उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जहां हर दीप में गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ विराजते हैं। यह है गोरखपुर जिले में कुसम्ही जंगल स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन। यहां के सारे दीपक योगी आदित्यनाथ को समर्पित होते हैं। साल दर साल यह परंपरा ऐसी मजबूत हो गई है कि साठ साल के बुजुर्ग भी बच्चों सी जिद वाली बोली बोलते हैं। बाबा नहीं आएंगे तो 'दीया' नहीं जलाएंगे। 'बाबा' यानी गोरक्षपीठाधीश्वर 'योगी आदित्यनाथ' और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री।
करीब ढाई दशक पहले बतौर सांसद एवं गोरक्षपीठ उत्तराधिकारी के रूप योगी आदित्यनाथ ने समाज की मुख्यधारा से कटे वनटांगियों के साथ दीपोत्सव मनाने की परंपरा शुरू की थी। वह अब भी जारी है। उनकी दीपावली की शुरुआत ही इस बस्ती से होती है। सौ साल तक उपेक्षित और बदहाल रहे वनटांगिया समुदाय को नागरिक का दर्जा देने से लेकर समाज व विकास की मुख्य धारा में लाने का श्रेय 'योगी आदित्यनाथ' को ही जाता है।
ब्रितानी हुकूमत ने जंगल में बसाया
ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए ब्रिटिश सरकार ने साखू के नए पौधरोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल में बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की 'टांगिया विधि' का इस्तेमाल किया गया। इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए।
गोरखपुर-महराजगंज में 23 वनटांगिया गांव
कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं। इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग-अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे।
आजादी के बाद भी जस की तस रही स्थिति
वर्ष 1947 में देश भले आजाद हुआ था, लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी। नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं भी दूर की कौड़ी थीं। जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की इजाजत नहीं थी। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवन-यापन का कोई अन्य साधन भी नहीं था। समय-समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय इन्हें अलग से दुख देता रहता था।
नक्सली गतिविधियों पर विराम लगाने को कोशिश भी हुई
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने थे। उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं। नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी। इस काम में लगाया गया उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं एमपी कृषक इंटर कालेज व एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा को।
मुकदमा भी झेला है
वनटांगिया बच्चों को शिक्षा के जरिये समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुकदमा भी झेला है। वर्ष 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में योगी के सहयोगी वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे। वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज करा दी। योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका। हिन्दू विद्यापीठ नाम से अब यह विद्यालय आज भी योगी के संघर्षों का साक्षी है।
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