शरद पूर्णिमा का अमृत उत्सव, जानिये सबकुछ
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

शरद पूर्णिमा का अमृत उत्सव, जानिये सबकुछ

हमारी हिंदू धर्म संस्कृति में शरद पूर्णिमा के पर्व को स्वास्थ्य संरक्षण की दृष्टि से "मुहुर्त विशेष" की संज्ञा दी गयी है। तमाम पौराणिक व शास्त्रीय संदर्भ विजयादशमी के छह दिन बाद मनाये जाने वाले शरद पूर्णिमा उत्सव की महत्ता को विस्तार से व्याख्यायित करते हैं।

by पूनम नेगी
Oct 19, 2021, 06:13 pm IST
in भारत, धर्म-संस्कृति
शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

सनातन संस्कृति के प्रत्येक पर्व-त्योहार के पीछे एक गहन तत्वज्ञान व शिक्षाप्रद दर्शन छिपा हुआ है। ऋतु परिवर्तन से जुड़ा ऐसा ही एक पुरातन भारतीय पर्व है- शरद पूर्णिमा। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले इस लोकपर्व का आध्यात्मिक पक्ष तो अनूठा है ही, लौकिक पक्ष भी कम उपयोगी नहीं है। ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’ अर्थात शरीर की रक्षा करना सबसे पहला धर्म है। इस सूत्र वाक्य के उद्घोषक हमारे वैदिक मनीषियों ने प्राचीन काल में जब सामाजिक व्यवस्था का ताना-बाना बुना था तो उसमें स्वास्थ्य सम्बन्धी जीवन मूल्यों को विशेष मान्यता प्रदान की थी। हमारी हिंदू धर्म संस्कृति में शरद पूर्णिमा के पर्व को स्वास्थ्य संरक्षण की दृष्टि से “मुहुर्त विशेष” की संज्ञा दी गयी है। तमाम पौराणिक व शास्त्रीय संदर्भ विजयादशमी के छह दिन बाद मनाये जाने वाले शरद पूर्णिमा उत्सव की महत्ता को विस्तार से व्याख्यायित करते हैं।

16 कलाओं से युक्त होता है चंद्रमा
भारतीय मनीषियों के अनुसार सिर्फ इसी पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी समस्त 16 कलाओं से संयुक्त होता है। शरद चंद्र की ये 16 कलाएं हैं- अमृत,  मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, धृति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री,  प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत, प्रतिपदा। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की शरद  पूर्णिमा की चांदनी रात को चंद्रदेव अपनी इन सोलह कलाओं की अमृतवर्षा से धरतीवासियों को आरोग्य व उत्तम स्वास्थ्य के अनेकानेक  अनुदान-वरदान देते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात दर्पण के माध्यम से चंद्रमा की इन अमृतमयी किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण कर पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त करता था।

क्या कहते हैं कथानक
कथानक है कि महाभारत के भीषण संग्राम के पश्चात मानसिक रूप से  व्यथित पांडवों ने श्री कृष्ण के परामर्श पर द्रौपदी के साथ शरद पूर्णिमा की रात्रि को गंगा स्नान कर इस संताप से मुक्ति पाई थी। पौराणिक कथानक है कि शरद पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी सम्पूर्ण सोलह कलाओं से संयुक्त होता है,  इसीलिए सोलह कलाओं के पूर्णावतार लीलाधर श्रीकृष्ण ने इस पावन तिथि को महारास रचाकर पूरी पृथ्वी को प्रेममय बना दिया था। वृंदावन का घोर रहस्यमय निधिवन आज भी उस द्वापर युगीन परिघटना का साक्षी है। शरद पूर्णिमा का शुभ दिन मां महालक्ष्मी व रामकथा के आदि सर्जक महर्षि वाल्मीकि की जयंती से भी जुड़ा है। पौराणिक मान्यता है कि माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में इस दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है।

कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं
शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। कोजागर का शाब्दिक अर्थ है ‘कौन जाग रहा है’। मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं, उन पर मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य होती है। इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए सुंदर रंगोली सजाने की भी परम्परा है। पद्म पुराण में वर्णित कथानक के अनुसार देवी-देवताओं खासतौर पर माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय ब्रह्मकमल पुष्प भी साल में सिर्फ एक बार इसी अवसर पर खिलता है। पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में माता लक्ष्मी ने इसी दिन श्री राधा के रूप में अवतार लिया था। इसलिए कृष्ण उपासकों का एक वर्ग इस तिथि को राधा जयंती के रूप में भी मनाता है।

भगवान कार्तिकेय का हुआ था जन्म
इस पर्व से जुड़े अन्य पौराणिक प्रसंगों के मुताबिक भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की चांदी सी उज्जवल रात्रि में जब भगवान शंकर एवं मां पार्वती कैलाश पर्वत पर भ्रमण करते हैं तो संपूर्ण कैलाश चंद्रमा की उज्जवल आभा से जगमगा जाता है। इसलिए शैव भक्तों के लिए शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। कार्तिक व्रत का शुभारम्भ भी शरद पूर्णिमा से ही होता है। इस दिन से शीत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है।

बौद्ध ग्रंथों में भी उल्लेख
महाभारत व कई अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में प्राचीन भारत में शरद पूर्णिमा पर भव्य कौमुदी महोत्सव मनाये जाने का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथ “दीर्घ निकाय” में उल्लेख मिलता है कि इस अवसर पर संपूर्ण नगर दीपों से जगमगाता था तथा राज्य के सभी नागरिक नये और सुंदर वस्त्र पहन कर इस आमोद-प्रमोद में शामिल होते थे। सिर्फ मगध में ही नहीं बल्कि वाराणसी और श्रावस्ती में भी इस महोत्सव को मनाये जाने के प्रमाण प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं। आज भी यह पर्व देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा पर पूरे देश में विशेष उत्सव का आयोजन होता है। जहां एक ओर उत्तर भारत खासतौर पर ब्रजमंडल में यह पर्व ‘रास उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है तो वहीं बिहार व मिथिलांचल में ‘कोजागर पूर्णिमा’ के रूप में। इसी तरह पश्चिम बंगाल,  असम और ओडिशा में कुमारी कन्याएं योग्य पति की प्राप्ति के लिए इस दिन चन्द्रमा की विशेष पूजा करती हैं।

मन का कारक है चंद्रमा
वैदिक मनीषा कहती है कि अमृत वर्षण करने वाले सोलह कलाओं से युक्त शरद चंद्र की पावन शीतलता से अंतस की कामनाएं शांत हो जाने से मनुष्य का तन-मन निर्मल एवं शांत हो जाता है। इसीलिए यह रात्रि स्वास्थ्य व सकारात्मकता प्रदान करने वाली मानी जाती है। उपनिषदकार कहते हैं कि चंद्रमा मन का कारक है तथा मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है, जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। चंद्रमा की सोलह कलाएं मन की विविध अवस्थाओं की प्रतीक हैं। अमावस्या के घोर अंधेरे तमस से उत्तरोत्तर विकसित होते हुए पूर्णिमा के पूर्ण प्रकाश तक की यात्रा ही मानव जीवन का मूल लक्ष्य है। जब मानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तो उसकी विषय-वासना शांत हो जाती है। मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है। जब मन निर्मल एवं शांत हो जाता है तब आत्मसूर्य का प्रकाश मनरूपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता है। जरा विचार कीजिए कितना उत्कृष्ट चिंतन है हमारे वैदिक तत्वज्ञानियों का!

