किशोर कुमार, नूतन, मदनपुरी की चर्चित फिल्म दिल्ली का ठग 1958 में आई थी। इन दिनों सोशल मीडिया पर उसके पोस्टर शेयर करके लोग पूछ रहे हैं कि इस पोस्टर को देखकर किस नेता का ख्याल आता है ? आमतौर पर इसका जवाब देने वालों की राय एक ही निकलती है। और कौन ? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल।
यदि कोई प्रकाशक तैयार हो जाए तो दिल्ली के मुख्यमंत्री के विभिन्न किस्सों पर पूरी किताब लिखी जा सकती है। अभी दिल्ली वाले बेटी के सिर पर हाथ रखकर खाई गई केजरीवाल की झूठी कसम भी नहीं भूले थे कि उन्होंने अपन पत्नी सुनीता केजरीवाल की माताजी के वचन की मर्यादा नहीं रखी। वह कभी नहीं चाहती थीं कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर बने। ऐसा मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने भाषणों में कह चुके हैं। अब जब श्रीराम मंदिर बनकर तैयार हो गया है, वे बच्चों की नानी की सारी कहानी भूल गए। वही सारी कहानी जिसे वे अपने भाषणों में दोहराते थे और जनता आंसू पोछ रही होती थी। अपने मतदाताओं का ख्याल किया होता।
दिल्ली में यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि कांग्रेस का पारंपरिक मुसलमान वोट पूरी तरह केजरीवाल को पिछले विधानसभा चुनाव में गया। इस वोट के लिए उन्होंने श्रीराम मंदिर के खिलाफ खूब भाषण किए। अब वे अपने किए हुए भाषण को भूल चुके हैं और दिल्ली के मुसलमान ठगा महसूस कर रहे हैं। वैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने छोटे से राजनीतिक कॅरियर में छोड़ा किसी को नहीं है। राजनीतिक कॅरियर ठीक से प्रारंभ भी नहीं हुआ था और केजरीवाल की ठगी के पहले शिकार हुए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे। केजरीवाल से मिले विश्वासघात से वे इतने आहत हुए कि मानों केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाकर वे किसी अज्ञातवाश को ही चले गए।
अब नया ठगी का मामला सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और आरटीआई कार्यकर्ता सुजित हिन्दुस्तानी सामने लेकर आए हैं। मामला यह है कि 117 शिक्षकों को 25—25 हजार रुपए देकर केजरीवाल सरकार को सम्मानित करना था। इस तरह कुल पुरस्कार की राशि बनती है 29.25 लाख रुपए। इस कार्यक्रम के लिए लगभग डेढ़ करोड़ रुपए योजना शाखा द्वारा आवंटित किए गए। जब इस कार्यक्रम की जानकारी सूचना के अधिकार कानून के माध्यम से सुजित ने निकाली तो 29.25 लाख रुपए के पुरस्कार वितरण कार्यक्रम पर इसके अतिरिक्त 73.23 लाख खर्च का ब्योरा मिला। मतलब पुरस्कार की कुल राशि से तीन गुना अधिक।
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ दिल्ली पर्यटन एवं परिवहन विकास निगम को 70 लाख रुपए से अधिक राशि आवंटित की गई है। मतलब 117 शिक्षकों के सम्मान समारोह के लिए हो रहे आयोजन में डीटीटीडीसी को 70 लाख रुपए से अधिक की राशि आवंटित करने की बात दिल्ली के आम आदमी को समझ नहीं आ रही। क्या इस पर 'आम आदमी' के नाम पर चलने वाली पार्टी के नेता रोशनी डालेंगे।
शिक्षा को लेकर जिस तरह विज्ञापन के माध्यम से दिल्ली सरकार ने अपनी छवि देश भर में बनाई है, उस विज्ञापन पर हो रहा खर्च यदि दिल्ली की शिक्षा के विकास पर सरकार करती तो दिल्ली थोड़ी और बेहतर हो सकती थी। 70 लाख रुपए का कोई सीधा हिसाब आरटीआई से भी नहीं मिला। जिन शिक्षकों को रोल मॉडल बनाकर दिल्ली वालों के सामने केजरीवाल सरकार पेश कर रही थी, उनके सम्मान में हो रहे कार्यक्रम में जितने पैसे खर्च नहीं किए गए। उसके दो गुने से अधिक रकम इस कार्यक्रम के लिए दिल्ली पर्यटन एवं परिवहन विकास निगम को दे दी गई।
दिल्ली सरकार में शिक्षक वेतन के लिए मुख्यमंत्री निवास के दरवाजे पर धक्के खा रहे हैं। बीत दिनों राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा के नेतृत्व में शिक्षकों का एक प्रतिनिधि मंडल अपने बकाए वेतन के सवाल पर मुख्यमंत्री से मिलने के लिए गया था। शिक्षा को लेकर बड़े—बड़े दावे करने वाली दिल्ली सरकार के मुखिया केजरीवाल इस प्रतिनिधि मंडल से मिलने तक नहीं आए। उनका ज्ञापन तक स्वीकार नहीं किया गया। क्या शिक्षा का यही मॉडल हम देश भर में लेकर जाना चाहते हैं। यह एक बड़ा सवाल हम सबके बीच है।
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