सुनील राय
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या में तेज वृद्धि हो रही है। राज्य की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसके साथ ही जहां यह समुदाय प्रभावी है, वहां की संस्कृति में भी इस्लामी परिवर्तन पर जोर है। कुल जनसंख्या में अनुपात बढ़ने के साथ ही इस समुदाय के अंदाज में भी परिवर्तन परिलक्षित हो रहा
जनसंख्या बढ़ाने के बाद राजनीति और समाज में सब कुछ इस्लाम के अनुसार चले या फिर उसको नियंत्रित करने वाला मुसलमान हो, इसकी आहट अब सुनाई देने लगी है। एआईएमआईएम के नेता असीम वकार ने कहा है कि ‘‘जब 8 प्रतिशत और 12 प्रतिशत जनसंख्या वाली जाति के नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो मुसलमानों की जनसंख्या तो 20 फीसद है। किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया जा सकता? हमारी जनसंख्या सबसे अधिक है। हमारे वोट से सरकार बनती है। इस बार या तो मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाया जाए या फिर उप मुख्यमंत्री से कम पर हम लोग समझौता नहीं करेंगे।’’ उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की जनसंख्या जिस स्तर तक पहुंच चुकी है, उसमें इस तरह की मांग अब राजनीति में सुनाई पड़ती रहेगी।
उत्तर प्रदेश में केवल मुसलमानों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। आबादी बढ़ने के बाद मुसलमानों ने मुहल्लों में तेजी से मस्जिदें बनवाई। सड़कों के किनारे मजार बनाए गए। उत्तर प्रदेश में रामपुर और अमरोहा दो ऐसे जनपद हैं जहां मुसलमानों की जनसंख्या हिन्दुओं से अधिक है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जनपद ऐसे हैं जहां हिन्दू और मुस्लिम जनसंख्या में बहुत कम अंतर रह गया है। मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ने के साथ कई प्रकार की मुश्किलें समाज में सामने आने लगी हैं। घुसपैठ, आतंकवाद, लव जिहाद और कन्वर्जन जैसी चुनौतियां उभर कर सामने आई हैं।
लव जिहाद
उत्तर प्रदेश में गत दो वर्ष में लव जिहाद की 60 से ज्यादा घटनाएं दर्ज हुर्इं। ये लव जिहाद की वे घटनाएं हैं जिनमें एफआईआर दर्ज कराई गई या फिर कोई अपराध हुआ। इसके अतिरिक्त कुछ घटनाएं ऐसी भी होंगी जिसमें रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई। वर्ष 2020 के अगस्त माह में कानपुर नगर जनपद के एक ही इलाके की पांच लड़कियां लव जिहाद की शिकार हुर्इं। कानपुर नगर की सिर्फ जूही कालोनी से तीन हिन्दू लड़कियां, मुस्लिम लड़कों के द्वारा भगाई गर्इं। जूही कॉलोनी की निवासी शालिनी यादव को मोहम्मद फैसल ने अपने प्रेमजाल में फंसाया और फिर निकाह कर लिया। जूही कॉलोनी के रहने वाले दो युवकों, दोनों का नाम शाहरुख है, ने कल्याणपुर की आवास विकास कॉलोनी में रहने वाली दो सगी बहनों को अपने प्रेम जाल में फंसाया और निकाह कर लिया। जूही कॉलोनी का ही मोहम्मद मोहसिन एक हिन्दू लड़की को भगाने की तैयारी में था, परंतु घरवालों की सतर्कता से मामला पकड़ में आ गया।
कन्वर्जन न करने पर कत्ल
मेरठ जनपद में शमशाद ने फेसबुक पर अपना नाम अमित गुर्जर बताकर प्रिया को अपने प्रेमजाल में फंसाया। प्रिया की दस वर्षीया बेटी थी। शमशाद प्रिया पर कन्वर्जन का दबाव बना रहा था। जब बात नहीं बनी, तब जुलाई, 2020 में मां-बेटी की हत्या करने के बाद शवों को घर के अन्दर ही दफन कर शमशाद उसी घर में रह रहा था। जब पुलिस ने गहनता से जांच शुरू की तो शमशाद फरार हो गया। 16 जुलाई, 2020 को पुलिस मुठभेड़ में शमशाद के पैर में गोली लगी। घायल होने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर अस्पताल में भर्ती कराया। घर की खुदाई करने पर मां-बेटी के शव बरामद हुए।
देवबंद की आतंकी तालीम
