डॉ. ईश्वर बैरागी
कोरोना के नियमों की अनदेखी कर जयपुर में एक जनाजे में शामिल लोगों के मामले को राजस्थान उच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने कहा है कि इस मामले पर दर्ज एफआईआर को अदालती की कार्यवाही के साथ नत्थी की जाए
गत 16 अगस्त को राजस्थान उच्च न्यायालय ने कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन तोड़कर हाजी रफअत अली खान के जनाजे में हजारों लोगों के शामिल होने के मामले में दर्ज एफआईआर को रिकॉर्ड पर लेने के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति और न्यायाधीश मनोज व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश प्रकाश ठाकुरिया की जनहित याचिका पर दिए।
याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाकर अंतिम संस्कार में सिर्फ बीस लोगों को ही शामिल करने की अनुमति दी थी। लेकिन राज्य सरकार लॉकडाउन तोड़ने वालों को लेकर मजहबी आधार पर भेदभाव कर रही है। बता दें कि 31 मई को मुस्लिम मजहबी नेता हाजी रफअत अली खान के जनाजे में सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए थे। पुलिस अधीक्षक सहित अन्य अधिकारियों के मौके पर होने के बाद भी इन लोगों पर कार्रवाई नहीं की गई। इसी तरह जैसलमेर में गाजी फकीर के जनाजे में पांच सौ से अधिक लोग मौजूद थे, लेकिन उन पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
दूसरी ओर धौलपुर में एक पूर्व विधायक ने मंदिर स्थापना के लिए गांव वालों को बुलाया था। मौके पर पांच सौ लोगों के पहुंचने पर राज्य सरकार ने कलेक्टर, डीजीपी और एसपी को नोटिस जारी कर दिए। इसी तरह हिंदू मंदिरों में लाउडस्पीकर के उपयोग पर पाबंदी लगा दी गई है, जबकि दूसरी ओर पांच समय की अजान में इसके उपयोग पर पाबंदी नहीं है। याचिका में गुहार लगाई गई है कि जनाजे में भीड़ रोकने में असफल रहे पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
इस मामले में उच्च न्यायालय ने पत्रकार जितेश जेठानंदानी को भी पक्षकार बनाया है।
उल्लेखनीय है कि 27 अप्रैल को जैसलमेर जिले में गाजी फकीर और 31 मई को जयपुर में रफत अहमद का जनाजा निकला था। दोनों ही जगह पर प्रशासन की मौजूदगी में हजारों की भीड़ उमड़ी। कांग्रेस के जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहे। जैसलमेर में गाजी फकीर के बेटे और राजस्थान सरकार में वक्फ और अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री सालेह मोहम्मद मौजूद रहे। वहीं जयपुर में कांग्रेस विधायक रफीक खान जनाजे की भीड़ में शामिल थे। प्रशासनिक अमला भीड़ की सुरक्षा व्यवस्था में जुटा रहा। बाद में लीपापोती के लिए पुलिस को बलि का बकरा बनाकर एकाध अधिकारियों पर कार्रवाई कर इतिश्री कर ली गई।
जयपुर में पुलिस ने भी जनाजे में शामिल भीड़ को नहीं रोका, बल्कि पुलिस उन्हें सुरक्षा दे रही थी। पुलिस की कई गाड़ियां भीड़ के आगे-पीछे चल रही थीं। खुद पुलिस उपायुक्त अनिल परिस देशमुख, आरपीएस सुमित शर्मा, सुनील शर्मा, रामगंज थानाधिकारी बीएल मीना, सुभाषचौक थानाधिकारी भूरीसिंह मौजूद थे। हालांकि बाद में पुलिस ने स्थानीय विधायक रफीक खान सहित 11 लोगों के खिलाफ महामारी अधिनियम और धारा 144 के तहत मुकदमा दर्ज किया था, लेकिन इसमें आगे कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
वहीं इसके विपरीत 29 अप्रैल को धौलपुर में हिन्दू समाज के धार्मिक आयोजन में भीड़ जुटी तो सीधा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्थानीय पुलिस अधीक्षक को को फटकार लगाई थी। दरअसल, धौलपुर जिले के बसेड़ी से पूर्व भाजपा विधायक सुखराम कोली ने हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अखंड रामायण का पाठ कराया। इसमें 500 से अधिक लोग जुट गए। मुख्यमंत्री गहलोत ने वर्चुअल बैठक में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को सबके सामने फटकार लगाते हुए मुख्य सचिव को भी आदेश दिया था कि वे इस मामले का स्पष्टीकरण स्थानीय प्रशासन से तलब करें।
एक अन्य उदाहरण बीकानेर का है। राजस्थान के जाने-माने शंकरी परम्परा के महान संत व 'बीकानेर के विवेकानंद' नाम से ख्यात स्वामी संवित सोमगिरीजी महाराज का मई में निधन हुआ। उनकी बैकुंठी निकालकर भू समाधि दी गयी। शिवबाड़ी मठ के आश्रम परिसर के अंदर ही बाकायदा कोरोना गाइडलाइन की पालना करते हुए समाधि दी गई। लोगों को अंतिम दर्शन के लिए भी नहीं आने दिया था। प्रशासन पूर्णतया जागरूक रहा और शिवबाड़ी मंदिर की ओर जाने वाले रास्तों को बंद कर दिया गया था।
ऐसा ही एक अन्य उदाहरण है। जैन संत शेर-ए-मेवाड़ और श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि जी का सिंतम्बर, 2020 में उदयपुर के एक निजी अस्पताल में कोरोना से निधन हुआ था। मुनि जी का अंतिम संस्कार उनकी दीक्षा स्थली उदयपुर जिले में कड़िया गांव में किया गया, लेकिन उनके भक्तों को उसमें शामिल नहीं होने दिया गया। प्रशासन ने भारी पुलिस बल तैनात कर उनके अंतिम दर्शन करने आए भक्तों को वहां से खदेड़ दिया था। वहीं किसी मुसलमान के निधन पर ऐसा नहीं किया गया। इसलिए सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि वह मजहब के अधार पर लोगों के साथ भेदभाव करती है।
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