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जी हां, साजिश रचकर हुआ दिल्ली दंगा

by WEB DESK
Sep 30, 2021, 04:28 pm IST
in भारत, दिल्ली
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आखिरकार दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाञ्चजन्य की इस पड़ताल पर मुहर लगा दी है कि 2020 में दिल्ली में हुए दंगे एक सुनियोजित साजिश का नतीजा थे. अदालत ने कहा कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने की यह पूर्व नियोजित साजिश थी.


मृदुल त्यागी

आखिरकार दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाञ्चजन्य की इस पड़ताल पर मुहर लगा दी है कि 2020 में दिल्ली में हुए दंगे एक सुनियोजित साजिश का नतीजा थे. अदालत ने कहा कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने की यह पूर्व नियोजित साजिश थी. ये घटनाएं (हिंदुओं का कत्लेआम और संपत्ति को नुकसान) किसी क्षणिक आवेश में नहीं हुई. अदालत ने इसी तथ्य के आलोक में हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या और एक आईपीएस अधिकारी पर जानलेवा हमले के आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया.

आपको याद दिला दें कि 23 फरवरी, 2020 को दिल्ली में दंगे भड़के थे. पाञ्चजन्य ने उस समय दंगों की लाइव कवरेज करते हुए इस बात का खुलासा किया था कि दंगे सुनियोजित थे. इसकी पहले से तैयारी की गई थी. उत्तर पूर्वी दिल्ली में खासतौर पर हिंदुओं की जान-माल को संगठित तरीके से निशाना बनाया गया था. मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यामूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद के समक्ष हेड कांस्टेबल रतनलाल की हत्या के मामले में गिरफ्तार मोहम्मद इब्राहिम की जमानत याचिका आई. न्यायमूर्ति प्रसाद ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कई गंभीर टिप्पणियां कीं.अदालत ने कहा कि घटनास्थल के आस-पास के इलाकों में सीसीटीवी कैमरों को सुनियोजित तरीके से नष्ट कर दिया गया. राष्ट्रीय राजधानी में जो घटनाएं हुईं, वह क्षणिक आवेग का नतीजा नहीं थीं. शहर की कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने की पूर्व नियोजित साजिश थी. अभियोजन ने अदालत के समक्ष हिंसा की वीडियो फुटेज को रिकॉर्ड पर रखा है. अदालत का कहना था कि वीडियो से साफ नजर आता है कि यह कानून-व्यवस्था को ध्वस्त करने की साजिश थी. साथ ही साजिशन सामान्य जीवन को बाधा पहुंचाने का प्रयास किया गया था.

इब्राहिम ऐसे ही एक वीडियो फुटेज में हमलावर भीड़ के साथ था. इस भीड़ ने हमला करके हेड कांस्टेबल रतनलाल की हत्या कर दी थी. साथ ही एक आईपीएस अधिकारी को गंभीर रूप से जख्मी कर दिया था. इब्राहिम भीड़ में तलवार लेकर शामिल था. अदालत ने टिप्पणी कि यह वीडियो फुटेज बहुत भयानक है. यह इब्राहिम को हिरासत में रखने के लिए काफी है. इब्राहिम की जमानत याचिका में दलील दी गई थी कि वह कभी किसी विरोध प्रदर्शन या दंगे में शामिल नहीं था. यहां दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रसाद की टिप्पणी गौर करने लायक है- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का इस्तेमाल सभ्य समाज के ताने-बाने को खतरे में डालने के लिए नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने इब्राहिम की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उसकी मौजूदगी सीसीटीवी फुटेज में नजर आ रही है. यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है कि जिहादी दंगाई, नक्सली, अर्बन नक्सल कानून की गिरफ्त में आने के बाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता की ही दुहाई देते हैं. इसी आधार पर ये अपनी गिरफ्तारी को चैलेंज करते हैं. इनकी जमानत के समय अर्बन नक्सल खेमे के वकील, बुद्धिजीवी और पत्रकार इसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं. उस समय ये भूल जाते हैं कि इन्होंने किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही नहीं, जीवन जीने के अधिकार तक को छीना है. अदालत ने कहा- इब्राहिम फुटेज में तलवार लेकर भीड़ को उकसाता नजर आता है. वादी की हिरासत को बढ़ाने के लिए अदालत के पास ठोस सुबूत है. इब्राहिम जो हथियार ले जा रहा था, वह किसी को गंभीर चोट या मौत का कारण हो सकता है.