एक दौर था जब कहा जाता था कि हर मुसलमान, आतंकी नहीं है परंतु समय के साथ इस कथन पर भरोसा घट गया हैं। विगत वर्षों में हुई आतंकी घटनाओं में सहारनपुर के देवबंद की कोई न कोई भूमिका अवश्य रही है। दिसंबर, 2018 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी, दिल्ली पुलिस एवं उत्तर प्रदेश की एटीएस ने संयुक्त रूप से दिल्ली और उत्तर प्रदेश में 17 जगहों पर छापा मारा था और 10 आतंकियों को गिरफ्तार किया था। आतंकी सीरियल बम विस्फोट करके पूरे देश में दहशत फैलाने का षड्यंत्र रच रहे थे। जिन जगहों पर विस्फोट किए जाने की योजना थी, उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय, भाजपा कार्यालय, दिल्ली पुलिस मुख्यालय एवं बड़े नेताओं का नाम शामिल था।
जैश-ए-मोहम्मद जैसे खतरनाक आतंकी संगठन के लिए देवबंद ‘सॉफ्ट टॉरगेट’ है। यहां के मदरसों में पढ़ रहे युवकों को आतंकी बनाना, उनके लिए ज्यादा आसान कार्य है। मदरसों में मजहबी शिक्षा लेकर आतंकी बनने के साथ ही, ये अब आतंकवादी, छात्र के वेश में छात्रावासों में शरण ले रहे हैं और अपने खतरनाक इरादों को अंजाम दे रहे हैं। वर्ष 2019 में गिरफ्तार जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादी बिना दाखिले के मदरसे के छात्र बनकर छात्रावास में रह रहे थे। आकिब अहमद मलिक, पुलवामा जनपद के ठोकर मुहल्ला, चंदवामा का रहने वाला था और दूसरा शाहनवाज तेली, कुलगाम जिले के नूनमई-यारीपुरा गांव का मूल निवासी था। ये दोनों देवबंद के मुहल्ला खानकाह स्थित नाज मंजिल छात्रावास में रह रहे थे। एटीएस ने इन दोनों को गिरफ्तार किया।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओमप्रकाश सिंह ने उस समय बताया था कि आतंकी आकिब के फोन से जैश-ए-मोहम्मद के चीफ, मौलाना मसूद अजहर के वीडियो मिले हैं। पूछताछ में कुछ ऐसे लोगों के बारे में जानकारी मिली है जिन्हें इन दोनों आतंकियों ने अपने आतंकी संगठन में भर्ती किया है। ये दोनों आतंकी मैसेजिंग के लिए ऐसे ऐप का प्रयोग कर रहे थे जो प्ले स्टोर में नहीं है। इंडियन मुजाहिदीन का शेख एजाज भी सहारनपुर में रहता था। एजाज को पुलिस ने सहारनपुर रेलवे स्टेशन से 2015 में गिरफ्तार किया था। 2017 में मुजफ्फरनगर जनपद और देवबंद इलाके में फैजान सक्रिय था। वह, बांग्लादेश में आतंकी संगठन से जुड़ा था। पुलिस की कार्रवाई की भनक लगते ही वह फरार हो गया था। अक्टूबर 2017 में कोलकाता पुलिस ने रजाउल रहमान को गिरफ्तार किया था। यह भी देवबंद में रह चुका था।
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या
2011 की जनगणना के अनुसार यूपी में 79.73 प्रतिशत हिंदू, 19.26 फीसद मुसलमान, 0.17 प्रतिशत ईसाई और 0.32 फीसदी सिख हैं। धार्मिक जनसंख्या के आंकड़ों के हिसाब से पिछले दस साल में हिंदुओं की आबादी में बढ़ोतरी की रफ्तार 0.88 प्रतिशत घटी है। 2001 की जनगणना में प्रदेश की कुल जनसंख्या के 80.61 प्रतिशत हिंदू थे। 2011 की जनगणना के आंकड़ों में वे 79.73 प्रतिशत रह गए जबकि मुस्लिमों की आबादी 0.77 प्रतिशत बढ़ गई। मुसलमानों के अलावा ईसाइयों की आबादी बढ़ी है। इनके अलावा पिछले दस साल में सिखों व बौद्धों की आबादी .08-08 प्रतिशत तथा जैनों की आबादी में .25 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
मुरादाबाद और रामपुर जिले में मुस्लिमों की आबादी हिंदुओं से अधिक है। मेरठ, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, सहारनपुर, देवबंद, शामली, बिजनौर और बागपत जनपद में मुस्लिमों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।
उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना कहते हैं, ‘‘बीते दशक में मैंने विधानसभा में कई बार जनसंख्या नियंत्रण पर सवाल उठाया। मगर सपा और बसपा की सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान ने एक बार विधानसभा में मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि जब कोई बच्चा पैदा होता है तो दो हाथ और दो पैर भी लेकर पैदा होता है। मतलब कि वह बड़ा होकर परिश्रम करके जीवनयापन कर लेता है।’’
