वनवासी राज्य के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड के साथ अलग छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया था। उत्तराखंड और इन दोनों राज्यों के साथ कुल तीन राज्य का गठन करने वाले तब के प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी जी जानते थे कि अपनी समृद्ध वनवासी संस्कृति के कारण छत्तीसगढ़ खासकर उसका सरगुजा और बस्तर दो संभाग विशिष्ट हैं। देश के इस सबसे भले और भोले सनातन वनवासी समूहों के भीतर अपनी विशिष्ट संस्कृति और उनकी उपासना पद्धति को हमेशा कांग्रेस ने उपेक्षा की दृष्टि से देखा है। अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही छत्तीसगढ़ अंचल हमेशा से कांग्रेस की सरकारों के लिए एक चारागाह की तरह रहा था। यहां के संसाधनों का दोहन और वनवासियों का शोषण कांग्रेस की प्राथमिकता में हमेशा शामिल रहा। अगर यह कहा जाय कि तब के छत्तीसगढ़ अंचल को कांग्रेस की सरकारों ने उपनिवेश जैसा बना कर रखा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
हालांकि वीर गुन्डाधुर का यह अंचल कभी भी कांग्रेस के लिए आसान शिकार रहा हो, ऐसी बात भी नहीं है। विद्रोही मानसिकता और अन्याय को सहन नहीं करने की वनवासियों की प्रकृति कांग्रेस को हमेशा बौखलाने पर विवश करती रही है। इसी का परिणाम था कि वनवासियों के भगवान माने जाने वाले उनके राजा प्रवीरचंद भंजदेव की अन्य वनवासी सहयोगियों के साथ कांग्रेस की सरकार ने 1966 में निरपराध गोलियों से भुनवा कर दिन दहाड़े हत्या करा दी थी। कांग्रेस सरकार द्वारा कराया जाने वाला वह सामूहिक नरसंहार कांग्रेस के तमाम बदनुमां दागों में से एक है।
कांग्रेस समेत ऐसे सभी समूहों को सबसे अधिक समस्या वनवासियों की विशिष्ट सनातन संस्कृति से है। निहित स्वार्थवश वे समूह हमेशा वनवासियों को हिन्दुओं से अलग दिखाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोड़ एक किये रहते हैं। नक्सलियों, मिशनरियों और कन्वर्जन में लगे अन्य गिरोहों का एक तरह से यह साझा एजेंडा है। इन सभी समूहों के भीतर भले अनेक मतभेद हों, लेकिन वनवासियों को सनातन से अलग करने, भय और लोभ से उनका कन्वर्जन कराने में ये सभी गुट एकजुट हो जाते हैं। ज़ाहिर है कांग्रेस के सत्ता में आते ही ऐसे सभी तत्वों के पौ बारह हो जाते हैं। हालांकि तमाम चुनौतियों और साजिशों के बीच भी वनवासी बंधुओं का अविचल अपने आराध्य के पक्ष में खड़े रहना प्रशंसनीय है।
पिछले दिनों इन्हीं वनवासियों ने अपने दिवंगत राजा प्रवीरचंद के उत्तराधिकारी राजा कमलचंद भंजदेव के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके से राजभवन में भेंट कर वनवासियों को कन्वर्जन से बचाने के लिए ज्ञापन सौंपा। कमलचंद्र भंजदेव के नेतृत्व में बस्तर संभाग के मांझी, चालकी, मेम्बर, मेम्बरिन बड़ी संख्या में उपस्थित थे। राज्यपाल स्वयं एक संवेदनशील महिला और वनवासी समाज से होने के कारण इस समस्या को काफी गंभीरता से समझती भी हैं। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को कहा भी कि इस संबंध में क्षेत्र के अन्य सामाजिक संगठनों ने भी ज्ञापन दिया है। सुश्री उईके इससे पहले भी मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और पुलिस महानिदेशक से कार्यवाही करने हेतु निर्देशित कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि वनवासी समाज में इस संबंध में जागरूकता लाना आवश्यक है कि बहलाफुसलाकर लोगों का कन्वर्जन कराना दण्डनीय अपराध है। समाज के लोगों को संगठित होकर इसे रोकने के प्रयास करने चाहिए। आज वनवासी क्षेत्र में विकास की आवश्यकता है और इस हेतु सभी को आपसी भाईचारे से रहकर प्रयास करने होंगे। कन्वर्जन की शिकायतों की जानकारी स्थानीय प्रशासन को तत्काल देना चाहिए। इस संबंध में मैं राज्य शासन को निर्देश दूंगी।” लेकिन बजाय इस दिशा में काम करने के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्यपाल के खिलाफ ही आग उगलने लगे। उनकी बौखलाहट से ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री इस मामले में किस तरफ हैं।
प्रतिनिधि मंडल ने बताई पीड़ा