प्रमाणित हुई शरद चंद्र की औषधीय महत्ता
स्वास्थ्य संवर्धन की दृष्टि से भी शरद पूर्णिमा का विशिष्ट महत्व है। शरद पूर्णिमा स्वास्थ्य की दृष्टि से एक ऐसी रात्रि मानी जाती है जब क्षितिज से अमृत की रश्मियां संजीवनी बनकर बरसती हैं। तत्वदर्शन यह है कि शरद पूर्णिमा की रात को चूंकि चंद्रमा धरती के सर्वाधिक निकट होता है, इस कारण इसकी किरणें धरती पर छिटक कर अन्न-जल व वनस्पति को अपने औषधीय गुणों से अधिक सघनता से सिंचित करती हैं। इससे वनस्पतियों में नया प्राणतत्व आ जाता है। इसीलिए प्राचीनकाल में शरद पूर्णिमा की रात को आयुर्वेद के मनीषियों द्वारा विभिन्न जड़ी बूटियों से जीवनदायी औषधियों के निर्माण की परम्परा शुरू की गयी थी, जो आज भी कायम है। भगवान श्रीकृष्ण भी गीता में कहते हैं-“पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।” अर्थात मैं ही रसस्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं। उनका यह कथन भी शरद पूर्णिमा की उपादेयता को पुष्ट करता है।

ऋतु परिवर्तन स्वास्थ्य से जुड़ा है महत्व
आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार इस पूर्णिमा के चंद्रमा से एक विशेष प्रकार का अमृत रस झरता है, जो अनेक रोगों में संजीवनी की तरह काम करता है। आयुर्वेद के मनीषियों ने शरद पूर्णिमा के इस चंद्र अमृत का लाभ जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए मिट्टी के बर्तन में खीर बनाकर उसे घरों की छतों पर खुले आकाश के नीचे रखने तथा अगले दिन प्रातःकाल इस अमृतमय खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करने की परंपरा बनायी थी। इस बाबत लखनऊ के जाने-माने आयुर्वेदाचार्य अजय दत्त शर्मा कहते हैं कि इस खीर के सेवन से पूर्व चंद्रदेव, लक्ष्मी मां तथा आरोग्य के देवता अश्विनी कुमारों को भोग लगाकर यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमारी इन्द्रियों का तेज-ओज बढ़ाएं। उनका कहना है कि शरद पूर्णिमा की यह खीर श्वास और दमा के रोगियों के लिए काफी लाभदायक होती है। ऋतु परिवर्तन के कारण चूंकि इस अवधि में पित्त प्रकोप की आशंका रहती है। इसलिए इस खीर को खाने से पित्त भी शांत हो जाता है। इसके पीछे शरीर विज्ञान का तर्क है कि अब ठंड का मौसम आ गया है, इसलिए गर्म पदार्थों का सेवन करना शुरू कर देना चाहिए। यही नहीं, इस खीर के सेवन व चंद्र दर्शन से नेत्रज्योति भी बढ़ती है। वे कहते हैं कि इस पर्व को स्वास्थ्य संरक्षण की दृष्टि से “मुहुर्त विशेष” की मान्यता हासिल है। जो इस सुअवसर का लाभ उठा लेते हैं, उन्हें उत्तम स्वास्थ्य और मानसिक शांति मिलती है।

अनूठी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास
शरद पूर्णिमा की रात को खुले आकाश तले रखी जाने वाली इस खीर की औषधीय महत्ता अब वैज्ञानिक प्रयोगों से भी परखी जा चुकी है। इस बाबत कुछ वर्ष पूर्व बीएचयू के वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग भी किया था। उक्त अध्ययन में पाया गया था कि खीर बनाने के प्रयुक्त दुग्ध में मौजूद लैक्टिक अम्ल और चावल में मौजूद स्टार्च, यह दोनों तत्व चन्द्रकिरणों की शक्ति को अधिक मात्रा में अवशोषित कर अधिक गुणवत्तायुक्त हो जाते हैं। काशी के आयुर्वेदाचार्य शांतनु मिश्र बताते हैं कि शरद पूर्णिमा पर काशी के गढ़वाघाट मठ से अनेक वर्षों से अस्थमा पीड़ितों के लिए खास तरह औषधि का वितरण किया जाता है जो चंद्रकिरणों से तैयार की जाती है। वे कहते हैं कि शरद पूर्णिमा को ब्रह्म मुहूर्त में चन्द्रमा की किरणों के बीच जब गंगा में स्नान किया जाता है तो मनुष्य के शरीर में अनूठी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