दिल्ली दंगा 2020- एक नजर

फरवरी, 2020 आते-आते दिल्ली सुलगने लगी थी. नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में हिंसा की पटकथा लिखी जाने लगी थी. 22 फरवरी को दिल्ली में दंगा शुरू हुआ. चार दिन तक चले दंगे में 53 लोगों की मौत हुई. छह सौ से अधिक घायल हुए. उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के दौरान ही पाञ्चजन्य ने सुबूत दर सुबूत इस बात का खुलासा कर दिया था कि सुनियोजित तरीके से हिंदुओं को निशाना बनाया गया था. दंगे की साजिशन हुए इसका सबसे बड़ा सुबूत तो यही है कि उस समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे. पूरी दुनिया का ध्यान भारत पर था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की लगातार मजबूत होती छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए ये दंगे अंजाम दिए गए थे. दिल्ली पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 751 एफ़आईआर दर्ज कीं. पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था. इन दंगों की बाबत दिल्ली पुलिस द्वारा दाखिल चार्जशीट पर भी एक तरह से उच्च न्यायालय की मुहर लगी है. इस चार्जशीट में भी आरोप लगाया गया है कि सरकार को अस्थिर करने के लिए साजिश रचकर ये दंगे अंजाम दिए गए.

 

कैसे जुड़ती है कड़ी

साजिश की शुरुआत 4 दिसंबर, 2019 से होती है. इसी दिन मुस्लिम स्टूडेंट ऑफ़ जेएनयू (एमएसजे) ग्रुप की शुरुआत हुई और शरजील इमाम इस ग्रुप का सबसे सक्रिय सदस्य था. शरजील एमएसजे ग्रुप के ज़रिए स्टूडेंट ऑफ़ जामिया ग्रुप से जुड़ा. यही मुस्लिम कट्टरपंथी समूह जामिया हिंसा का प्रेरक बना. आरोपपत्र के मुताबिक शरजील इमाम का उस्ताद उमर खालिद है. सात दिसंबर 2019 को ख़ालिद ने शरजील इमाम को योगेंद्र यादव से मिलवाया. जी हां, ये वही योगेंद्र यादव हैं, जो इच्छाधारी प्रदर्शनजीवी हैं. ये दिल्ली दंगे के दौरान भी सक्रिय थे, और अब किसान आंदोलन का मुखौटा पहने हैं. हर भारत विरोधी गतिविधि में योगेंद्र यादव का नाम न आए, ये नहीं हो सकता. इसके बाद आठ दिसंबर को जंगपुरा में शरजील इमाम, योगेंद्र यादव, उमर ख़ालिद, नदीम ख़ान, परवेज़ आलम, ताहिरा दाउद और प्रशांत टंडन ने बैठक की. चक्का जाम की साजिश पहले से तैयार थी. इसे अमल में लाने का फैसला इसी मीटिंग में हुआ.

यूनाइडेट अगेंस्ट हेट,  स्वराज अभियान, तमाम वामपंथी दलों, संगठनों, अर्बन नक्सल, बुद्धिजीवी, समाजसेवी, पत्रकार, वकील आदि बहरूप में छिपे तमाम नक्सलियों ने इसे समर्थन दिया, जहां हो सका सहयोग किया. चार्जशीट में एक 'प्रोटेक्टेड गवाह' (ऐसा गवाह, जिसकी शिनाख्त का खुलासा नहीं किया जा सकता)  के हवाले से पुलिस ने कहा है कि 13 दिसंबर को उमर ख़ालिद ने शरजील को आसिफ़ इक़बाल तन्हा से मिलवाया. यहां चक्का जाम और धरने के बीच का अंतर समझाया गया. इसके लिए दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके को चुना गया. मकसद बहुत साफ था, देश की सरकार को उखड़ा फ़ेंका जाए क्योंकि ये हिंदू सरकार है. जामिया के गेट नंबर 7 से चक्का जाम शुरू हुआ. उमर खालिद के ही तार अंकित शर्मा की जघन्य हत्या व दंगे के आरोपी आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन से भी जुड़े हुए थे. उमर ख़ालिद ने इस बात का आश्वासन ताहिर हुसैन को दिया कि फ़ंड की चिंता मत करो. पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया इस दंगे के लिए फंड और ज़रूरी चीज़ों का इंतज़ाम करेगा.

 
क्या कहती है चार्जशीट
2019 के चुनाव नतीजे आने के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को अस्थिर करने की साजिश रचनी शुरू हो गई थी. दंगों की साजिश रचने का इकलौता उद्देश्य केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकना था. इसी वजह से ट्रंप की यात्रा के समय को दंगे के लिए चुना गया. पहले दंगा किया गया और फिर 25 फरवरी को दिल्ली में डोनाल्ड ट्रंप की प्रेस कान्फ्रेंस में उनसे इस बाबत सवाल पूछा गया.

चार्जशीट के मुताबिक ये एक बड़ी तैयारी के साथ रचा गया षड्यंत्र था. उमर ख़ालिद ने भड़काऊ भाषण दिया. उसने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की 24-25 फरवरी की भारत यात्रा के दौरान सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर लोगों से जुटने को कहा.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपेगंडा फैलाना इसका मकसद था ताकि यह संदेश जाए कि अल्पसंख्यकों को भारत में सताया जा रहा है. दिल्ली पुलिस के मुताबिक इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए फायर-आर्म्स, पेट्रोल बम और एसिड की बोतलों का इंतज़ाम किया गया.