वनवासी प्रतिनिधि मण्डल ने राज्यपाल को बताया कि उनके क्षेत्रों में बाहरी व्यक्ति आते हैं और कहते हैं कि तुम देवी—देवताओं को मत मानो। जब कोई बीमार पड़ता है तो प्रार्थना करने के लिए कहते हैं। अगर ठीक हो जाता है तो कहते हैं कि यह देवी-देवताओं ने ठीक नहीं किया बल्कि प्रार्थना के कारण हुआ है। उनके खिलाफ जब थाने में शिकायत की जाती है तो उल्टे शिकायतकर्ता के खिलाफ ही कार्रवाई की जाती है। कई परिवारों में कन्वर्जन के कारण विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि जबरन कन्वर्जन करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। इतनी बड़ी संख्या में वनवासियों का बस्तर से चलकर रायपुर आना कोई पहला मामला भी नहीं है। इस संबंध में पहले भी लगातार हर स्तर पर बात की जा रही थी। लगातार दो-ढाई वर्ष से हर मंच से मिशनरियों समेत कन्वर्जन करने वाली अन्य एजेंसियों के खिलाफ आवाजें उठती रही हैं। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बस्तर के सुकमा जिले के पुलिस अधीक्षक ने स्वयं संज्ञान लेते हुए बाकायदा पत्र लिखकर अपने मातहतों और शासन को कुछ माह पहले अवगत कराया था कि उनके जिले में बड़ी संख्या में ऐसी बेजा कोशिशें हो रही हैं, जिससे माहौल खराब होने का अंदेशा बना हुआ है। बावजूद इसके कांग्रेस सरकार ने किसी भी तरह का कदम उठाना मुनासिब नहीं समझा।
इसी तरह से बढ़ाए गए मनोबल का परिणाम है कि सुदूर बस्तर की कौन कहे, राजधानी रायपुर में ऐसा तंत्र बड़ी संख्या में कार्यरत है। कुछ माह पहले भय-लोभ दिखा कर कन्वर्जन करते ईसाई मिशनरी को एक हिन्दू संगठन ने रंगे हाथ पकड़ा। मिशनरी को पुलिस के हवाले किया, लेकिन दुर्भाग्य यह कि उस अपराधी को पकड़ने के बदले पुलिस ने हिन्दू कार्यकर्ताओं को ही जेल भेज दिया। और वही पुलिस के सामने खुलेआम मिशनरी ने कन्वर्जन करने में रोकने पर संविधान जलाने की धमकी दे दी। फिर भी उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी। न केवल ईसाई मिशनरी बल्कि इस्लामी ताकतों की भी इन दिनों प्रदेश में बन आयी है।
प्रदेश के कबीरधाम जैसे जिले में जो कभी राम राज्य परिषद् का गढ़ हुआ करता था, इस बार लोगों ने वहां मुहम्मद अकबर को प्रदेश में सबसे अधिक मतों से चुन कर विधायक बनाया। अकबर आज शासन के सबसे कद्दावर मंत्री हैं। वही कवर्धा हाल ही में साम्प्रदायिक दंगों की आग में बुरी तरह झुलसा। मामला केसरिया ध्वज को अन्य मज़हब के लोगों द्वारा कुचलने से शुरू हुआ था और बाद में इसने भयानक रूप ले लिया। मंत्री अकबर पर यह आरोप है कि उनके संरक्षण में दंगाइयों ने हर तरह के बलवा को अंजाम दिया और पुलिस ने यहां भी उल्टे हिन्दू संगठनों को ही प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। लोगों को घर से खींच खींच कर नृशंस पिटाई की गयी। इधर पुलिस का प्रकोप चल रहा था, उससे पहले उधर अन्य दंगाइयों ने तलवारें लहरा कर, युवकों की हत्या की तमाम कोशिशें कर माहौल को रक्तरंजित कर दिया। लेकिन प्रशासन पर यहां भी एकतरफा कार्रवाई करने के आरोप लगे।
बजाय दंगाइयों पर उचित कार्रवाई करने के उनके खिलाफ तो खानापूर्ति की गयी, लेकिन इधर भाजपा के सांसद, पूर्व सांसद समेत सभी नेताओं और हिन्दू कार्यकर्ताओं पर अनेक असंगत धाराएं लाद दी गयी हैं। भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजय शर्मा समेत अनेक कार्यकर्ता अभी भी जेल में हैं। शर्मा के खिलाफ अन्य कोई साक्ष्य नहीं मिलने पर उनके खिलाफ पुराने किसी मामले में एट्रोसिटी एक्ट लाद दिया गया है। इसी तरह कांग्रेस सरकार के ही एक असंतुष्ट मंत्री ने प्रदेश के सरगुजा इलाके, जो दूसरी तरफ का वनवासी क्षेत्र है, वहां बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को बसा कर इलाकी भौगोलिक स्थिति बदलने की साजिशों का पर्दाफ़ाश किया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस की सरकार आने को बड़ी संख्या में देशविरोधी संगठनों ने वनवासी प्रदेश में खुलेआम कन्वर्जन को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
अनुभव यही कहता है कि देश में कहीं भी कन्वर्जन मोटे तौर पर राष्ट्रान्तरण का पहला कदम होता है। छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित प्रदेश में यह काफी खतरनाक स्थिति है। सरकार का सनातन संगठनों के बारे में कैसा रुख है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं मुख्यमंत्री के पिता नन्द कुमार बघेल प्रदेश और देश भर में घूम-घूम कर भगवान श्रीराम के बारे में अनर्गल प्रचार करते हुए हिन्दुओं के खिलाफ लोगों को एकजुट कर रहे हैं। ऐसे माहौल में यह संतोष की बात है कि अपने राजा की अगुआई में बस्तर के प्रबुद्ध वनवासीजनों ने अपने खिलाफ शुरू इस षड्यंत्र के खिलाफ कमर कस ली है। राज्यपाल सुश्री उईके ने भी इस मामले को काफी संजीदगी से लिया है। उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिन कन्वर्जन में मशगूल एजेंसियों के लिए आसान नहीं होंगे। इतिहास गवाह है कि जब भी वनवासियों ने अपने अस्तित्व के लिए कमर कसी है, उसने फिरंगियों से लेकर कांग्रेसियों तक के दांत खट्टे किये हैं। उम्मीद है इस बार भी ऐसा ही होगा। मां सती का ही प्रतिरूप मां दंतेश्वरी की संतानें अपने सनातन धर्म और वनवासी रीति—रिवाजों, संस्कृतियों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती हैं। उम्मीद है ऐसा ही होगा भी।
टिप्पणियाँ