सांस्कृतिक आयोग के सदस्य सईद खोस्ती का कहना है कि कुछ तकनीकी समस्याओं की वजह से नीतियां और खाके बनाने जरूरी हैं तभी लड़कियों के स्कूल पूरी तरह खोले जा सकेंगे। लेकिन जानकारों का मानना है कि तालिबानी नेता सिर्फ वक्त आगे बढ़ाते रहने के लिए ऐसी टालमटोल वाली बातें कर रहे हैं
काबुल से आई एक खबर के अनुसार, अफगानिस्तान में तालिबान की लड़ाका सरकार ने फिलहाल अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर तीन सूबों में लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत दी है। अफगान समाचार चैनल टोलो न्यूज के अनुसार, कुंदुज, बल्ख तथा सर-ए-पुल सूबों में लड़कियों ने स्कूल जाना शुरू तो किया है पर उनके लिए ये स्कूल अलग हैं, यानी उनमें लड़के नहीं हैं।
सूबे के शिक्षा प्रमुख जलील सैयद खिली के हवाले से टोलो न्यूज का कहना है कि लड़कियों के स्कूल खोले जा चुके हैं, और छात्राएं स्कूलों को लौटी हैं। खिली ने ही आगे बताया है कि लड़कों और लड़कियों के स्कूल अलग—अलग किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही तालिबानी हत्यारों ने औरतों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए थे, लड़कियों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए गए थे और कुछ ही जगहों पर कई कड़ी शर्तों के साथ इसकी इजाजत दी गई थी। लेकिन तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों और सरकारों के दबाव, अफगान छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के बाद, आखिरकार तालिबान लड़ाकों को तीन सूबों में लड़कियों के स्कूल खोलने पड़े हैं।
अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही तालिबानी हत्यारों ने औरतों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए थे, लड़कियों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए गए थे और कुछ ही जगहों पर कई कड़ी शर्तों के साथ इसकी इजाजत दी गई थी। लेकिन तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों और सरकारों के दबाव, अफगान छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के बाद, आखिरकार तालिबान लड़ाकों को तीन सूबों में लड़कियों के स्कूल खोलने पड़े हैं।
जलील का कहना है कि स्कूल खुलने से लड़कियों में काफी खुशी है। बल्ख सूबे की राजधानी मजारे-शरीफ में करीब 4,600 छात्र तथा 162 शिक्षक हैं। यहां की एक छात्रा सुल्तान रजिया के अनुसार, पहले तो में स्कूल में कम छात्राएं आ रही थीं लेकिन अब ज्यादा आने लगी हैं। एक और छात्रा तबस्सुम का कहना था कि तालीम उनका हक है, क्योंकि हमें अपने देश को बेहतर बनाना है। कोई हमसे तालीम का हमारा हक छीन नहीं सकता है। बल्ख में आंकड़ों के हिसाब से 600 से ज्यादा चल रहे हैं। पिछले महीने तालिबान लड़ाकों ने घोषणा की थी कि सिर्फ लड़कों के स्कूल ही खोले जाएंगे तथा सिर्फ पुरुष शिक्षकों को ही नौकरी पर दुबारा से बुलाया जाएगा। लेकिन फिर तालिबान पर ऐसा दबाव पड़ा कि उसे लड़कियों के स्कूलों को खोलने के बारे में सोचना ही पड़ा।
तालिबान सत्ता के संस्कृति व सूचना मंत्रालय के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य सईद खोस्ती का कहना है कि कुछ तकनीकी समस्याओं की वजह से नीतियां और खाके बनाने जरूरी हैं तभी लड़कियों के स्कूल पूरी तरह खोले जा सकेंगे। लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि तालिबानी नेता सिर्फ वक्त आगे बढ़ाते रहने के लिए ऐसी टालमटोल वाली बातें कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें दूसरे देशोें से पैसे चाहिए। कुछ स्कूल खोलकर वे ऐसा दिखाना चाहते हैं जैसे उन्हें औरतों और लड़कियों की तालीम से कोई नफरत नहीं है। लेकिन असल में उनकी पाषाणयुगीन सोच उन्हें औरतों को सही नजरिए से देखने ही नहीं देगी। कई दिनों से ऐसी मांग उठती आ रही है कि औरतों को भी सरकार में प्रतिनिधित्व दिया जाए, बराबरी का दर्जा दिया जाए, लेकिन तालिबान बंदूक की नोंक पर विरोध की आवाजों को कुचलते रहे हैं।
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