विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की जांच करने वाले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के जांच दल ने अपनी रिपोर्ट 15 जुलाई को कोलकाता उच्च न्यायालय को सौंप दी। इसमें सिफारिश की गई है कि घटनाओं की जांच सीबीआई से कराई जाए। लोगों को राज्य की पुलिस पर भरोसा नहीं रह गया है
पश्चिम बंगाल हिंसा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के जांच दल की रिपोर्ट बाहर आने के बाद कोलकाता से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह रही हैं कि यह रिपोर्ट पश्चिम बंगाल को बदनाम करने के लिए तैयार की गई है, वहीं भाजपा ने इसे बंगाल की हकीकत बताया है।
वास्तव में रिपोर्ट में जिस तरह की बातें लिखी गई हैं वे बहुत ही गंभीर हैं। लिखा गया है कि यदि बंगाल में हिंसा नहीं रुकी तो वहां गणतंत्र की हत्या तय है। यानी राज्य में वही लोग सुरक्षित रहेंगे, जो सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के समर्थक होंगे। तृणमूल के विरोधियों के लिए पश्चिम बंगाल में कोई जगह नहीं रहेगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि जांच आयोग को 1,979 शिकायतें मिलीं। अब तक राज्य में 9,384 लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हुई है और 1,354 लोग बंद हैं। रिपोर्ट में एक अन्य गंभीर बात यह कही गई है कि 97 प्रतिशत आरोपी खुलेआम रहे हैं। इन सबको देखते हुए ही जांच दल ने अनुशंसा की है कि बंगाल में हत्या और दुष्कर्म के मामलों की जांच सीबीआई से कराई जाए। इसके साथ ही यह भी लिखा गया है कि अन्य गंभीर अपराधों की जांच के लिए एसआईटी का गठन हो और किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में निगरानी समिति बने। रिपोर्ट में पीड़ितों के पुनर्वास करने, उन्हें सुरक्षा देने और उनकी आजीविका की व्यवस्था करने की भी बात कही गई है। जांच दल ने यह भी कहा है कि घटनाओं पर निगरानी रखने के लिए हर जिले में एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक की तैनाती हो।
रिपोर्ट में नंदीग्राम में ममता बनर्जी के पोलिंग एजेंट शेख सुफियान, विधायक शौकत मोल्ला, राज्य सरकार में मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक, विधायक पार्थ भौमिक, विधायक खोकन दास, नेता जीबन दास, उदयन गुहा आदि पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कहा गया है कि इनका व्यवहार किसी गुंडे से कम नहीं रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रविन्द्रनाथ ठाकुर की धरती पश्चिम बंगाल में ‘कानून का राज’ नहीं, बल्कि ‘शासक का कानून’ चल रहा है। यानी ममता जो बोलती हैं, उसे ही कानून मानकर राज्य व्यवस्था काम कर रही है। यानी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था को ताक पर रख दिया गया है। इसलिए लोग यह कहने लगे हैं, ''न कागज, न बही, ममता जो कहे वही सही।''
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