अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री आलोक कुमार ने चित्र भारती फिल्मोत्सव के पोस्टर का विमोचन करने के कहा कि स्थानीय भाषा, संस्कृति तथा परम्परा का विकास फिल्मों में निहित है।
रितेश कश्यप
आज 29 सितंबर को रांची में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह प्रचार प्रमुख श्री आलोक कुमार ने चित्र भारती फिल्मोत्सव के पोस्टर का विमोचन और फिल्म समीक्षा कार्यशाला का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा, संस्कृति तथा परंपरा का विकास फिल्मों में निहित है। भारतीय फिल्में नवरस से भरी पड़ी हैं। इनमें हास्य, व्यंग्य आदि चीजों का समागम है। उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्म मनोरंजन की विधा को पूरा विश्व स्वीकार करता है। अब पश्चिम के फिल्मों में संवेदना गीत संगीत प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो भारतीय फिल्मों से प्रेरित है। भारतीय परंपरा में मनोरंजन को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। मानवीय सभ्यता के उदय से लेकर वर्तमान समय तक मनोरंजन को अभिव्यक्ति की प्राथमिकता दी गई है। चाहे वह गायन, नाटक या चित्र हो मनोरंजन सर्वोच्च रहा है।
महाकवि कालिदास ने अभिज्ञानशाकुंतलम् नाटक के माध्यम से मनोरंजन की अभिव्यक्ति की है। लालटेन के सहारे रामलीला का मंचन पुराने समय में होता रहा है। सभी में यह देखा गया है कि आदिम काल से मनोरंजन स्थानीय भाषा, संस्कृति तथा परंपरा के विकास का द्योतक रहा है।
सरला बिरला विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व के फिल्म उद्योगों में भारत की भागीदारी 12.5 प्रतिशत है जो दर्शाता है कि भारतीय फिल्म की भूमिका समाज निर्माण में अतुलनीय है। भारत में लघु फिल्मों का बड़ा संसार है। लघु फिल्मों के माध्यम से लोग अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीत रहे हैं। आज हम राष्ट्रीय स्तर पर लघु फिल्म उत्सव मनाने जा रहे हैं। आगे चलकर स्थानीय व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रांतीय स्तर पर लघु फिल्मों का फिल्मोत्सव आयोजित करेंगे। हमारा उद्देश्य लघु फिल्मों के माध्यम से स्थानीय बोलियों, भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं को उजागर करना है। हमारा ध्येय है कि लघु फिल्मों के माध्यम से सकारात्मक परंपरा का निर्माण किया जाए और नकारात्मकता से परहेज किया जाए।
श्री आलोक कुमार ने कहा कि 2019 में 25 भाषाओं में फिल्में बनी हैं। इनमें सर्वाधिक 495 फिल्में हिंदी में बनीं। इसके साथ ही तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, तमिल में कुल 1090 फिल्में बनीं। इससे जाहिर होता है कि भारतीय समाज पर फिल्मों का कितना गहरा असर है। आधुनिक काल में दादा साहब फाल्के द्वारा 1913 में पहली फ़िल्म बनाई गई। इसके साथ ही पहली चलती बोलती फिल्म 1931 में 'आलम आरा' आई, जो भारत की संस्कृति, परंपरा और विकास का प्रतिबिंब बनी।
उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध की जातक कथाओं में जानवर भी बोलते हैं । उनसे प्रेरित होकर पश्चिम में 'टॉम एंड जेरी' जैसी एनिमेशन फिल्मों का निर्माण हुआ। अपने महाभारत और रामायण महाकाव्य को ध्यान में रखते हैं तो उनमें 10 हजार से अधिक कहानियों का संकलन मिलता है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में आज भी माता द्रोपदी की परंपरा के वाहक मिलते हैं। किन्नौर में 3000 परिवार ऐसे हैं जो महिला प्रधान हैं। यह महिला सशक्तिकरण का सर्वोच्च उदाहरण है। वहां की महिलाएं एक परिवार के सभी भाइयों के साथ विवाह संबंध स्थापित करती हैं और सारी व्यवस्था खुद संभाला करती हैं, जो आज भी प्रचलित है।
इस अवसर पर चित्रपट झारखंड द्वारा आयोजित कथा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। इसमें प्रथम स्थान डॉ लोधा उरांव, द्वितीय स्थान प्रकाश मिश्रा तथा तृतीय स्थान मयंक मिश्रा को प्राप्त हुआ। यह भी बताया गया कि 18, 19 और 20 फरवरी 2022 को भोपाल में चित्रपट भारतीय राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव किया जाना है। इस महोत्सव के भी पोस्टर का लोकार्पण इस कार्यक्रम के दौरान किया गया।
इस अवसर पर सरला बिरला विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ प्रदीप वर्मा, कुलसचिव डॉ विजय कुमार सिंह, प्रांत प्रचार प्रमुख धनंजय सिंह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग बौद्धिक प्रमुख आशुतोष कुमार, डॉ संदीप कुमार, प्रो आर. एम. झा, डॉ भारद्वाज शुक्ला तथा समन्वयक नंद कुमार सिंह उपस्थित थे।
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