जनसंख्या बढ़ने से सरकार की योजना का लाभ सभी को नहीं मिल पाता। गरीबी रेखा के नीचे और ऊपर के आय वर्ग में लोगों का वर्गीकरण, इसी जनसंख्या के कारण करना पड़ता है। अस्पताल में इलाज और दवा हर किसी के लिए उपलब्ध कराना एक चुनौती है। उसके बावजूद जितने भी मुस्लिम नेता हैं, वे जनसंख्या नियंत्रण के बारे में कोई बात नहीं करते। चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना कहते हैं, ‘‘इस देश की यह बेहद कड़वी सचाई है कि नसबंदी के बाद कांग्रेस की दुर्दशा देखकर अन्य राजनीतिक दल इस मुद्दे से पीछे हट गए। जनसंख्या के अधिक होने की वजह से सरकार को अपनी योजनाओं का लाभ सभी तक पहुंचाने में अत्यंत दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इस बात को सभी जानते हैं मगर कोई भी आगे आकर खतरा मोल लेने को तैयार नहीं है।’’
आबादी बढ़ी तो हुआ स्कूलों का इस्लामीकरण
पूर्वांचल के कुछ जनपदों में जब मुस्लिम जनसंख्या अधिक हो गई तो वहां प्राथमिक स्कूलों के नाम के साथ इस्लामिया जोड़ दिया गया था। देवरिया जनपद के नवलपुर, रामपुर कारखाना, सामी पट्टी, करमहा, पोखर भिंडा और देसही देवरिया ब्लॉक के हरैया प्राथमिक स्कूल को इस्लामिक स्कूल बनाया गया था। सुल्तानपुर में सात स्कूल, बाराबंकी में चार, सीतापुर में तीन, हरदोई में तीन, फैजाबाद में एक, श्रावस्ती में एक एवं गोरखपुर में एक स्कूल में प्राथमिक स्कूल के आगे इस्लामिया लिख दिया गया था। सुल्तानपुर जनपद के दुबे ब्लॉक में मुस्लिम बहुल गांव बनकेपुर, फिरोजपुर कलां, कुंदवार ब्लॉक के धरावां और गंजेहड़ी, बल्दीराय ब्लॉक के नन्दौली, दोस्तपुर नगर पंचायत, कूड़ेभार ब्लॉक के इटकौली में स्थित प्राथमिक स्कूलों के नाम के साथ ‘इस्लामिया’ लिख दिया गया था। इन स्कूलों में रविवार को कक्षाएं चलती थीं और शुक्रवार को अवकाश रहता था।
बाराबंकी जनपद में बनगवां , मोहल्ला गढ़ी , सतरिख में ‘इस्लामिया’ स्कूल संचालित किये जा रहे थे। श्रावस्ती जनपद में उच्च प्राथमिक विद्यालय सतीचौरा की दीवार पर इस्लामिया प्राथमिक विद्यालय, भिनगा लिखा गया था। सीतापुर के लहरपुर के क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय गांधीनगर, प्राथमिक विद्यालय शाहकुलीपुर एवं प्राथमिक विद्यालय सुल्तानपुर शाहपुर , इस्लामिया के नाम से चल रहे थे। फैजाबाद जनपद में सोहावल खंड शिक्षा क्षेत्र में इस्लामिया प्राथमिक विद्यालय कोला के नाम से संचालित हो रहा था। हरदोई जनपद के बिलग्राम के मलकंठ और बावन में भी इस्लामिया स्कूल चल रहे थे। मतलब साफ है कि जहां पर भी मुसलमानों की जनसंख्या अधिक हो जाती है, वहां पर वे लोग सब कुछ इस्लामिक नियम के अनुसार चलाना चाहते हैं और जब तक जनसंख्या कम रहती है, तब तक सेकुलर रहते हैं।
मुस्लिम आबादी पर हाईकोर्ट की टिप्पणी
वर्ष 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने अपने एक निर्णय में कहा था कि ‘‘मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं रह गए हैं। मुसलमानों को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया सकता। इसे समाप्त किया जाता है।’’ इसके बाद डबल बेंच ने इस निर्णय पर रोक लगा दी थी।
वर्ष 2018 में मेघालय हाईकोर्ट के जस्टिस एसआर सेन ने कहा था, ‘‘मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि कोई भारत को इस्लामिक देश बनाने की कोशिश न करे। अगर यह इस्लामिक देश हो गया तो, भारत और दुनिया में कयामत आ जाएगी। मुझे इसका पूरा भरोसा है कि मोदी जी की सरकार मामले की गंभीरता को समझेगी और जरूरी कदम उठाएगी और हमारे मुख्यमंत्री राष्ट्रहित में हर तरह से समर्थन करेंगे। भारत में कहीं से भी आकर बसे हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, जयंतिया और गारो समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिक घोषित करें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पहले हम भारतीय हैं और फिर अच्छे मनुष्य। जिस समुदाय से हम सम्बन्ध रखते हैं, वह उसके बाद आता है।’’
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