ज्यादातर लोगों को अंत तक समझ नहीं आएगा कि साल 2017 में आई फिल्म हसीना पारकर क्यों बनाई गई थी। मुंबई बम कांड सहित भारत के खिलाफ आतंकी साजिशों को अंजाम देने वाले कुख्यात आतंकी दाउद इब्राहिम की बहन की जीवनी पर फिल्म बनाने का आइडिया कौन से सावन में सूझा होगा, कहा नहीं जा सकता। शायद श्रद्धा कपूर ने यह भूमिका इसलिए निभाई हो कि वह नहीं करेंगी तो कोई और कर लेगा। बॉलीवुड की यही रीत है। क्या एक भी ऐसा कलाकार होगा, जिसने यह कहकर फिल्म में काम करने से मना कर दिया हो कि फिल्म का संबंध दाउद और उसकी बहन से है, इसलिए वह फिल्म में काम नहीं करेगा? खैर, साल 2017 तक भी हमारे कई फिल्मकारों को यही लगता होगा कि देश में प्रेरणादायी हस्तियां और महान वीरों की गाथाओं की कमी है, इसीलिए वह माफिया सरगनाओं और कुख्यातों पर फिल्में बनाते हैं। लेकिन अब यह भ्रम और कथित रूप से फैलाया गया मायाजाल टूट रहा है।
अब फिल्मकारों के पास हसीना पारकर जैसी फिल्म के जवाब में बाटला हाउस (2019) जैसी फिल्म भी है, जो गुणगान करती है अपने वीर सपूत स्व. संजीव कुमार यादव का जिनकी दिल्ली के बटला हाउस कांड में दिए गए बलिदान कोकभी नहीं भुलाया जा सकता। हालांकि माफिया और उनके सरगनाओं की बड़ाई का यह सिलसिला काफी पुराना है और मुनाफा देने वाला भी है। तभी तो मुंबई के एक नहीं दो-दो बड़े माफियाओं पर एक के बाद एक फिल्म बनीं।
कोई बता सकता है कि हाजी मस्तान और दाउद इब्राहिम की जिंदगी पर आधारित बताई गई साल 2010 में आई अजय देवगन और इमरान हाशमी की वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई या इसकी सीक्वल फिल्म वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा 2013 में आई जिसमें अक्षय कुमार और इमरान खान की मुख्य भूमिका थी, से दर्शकों को क्या हासिल हुआ? यही कि किसी अबोध बालक ने डॉन बनने तक का सफर कैसे तय किया?
शूटआउट एट लोखंडवाला (2007) हो या शूटआउट एट वडाला (2013), संजय दत्त की वास्तव (1999) हो या राम गोपाल वर्मा की कंपनी, बॉलीवुड फिल्मकारों ने माफिया को बड़े ही अच्छे तरीके से भुनाया है। खासतौर से राम गोपाल वर्मा ने, जिन्होंने सरकार, सरकार राज, डी कंपनी, सत्या, डी, अब तक 56, कॉन्ट्रैक्ट, शबरी, डिपार्टमेंट, सत्या 2, सरकार 3 सरीखी माफिया वाली फिल्मों से लंबे समय तक अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ बहुत पहले ही कर लिया था। बाकियों की दाल आजकल गल नहीं रही है।
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