भारतीय इतिहास में जिन बलिदानियों का नाम अंकित है, उनमें एक हैं बल्लभगढ़ रियासत (हरियाणा) के राजा नाहर सिंह। 1857 के आंदोलन में राजा नाहर सिंह ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। उन पर एक झूठा मुकदमा चलाया गया था और इस बहाने उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी।
भारत माता के इस परमवीर सपूत राजा को 9 जनवरी, 1858 को लालकिले के सामने चांदनी चौक में अंगेजों ने फांसी पर लटका दिया था। उनके साथ उनके विश्वस्त साथियों गुलाब सिंह सैनी, खुशहाल सिंह और भूरा सिंह को भी फांसी दी गई थी।
राजा नाहर सिंह के संघर्ष की कथा खून और आंसुओं की है। मात्र 35 वर्ष की अवस्था में उन्हें अंग्रेजों ने मार डाला और इसके बाद उनका शव भी उनके परिजनों को नहीं दिया गया। नाहर सिंह ने दक्षिण दिल्ली में डटकर अंग्रेजों से मुकाबला किया था। इस कारण उस समय कोई भी अंग्रेज दक्षिण से दिल्ली में घुस नहीं पाया था।
आगरा से आती हुई ब्रिटिश टुकड़ियों को उन्होंने मौत के घाट उतार दिया। 1857 में उन्होंने 134 दिन तक दिल्ली को अंग्रेजों से स्वतंत्र रखा था। दिल्ली की जड़ में अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोलने की हिम्मत नाहर सिंह में थी। उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज भी कांपते थे।
नाहर सिंह की वीरता को देखकर अंग्रेज बल्लभगढ़ को ‘पूर्वी लौह द्वार’ मानते थे और जल्दी उनसे लड़ने की हिम्मत नहीं करते थे। ऐसे योद्धाओं के कारण अंग्रेजों को अनेक बार लगा कि अब भारत में उनका रहना कठिन है। राजा नाहर सिंह बलिदान वाकई अनूठा तथा प्रेरणादायक है।
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