क्या है अटल बिहारी वाजपेयी होने का अर्थ! और उनके न होने से क्या अंतर पड़ता है! वर्ष 2018 में अरसे से निश्चेष्ट अटलजी कुछ भी तो नहीं कर रहे थे! फिर उन्हें लेकर ऐसी संवेदनशीलता! ऐसा अपार जनज्वार! करोड़ों हृदयों के टूटने की गड़गड़ाहट…आज भी उनकी स्मृति में नम हो जाने वाली आँखे! यह सब क्यों.. प्रश्न वही है! आखिर क्या थे अटल जी ?
उत्तर जन मानस में, इसकी स्मृतियों में स्पष्ट हैं। क्या थे अटलजी ? उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड के निर्माता अटलजी। ऑपरेशन शक्ति (पोकरण-2) परमाणु परीक्षण करवाकर दुनिया में भारत को नए सिरे से प्रतिष्ठा दिलाने वाले अटलजी। चंद्रयान-1 परियोजना की मंजूरी देने वाले अटलजी। देश को जमीन पर, हवा में, तरंगों में, नदियों में, सड़कों में, जुड़ाव और एकजुटता देने वाले अटलजी। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना शुरू करने वाले अटलजी। ‘सागरमाला परियोजना’ की शुरुआत करने वाले अटलजी। देश को स्वर्ण चतुर्भुज देने वाले अटलजी। उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम गलियारे को साकार करने वाले अटलजी। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना वाले अटलजी। दिल्ली मेट्रो परियोजना लाने वाले अटलजी। डॉ. भूपेन हजारिका सेतु निर्माण कराने वाले अटलजी। जम्मू और बारामूला रेल लिंक और ‘चेनाब ब्रिज’ देने वाले अटलजी। रक्षा खुफिया इकाई, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसी संस्थाओं का सृजन करने वाले अटलजी। सूचना प्रौद्योगिकी में भारत को उत्कर्ष पर ले जाने वाले अटलजी। सर्वशिक्षा अभियान देने वाले अटलजी। प्रवासी भारतीय सम्मान शुरू करने वाले अटलजी। करगिल युद्ध के समय देश को विजयी नेतृत्व देने वाले अटलजी…कहां तक याद करें।
यदि क्षेत्र, भाषा, कुनबे पर पलता और सामाजिक दरारों को गहरा करने वाला राजनैतिक फलक क्रूरता, कपट और हल्केपन की ऊंची लहरों में मदमत्त होता दिखे तो अटलजी के सदन-संदर्भ दिए जाते हैं। सियासत के समुद्र में राह दिखाने वाला अविचल प्रकाश स्तंभ।
भारत की मिट्टी में जन्म लेने वाले सौभाग्यशाली राजनेताओं में ऐसे विरले ही हैं, जो अपनी कला, संस्कृति और साहित्य से निरंतर जुड़े रहकर राजनीति के चक्रव्यूहों के बीच भी अपनी लेखनी को विराम नहीं देते। उदारमना एवं कर्मठ राजनेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की छवि एक कुशल राजनेता, दूरद्रष्टा तथा कालजयी कवि की रही। उनकी अद्भुत वक्तृत्व शैली की धूम पूरे देश में है तो इसमें रंच मात्र अतिशयोक्ति नहीं है। साथ ही वैश्विक मुद्दों पर भारत की कूटनीतिक दृढ़ता को रेखांकित करने वाले पहले भारतीय राजनेता भी अटल जी ही थे। स्वतंत्रता के बाद भारत के इतिहास में शायद ही कोई राजनेता होगा जो इतने लंबे समय तक राजनीति के केन्द्र में सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ कायम है।
लेखन कर्म से अपनी जीवन यात्रा शुरू करने वाले अटलजी के जीवन के हर पड़ाव पर संघर्षशीलता एवं उतार-चढ़ाव दिखता है। अटलजी को कुशल वक्ता का गुण एवं काव्य कला अपने पिता पं. कृष्णबिहारी वाजपेयी से विरासत में मिली। उनके पिता ग्वालियर राज्य के विख्यात कवि तथा कुशल वक्ता थे। अटलजी के बाबा भी संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान थे, परन्तु अटलजी की वाणी पर जिस प्रकार साक्षात् सरस्वती विराजती रहीं, वह अध्यवसाय से अर्जित उपलब्धि से इतर ईश्वरप्रदत्त कृपा अनुभव होती है।
क्या थे अटलजी ? एक बार किसी पत्रकार ने कौतुकवश पूछ लिया था-अटलजी, ये शब्द आपकी जिह्वा पर आते कैसे हैं? क्या कोई दिव्य प्रेरणा? उत्तर में अटलजी किसी बच्चे की तरह शरमा गए, सकुचा गए और विषय बदलने का इंतजार करने लगे।
और उससे भी पहले कितनों को याद है अटलजी का विदेशमंत्रित्व काल ? कार्टर की भारत यात्रा कई लोगों को याद होगी। लेकिन मोशे दायन का भारत आना शायद पहली बार इस्रायल के किसी शीर्ष नेता का भारत दौरा था। भारत ईरान का भी मित्र था और इस्रायल का भी। चीनी हेकड़ी तब भी थी, और यह अटलजी ही थे, जो वियतनाम पर चीनी हमले के विरोध में यात्रा अधूरी छोड़ कर लौट आए थे।
अटलजी का व्यक्तित्व अत्यंत व्यापक है, परन्तु उनमें विद्यमान कालजयी कवि की चर्चा न करना, उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय होगा। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, जीवन संघर्ष, विश्वशांति एवं राजनेता के रूप में उनके मन के अंदर की उथल-पुथल का बखूबी वर्णन है। जब उन्होंने लिखा-
‘खड़े देहली पर हो किसने पौरुष को ललकारा
किसने पापी हाथ बढ़ाकर मां का मुकुट उतारा ?’
उनकी एक दूसरी कविता में लंबे संघर्ष से मिली आजादी की सुरक्षा की नसीहत थी—
‘उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जायें, जो खोया उसका ध्यान करें।’
संस्कारित व्यक्ति ऊंचे पद पर पहुंच कर भी अपने सद्गुण कभी नहीं छोड़ता।
उन्होंने लिखा था-
हिन्दू तन मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय।
अपने शब्दों की ही तरह अटलजी भी शाश्वत हैं, वे साक्षात् शब्द थे। कवित्व का शब्द, हुंकार का शब्द, राष्ट्र का शब्द, आशा का शब्द, भारतीयता का शब्द, विश्वास का शब्द, प्रेम का शब्द…। कहते हैं शब्द ब्रह्म है। वह शब्द ही ब्रह्मलीन हो गया उस दिन। लेकिन उस महामानव की अमिट-अटल स्मृति तो यहीं, हम सबके मानस में अंकित है।
(सौजन्य – पाञ्चजन्य आर्काइव)
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