संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला और बाल हितों के लिए बनाई गई एक कमेटी ने पाकिस्तान में महिलाओं के बारे में जुटाए गए विवरण में पाया कि अल्पसंख्यक महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं और सरकारें उनके प्रति सौतेला व्यवहार करती हैं
पूरे देश ने टेलीविजन पर देखा कि किस प्रकार पाकिस्तान के रहीमयार खान में एक नवनिर्मित सिद्धिविनायक मंदिर में उपद्रवियों ने तोड़फोड़ की और मंदिर में स्थित प्रतिमा को तोड़कर अपवित्र किया। आए दिन पाकिस्तान में इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। इसी प्रकार अभी कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश के अंदर भी एक साथ वहां पर पाकिस्तान की तरह ही हिंदुओं के चार मंदिरों में तोड़फोड़ की गई और वहां पर स्थापित श्रद्धा के केंद्रों को तोड़ा गया और अपवित्र किया गया। यहां की सरकारों ने घड़ियाली आंसू बहाने के लिए बाद में कार्रवाई करने की औपचारिकता की परंतु वह सिर्फ दिखावा मात्र थी। यकीनन इसी प्रकार की कर्रवाई से वहां के अल्पसंख्यकों हिंदुओं और ईसाइयों को मूलभूत सुरक्षा की भावना नहीं मिलती दिखाई दे रही है, जो पूरे विश्व की मानवता को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त है।
इसी संदर्भ में कहां जा सकता है कि हर व्यक्ति को अपनी पुत्री सबसे प्यारी होती है और हर व्यक्ति अपनी पुत्री के रूप में अपने स्वाभिमान को देखता है। परंतु पाकिस्तान में आए दिन हिंदुओं और सिखों की नाबालिक लड़कियों को उठाकर उन्हें जबरदस्ती इस्लाम कबूल करा कर उनका निकाह मुस्लिमों से कर दिया जाता है। और खासकर ऐसे अधेड़ों से जिनके बच्चे इन लड़कियों की उम्र से भी ज्यादा बड़े होते हैं। अभी पिछले 36 दिनों में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में चार हिंदू लड़कियों का इसी प्रकार अपहरण किया गया। कोरोना के समय लॉकडाउन में सबको रोजाना के खाने—पीने की और स्वास्थ्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी कठिनाई हो रही थी और सरकारें अपने नागरिकों को हर प्रकार का सहयोग करने का प्रयत्न कर रही थीं। इसमें भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के प्रति गैर सहानुभूति पूर्ण व्यवहार वहां की सरकारों ने किया। इस पूरे माहौल से खिन्न होकर पिछले 12 महीने में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की 125 स्त्रियों ने आत्महत्या की है, जो यह दर्शाता है कि वहां की अल्पसंख्यक आबादी कितना अपने आप को बेबस महसूस कर रही है। इसमें सबसे चिंता का विषय यह है कि पाकिस्तान की पुलिस और न्याय व्यवस्था भी इस प्रकार अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के प्रति उदासीन है, जिसके कारण वहां के अतिवादियों का अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने के लिए मनोबल बढ़ता है।खालिस्तानी समर्थक पाकिस्तान को अपना सबसे बड़ा हितैषी मानते हैं, परंतु अभी कुछ समय पहले ही ननकाना साहिब के एक ग्रंथी की बेटी का अपहरण किया गया और उसका निकाह एक मुस्लिम के साथ कर दिया गया। इसके साथ—साथ गरीब हिंदू और ईसाई परिवारों की लड़कियों को बहला-फुसलाकर चीन में ले जाकर बेच दिया जाता है, जहां उन्हें अच्छे-अच्छे सपने दिखाने का वायदा किया जाता है, परंतु असलियत में उन्हें वहां पर चीनियों के भोग—विलास का सामान बना दिया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला और बाल हितों के लिए बनाई गई एक कमेटी ने पाकिस्तान में पूरा विवरण वहां की महिलाओं के बारे में जुटाया और उन्होंने पाया कि वहां पर अल्पसंख्यकों की महिलाओं पर अत्याचार और उनके प्रति सरकारें भी सौतेला व्यवहार कर रही हैं। इसका संज्ञान लेते हुए इस कमेटी ने पाकिस्तान सरकार को सुझाव दिया है कि अल्पसंख्यक और खासकर उनकी महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों जैसे—अपहरण, हत्या, बलात्कार इत्यादि का संज्ञान शीघ्र से शीघ्र लिया जाना चाहिए और इनकी जांच और न्याय एक निर्धारित समय में क्रमबद्ध तरीके से किए जाने चाहिए। परंतु वहां की सरकारें मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए इस कमेटी की रिपोर्ट पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। मुस्लिम कट्टरपंथी अल्पसंख्यक महिलाओं और उनके धर्मस्थलों पर हमला करके उनमें असुरक्षा की भावना पैदाकर इस्लाम कुबूल करने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
बता दें कि आजादी के समय पाकिस्तान में 22 फीसदी थे, जो आज घटकर केवल 1.6 % रह गई है। इसी प्रकार बांग्लादेश में 1971 में यह आबादी 14 फीसदी थी, जो अब घटकर केवल 6 फीसदी रह गई है। इन दोनों देश में ज्यादातर अल्पसंख्यक या तो डर की भावना से मजहब परिवर्तन कर लेते हैं या भारत की तरफ पलायन कर जाते हैं। इस पलायन और असुरक्षा की भावना को दूर करने के लिए पाकिस्तान सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। इसकी झलक इसी बात से मिलती है कि ना तो पाकिस्तानी सेना में और ना ही वहां के अन्य सिविल सरकारी विभागों में अल्पसंख्यकों को उसी प्रकार स्थान दिया गया, जिस प्रकार भारतवर्ष में दिया जाता है। पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों की उपरोक्त स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून पारित किया था, जिसमें प्रावधान किया की प्रताड़ित हिंदू अल्पसंख्यक यदि पड़ोसी देशों से भारत में शरण लेते हैं तो उन्हें यहां पर नागरिकता प्रदान की जाएगी।
उपरोक्त स्थिति में होना चाहिए था कि भारत के पंथनिरपेक्षता की वकालत करने वाले इन राजनेताओं और समाजसेवियों को पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों के प्रति हो रहे अत्याचारों और जुल्मों के विरुद्ध भी आवाज उठानी चाहिए थी। परंतु ऐसा आज तक नहीं हुआ।
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