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का कहना है कि जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी (जेसीसी), पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई), पिंजरा तोड़, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े लोगों ने साज़िश के तहत दिल्ली में दंगे कराए.

दंगों की साजिश का खुलासा करता हुआ एक अहम सुबूत हिंसा भड़काने के लिए बनाए गए वाट्सएप ग्रुप और इन पर हुई चैट है. शाहीन बाग प्रदर्शन के समय वॉरियर्स ग्रुप बनाया गया. इसमें सीएए, एनआरसी को लेकर अफवाहें फैलाई गईं. पुलिस ने डीपीएसजी नाम के एक वॉट्सएप ग्रुप की भी चैट शामिल की है. इसके अलावा जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी, खिदमत, औरतों का इंकलाब, सेव कांस्टीट्यूशन जैसे ग्रुप के जरिये भी दंगे की प्लानिंग की गई.

चार्जशीट में प्रमुखता से दिल्ली प्रोटेस्ट सॉलिडैरिटी ग्रुप (डीपीएसजी) नाम के व्हाट्सएप ग्रुप का ज़िक्र है. पुलिस के मुताबिक जेसीसी (जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी),  एमएसजे (मुस्लिम स्टूडेंट ऑफ़ जेएनयू), एसजेएफ़ (स्टूडेंट ऑफ़ जामिया),  यूनाइटेड अगेंस्ट हेट और दिल्ली प्रोटेस्ट सॉलिडैरिटी ग्रुप ये सभी ग्रुप एक तानाबाना बुनकर एक साझा षड्यंत्र रच रहे थे.

चार्जशीट के मुताबिक जेसीसी और एमएसजे जैसे ग्रुप के सदस्य कौन से छात्र होंगे, इसे पूरी साजिश के सूत्रधारों ने चुना था. इन सबके ऊपर एक अंब्रेला ग्रुप दिसंबर 2019 में बना जिसका नाम था डीपीएसजी. डीपीएसजी ग्रुप 28 दिसंबर, 2019 को बना जिसे सबा दीवान और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाने वाले राहुल रॉय ने बनाया था.

दंगा इस कदर नियोजित था कि गाड़ियों में हिंदू धर्म के चिह्न ढूंढकर आग लगाई गई. जिन गाड़ियों की पहचान नहीं हो सकी, उसके लिए ई-वाहन एप का सहारा लिया गया. इसमें गाड़ी नंबर से मालिक का नाम देखकर उसे नष्ट किया गया।

दिल्ली दंगों के तार कुख्यात इस्लामिक कट्टरपंथी जाकिर नाईक से भी जोड़े गए हैं. नाईक पर अपने भाषणों से नफ़रत फैलाने और आंतकी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप है. ख़ालिद सैफ़ी ने इन दंगों के लिए पीएफ़आई से फंड जुटाया. उसके पासपोर्ट से भी साफ है कि उसने जाकिर नाइक से फंड के लिए मुलाकात की थी.

अंकित शर्मा की हत्या के मामले में दाखिल चार्जशीट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि हर्ष मंदर और चंद्र शेखर आजाद ने भड़काई भाषण देकर दिल्ली दंगे की नींव रखी. हर्ष मंदर 16 दिसंबर को जामिया के गेट नंबर 7 पर भाषण देते हुए प्रदर्शनकारियों को सुप्रीम कोर्ट में यक़ीन न रखने की सलाह दी और कहा कि अपनी लड़ाई सड़कों पर उतरकर लड़ना होगा.

 
 

दंगे के खलनायक

—ख़ालिद सैफ़ी- यूनाइटेड अगेंस्ट हेट

 —इशरत जहां- पूर्व कांग्रेस पार्षद

—सफ़ूरा ज़रगर-एमफ़िल छात्रा, जामिया

—मीरान हैदर- पीएचडी छात्र, जामिया

 —गुलफ़िशां फ़ातिमा- एमबीए छात्र, गाज़ियाबाद

—शादाब अहमद- जामिया छात्र

—शिफ़ा-उर-रहमान- जमिया एल्युमिनाई

—नताशा नरवाल- जेएनयू छात्र,'पिंजरा तोड़' की सदस्य

—देवांगना कलिता- जेएनयू छात्र, 'पिंजरा तोड़' की सदस्य

—आसिफ़ इक़बाल तन्हा- जामिया छात्र

—उमर ख़ालिद-पूर्व जेएनयू छात्र

—शरजील इमाम-जेएनयू छात्र

 —ताहिर हुसैन- पूर्व 'आप' पार्षद

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