रोग का कारण त्रुटिपूर्ण जीवनशैली
हमारी वैदिक मनीषा द्वारा सदियों पूर्व बनाये गये स्वास्थ्य संरक्षण के  नियम-उपनियम आज भी उतने ही कारगर हैं तथा समूची दुनिया इनकी  वैज्ञानिकता को जान-परख कर चमत्कृत है। आज के समय में रोगों की  भरमार का मूल कारण हमारी त्रुटिपूर्ण जीवन शैली है। दूषित व ऋतु  विपरीत आहार-विहार व मानसिक तनाव के कारण हमारी जीवन शक्ति क्षीण हो रही है। इससे उबरने के लिए प्रयोगों पर कसौटी पर खरे उतरे। शरद पूर्णिमा के दिन किये जाने वाले स्वास्थ्य संरक्षण के उपचारों को हर भारतवासी को अपनाना चाहिए।

Topics: वाल्मीकि जयंतीशरद पूर्णिमामां लक्ष्मी का जन्मकार्तिकेय का जन्मक्यों कहते हैं शरद पूर्णिमा
Share2TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हमला

जयपुर करणी विहार में चाकूबाजी: प्रसाद वितरण के दौरान हमला, RSS के 10 स्वयंसेवक घायल, हिरासत में नसीब चौधरी और उसका बेटा

श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से युक्त संपूर्ण अवतार माने जाते हैं

रास पूर्णिमा : अलौकिक प्रेम की दिव्य महालीला

संगोष्ठी के मंच पर विराजमान अतिथि

इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती ने किया ‘आदिकवि वाल्मीकि एवं भारतीय संस्कृति’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन

महर्षि वाल्मीकि जयंती पर समरसता प्रवास

श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से युक्त संपूर्ण अवतार माने जाते हैं

शरद पूर्णिमा: महारास की अमृतमय पूर्णिमा, भगवान श्रीकृष्ण, चंद्रमा और 16 कलाएं

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मातादीन वाल्मीकि को मेरठ के डॉक्टर्स ने किया याद, लगाए मेडिकल कैंप

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

“एक आंदोलन जो छात्र नहीं, राष्ट्र निर्माण करता है”

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, हाईकोर्ट ने दिया ‘स्पेशल स्क्रीनिंग’ का आदेश

उत्तराखंड में बुजुर्गों को मिलेगा न्याय और सम्मान, सीएम धामी ने सभी DM को कहा- ‘तुरंत करें समस्याओं का समाधान’

दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना और इसका भारत पर प्रभाव

उत्तराखंड : सील पड़े स्लाटर हाउस को खोलने के लिए प्रशासन पर दबाव

पंजाब में ISI-रिंदा की आतंकी साजिश नाकाम, बॉर्डर से दो AK-47 राइफलें व ग्रेनेड बरामद

बस्तर में पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने घर वापसी की है।

जानिए क्यों है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गुरु ‘भगवा ध्वज’

बच्चों में अस्थमा बढ़ा सकते हैं ऊनी कंबल, अध्ययन में खुलासा

हमले में मारी गई एक युवती के शव को लगभग नग्न करके गाड़ी में पीछे डालकर गाजा में जिस प्रकार प्रदर्शित किया जा रहा था और जिस प्रकार वहां के इस्लामवादी उस शव पर थूक रहे थे, उसने दुनिया को जिहादियों की पाशविकता की एक झलक मात्र दिखाई थी  (File Photo)

‘7 अक्तूबर को इस्राएली महिलाओं के शवों तक से बलात्कार किया इस्लामी हमासियों ने’, ‘द टाइम्स’ की हैरान करने वाली रिपोर्ट

राजस्थान में भारतीय वायुसेना का Jaguar फाइटर प्लेन क्रैश

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies