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कौन है काबुल एयरपोर्ट पर खून—खराबा करने वाला आतंकी संगठन आईएस-के

by WEB DESK
Aug 27, 2021, 12:00 am IST
in विश्व, दिल्ली
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काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बाहर हुए तीन आत्मघाती हमलों की जिम्मेदरी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-खुरासान ने ली है। आइए समझते हैं कि आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-खुरासान है क्या और इसकी नीतियां क्या हैं?


मीम अलिफ हाशमी

काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बाहर हुए तीन आत्मघाती हमलों की जिम्मेदरी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-खुरासान ने ली है। इससे पहले आम लोग इस्लामिक स्टेट, संक्षेप में आईएसआईस, के बारे में सुनते रहे हैं। ताजी घटना में आईएसआईएस-खुरासान का नाम आते ही एकबारगी सभी चौंक गए। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि यह कौन सा आतंकवादी संगठन है ? कैसे काम करता है और इसके पीछे कौन-कौन लोग हैं ? इस आतंकवादी संगठन को लेकर सेंटर फार स्ट्रैजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज ने गहन अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट तैयार की है, जो बताती है कि तालिबान यदि अफगानिस्तान में बिना खून-खराबा के सत्ता चलाना भी चाहे तो इसके यह पुराने साथी, ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे। अफगानिस्तान के एक्टिंग राष्ट्रपति अमरूल्लाह सालेह कहते हैं,‘‘ हमारे पास सबूत हैं कि आईएस-के की जड़ें तालिब और हक्कानी नेटवर्क में हैं। यह काबुल में सक्रिय है।’’

बहरहाल, आइए समझते हैं कि आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-खुरासान है क्या और इसकी नीतियां क्या हैं ?

इस्लामिक स्टेट खुरासान, ज्यादातर मध्य एशियाई देशों में सक्रिय है। मगर इसने ख्वाब बड़े लंबे पाल रखे हैं। इसके सपनों में शामिल है व्हाइट हाऊस और इजरायल के भीतर इस्लामिक परचम लहराना। इस आतंकवादी संगठन की स्थापना यूं तो तकरीबन छह वर्ष पहले हुई है, पर खास नजरिए के साथ इसे जुड़े लोग बहुत पहले से न केवल जुड़े थे, समान विचार धारा वाले लोगों का नेटवर्क तैयार करने में लगे थे। सेंटर फार स्ट्रैजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की रिपोर्ट की मानें तो इस्लामिक स्टेट ने 2015 में ईरान के खुरासान प्रांत में अपने विस्तार का ऐलान किया और ईरान, मध्य एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में संगठन को मजबूती प्रदान का निर्णय लिया।

विश्लेषकों और सुरक्षा एजेंसियों से मिली जानकारी के अनुसार, आईएस-के जनवरी 2017 से लेकर अब तक अफगानिस्तान और पाकिस्तान में 100 से अधिक हमले कर चुका है। यही नहीं इसने अमेरिका, अफगान और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के साथ करीब 250
से अधिक झड़पें की हैं. हालांकि गुरुवार से पहले आईएस-के ने अमेरिका के खिलाफ कोई बड़ा हमला नहीं किया था। गुरुवार के हमले में करीब सवा सौ लोग मारे गए, जिसमें 13 से ज्यादा अमेरिकी सैनिकों की मौत की खबर है। सेंटर फार स्ट्रैजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की रिपोर्ट बताती है कि अब यह आतंकवादी संगठन दक्षिण एशिया में पैर पसारने लगा है।

 
सेंटर फार स्ट्रैजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के अध्ययन के मुताबिक, संगठन के गठन के बाद पाकिस्तान के हाफिज सईद खान को इसका अपना पहला अमीर यानी नेता चुना था। इसके अलावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के कमांडर समूह के प्रवक्ता शेख मकबूल सहित टीटीपी के कई अन्य सदस्य इसमें शामिल किए गए। संगठन से टीटीपी के कई जिलों के प्रमुख भी जोड़े गए। संगठन ने अक्टूबर, 2014 में अल-बगदादी के प्रति निष्ठा जताते हुए खुद को आईएसआईएस से जोड़ने का ऐलान किया। बाद मेन आईएसआईएस के कई लोग खुरासान शूरा यानी नेतृत्व परिषद में भी शामिल किए गए।

आईएस-के की शुरुआती सदस्यता में पाकिस्तानी आतंकवादियों का एक दल शामिल हुआ, जिसने 2010 के आसपास अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत को अपना केंद्र बनाया। इसकी पकड़ पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों पर भी है। इसके पूर्व सदस्य अभी आतंकवादी संगठन टीटीपी और लश्कर में, हमेशा भारत की सुरक्षा-व्यवस्था को चुनौती देते रहते हैं। आईएस-के अमीर हाफिज सईद खान की पहल पर तालिबान के पूर्व कमांडर अब्दुल रऊफ खादिम को इसका डिप्टी बनाया गया। इसके नेतृृत्व में ही अफगानिस्तान में लंबे समय तक भर्ती नेटवर्क चलाया गया और संगठन का पाकिस्तान सहित अन्य देशों में इसका विस्तार किया गया। रिपोर्ट की मानें तो भर्ती अभियान का असर रहा कि 2017 तक इसमें लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा, हक्कानी नेटवर्क और इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान के कई खूंखार सदस्य शामिल हो गए।

आइएस-के को 2015 में स्थापना के बाद से इस्लामिक स्टेट के मुख्य नेतृत्व, जो इराक और सीरिया में है, से लगातार समर्थन हासिल होता रहा। जैसे-जैसे इस्लामिक स्टेट अपनी जमीन खोता गया इसने अफगानिस्तान को अपने वैश्विक खिलाफत (खलीफाई) के लिए आधार शिविर के तौर पर बदलना शुरू कर दिया। आइएस-के का आधिकारिक मकसद इस्लामिक स्टेट के वैश्विक उम्मा में है। इस्लामिक स्टेट के इराक और सीरिया के विलायतों (प्रांत) ने इस मूवमेंट के मध्य एशिया में विस्तार के कदम का स्वागत किया था। आइएस ने खुरासान प्रांत में अपनी वित्तीय मदद भी झोंक दी और यह राशि करोड़ों डॉलर के रूप में थी। ताकि मध्य एशिया में अपने नेटवर्क और संगठन को मजबूत कर सके।

अफगानिस्तान इस इलाके के आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है। आइएस-के को सारी ताकत इन्हीं से हासिल होती है। पुष्ट खबरें हैं कि अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में अबू उमर अल-शिशानी के ट्रेनिंग कैंप में आइएस-के आतंकियों को ट्रेनिंग दी गई थी।

आइएस-के का संस्थापक अमीर हाफिज सईद खान अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में 26 जुलाई, 2016 को अमेरिकी हवाई हमले में मारा गया। खान के ढेर होने के बाद, आइएस-के के एक के बाद एक तीन अमीर बने, और इनको अमेरिकी फौज ने एक एक करके लक्षित हमलों के जरिए मार गिराया। अप्रैल 2017 में अब्दुल हसीब मार गिराया गया, अबू सैयद 11 जुलाई 2017 को सबसे हाल में अबू साद ओरकजई 25 अगस्त 2018 को ढेर कर दिया गया। इन आतंकियों को आइएस-के में शामिल होने से पहले स्थानीय आतंकवादी कारस्तानियों का, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान में सक्रिय थे, का अनुभव हासिल था।

आइएस-के के विस्तारित रणनीतियों में स्थानीय ही नहीं वैश्विक स्तर के मकसद छिपे हैं। 2015 में जारी एक वीडियो सीरीज में, आइएस-के के मीडिया ऑफिस ने साफ कर दिया कि, “इसमें कोई शक नहीं कि अल्लाह ने हमें खुरासान में बहुत पहले ही जिहाद बख्शा है, और अल्लाह की दुआ से हम खुरासान में आने वाली हर ताकत से मुकाबला करते रहे हैं। यह सब शरिया स्थापित करने के लिए है।”

इसमें आगे कहा गया था, “यह समझ लें कि इस्लामी खिलाफत (खलीफा से जुड़ा) सिर्फ किसी खास देश तक सीमित नहीं है। ये नौजवान हर काफिर के खिलाफ लड़ेंगे चाहे वह पश्चिम, पूर्व, दक्षिण या उत्तर हो।”

इराक और सीरिया में मौजूद इस्लामिक स्टेट के नेतृत्व की ही तरह, आइएस-के दक्षिण और मध्य एशिया में खिलाफत (खलीफाई राज्य व्यवस्था) की स्थापना करना चाहता है जो शरिया के कानूनों से चलेगा और जो पहले इस पूरे इलाके के मुस्लिमों तक और फिर पूरी दुनिया में कायम होगा। आइएस-के के लिए अंतरराष्ट्रीय सरहदें बेमानी हैं और इसका दायरा अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों की सीमाओं से परे हैं।

यही नहीं, इसकी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं में, “अल-उकाब का परचम येरुसलम और व्हाइट हाउस तक फहराने की है। इसमें इजरायल और अमेरिका दोनों को हराने का भाव शामिल है। आइएस-के की विचारधारा अपने इलाके को विदेशी ‘क्रूसेडरों’(जिहादियों) से छुटकारा पाने की है जो मुस्लिमों को ‘फुसलाते’हैं और उन लोगों को दंडित करने की हैं, जिन्होंने मजहब छोड़ दिया है जिसमें सुन्नी अफगान नेशनल आर्मी के फौजियों से लेकर हजारा शिया तक शामिल हैं। हालांकि इस बात के सुबूत नहीं है कि इस्लामिक खुरासान ने अमेरिका की मुख्य भूमि के खिलाफ कोई साजिश अभी अमल में लाई हो, लेकिन इसने अपने आधिकारिक मीडिया चैनलों पर अमेरिका की खिल्ली उड़ाई है और पश्चिम में अकेले दम पर हमलों का आह्वान किया है।

आइएस-के अपनी वैश्विक रणनीति को विभिन्न परिस्थितियों में स्थानीयता के हिसाब से तैयार करता है। मसलन, कश्मीर में, इसकी रणनीति अलग है। इसे यह समूह अपनी रणनीति के लिहाज से मुफीद मान रहा है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आइएस-के की रणनीति सत्ता में बैठी सरकार को हटाने की रही है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में आम लोगों की आस्था कम करने की है। उसका मकसद, राष्ट्रों में अस्थिरता पैदा करना है। हाल ही में, 2018 में अफगानिस्तान में संसदीय चुनावों में, आइएस-के ने नंगरहार प्रांत में नागरिकों को धमकाया था, “हम प्रांत के मुसलमानों को चुनाव केंद्रों के पास जाने से सावधान करते हैं, और हमारी सिफारिश है कि वे उनसे दूर रहें ताकि उनकी जान की रक्षा हो सके, क्योंकि ये हमारे निशाने पर हैं।”

आइएस-के ने बहुलतावाद की प्रक्रिया को रोकने और उसमें बाधा पहुंचाने की अपनी चेतावनी के बाद अफगान संसदीय चुनाव के दौरान मतदान केंद्रों और सुरक्षा बलों पर कई सारे हमलों का दावा किया।

ऑपरेशन और रणनीति

सीएसआइएस की सलाफी-जिहादी समूहों पर ट्रांस-नेशनल थ्रेट प्रोजेक्ट की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, आइएस-के के पास अक्तूबर 2018 में 600 से 800 के बीच आतंकवादियों की फौज थी। रिपोर्ट के मुताबिक, यह संख्या 2016 के मुताबिक थोड़ी कम थी। जब इसके आतंकियों की संख्या 3000 से 4000 के बीच थी। आतंकियों की संख्या में कमी के बावजूद, आइएस-के अपनी योजनाओं और अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर हमलों में जुटा रहा। साथ ही इसने अपनी हिंसक विचाराधारा के बीज पश्चिम में भी जारी रखे। मिसाल के तौर पर, 2016 में जब इस्लामिक स्टेट ने ऑर्लेंडो, फ्लोरिडा और मैगननविले, फ्रांस में हमले किए तो आइएस-के ने इसकी तारीफ के वीडियो रिलीज किए थे।

2017 की जनवरी से आइएस-के ने अफगानिस्तान में नागरिकों पर 84 हमले किए और पाकिस्तान में 11 हमलों को अंजाम दिया। अफगानिस्तान में इसके हमलों में 15 प्रांतों में 819 नागरिक मारे गए।

अक्तूबर 2018 में अफगानिस्तान में संसदीय चुनावों के दौरान आइएस-के का पूरा ध्यान काबुल और मुख्य प्रांतीय राजधानियों पर केंद्रित रहा और ऐसा अंदेशा है कि आने वाले वक्त में भी ऐसा ही पैटर्न जारी रहेगा।

जनवरी 2017 के बाद से आइएस-के ने 338 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया और मोटे तौर पर यह सरकारी संस्थानों और चुनावी संस्थानों पर हमले से हुआ। यानी, मकसद साफ है आइएस-के स्थानीय रणनीति अपनाता है और राज्य व्यवस्था को बेमानी बनाने के लक्ष्य की दिशा में काम करता है ताकि लोकतंत्र में लोगों की आस्था कमजोर हो जाए।
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