हिंसा कोई भी करे, लोकतंत्र में यह स्वीकार्य नहीं है। किन्तु विसंगति देखिए, दिसंबर 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एंटीफा से जुड़े एक हत्यारे पर कार्रवाई को कॉमरेड की राष्ट्रपति द्वारा हत्या बताते हुए एंटीफा के लोग कार्रवाई का सप्ताह मनाने की तैयारी कर रहे थे। तब उन्होंने जमकर हिंसा की। क्या एंटीफा की गतिविधियों से लोग उत्पीड़ित नहीं होते? ये एंटी फासिस्ट-सबसे बड़े फासिस्ट हैं।
हितेश शंकर
● चुनाव सुधार रोकने के लिए अमेरिका के टेक्सॉस से वाशिंगटन की दौड़ लगाते वामपंथी लोकतंत्र बचाने की मुहिम पर हैं।
● भारत में किसानों को आगे कर आढ़तियों के लिए हिंसक आंदोलन की आग सुलगाते वामपंथी लोकतंत्र में 'खेती' बचाने की मुहिम पर हैं।
● भारत में कंगना रनौत और अमेरिका में मेल गिब्सन सरीखों की अभिव्यक्ति रौंदते-गरियाते वामपंथी लोकतंत्र में 'अभिव्यक्ति की आजादी' बचाने की मुहिम पर हैं।
पूरे विश्व की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में वामपंथ का चेहरा देखें तो पाएंगे कि ये घोर अलोकतांत्रिक हैं परंतु वे लोकतंत्र को नष्ट करने को ही लोकतंत्र को बचाना कहते हैं। यह उलटबांसी और जनता, विशेषकर युवाओं को ' कूल'' या कहिए 'फैशनेबल' हथकंडों से भ्रमित करना ही उनके जीवन का आधार है।
हाल-फिलहाल के अलोकतांत्रिक आंदोलनों को याद करें… आधुनिक विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है अमेरिका। हम उनके चुनाव नतीजों पर बात नहीं करते, परंतु लोकतंत्र का पर्व वहां एक हिंसक आंदोलन की प्रतिच्छाया में चला। यह आंदोलन था ब्लैक लाइफ मैटर (बीएलएम), जिसके पीछे था वामपंथी मुखौटा -एंटीफा। एंटीफा शब्द बना है एंटी फासिस्ट से। एंटीफा एक अतिवादी कम्युनिस्ट संगठन है और इसे चीन, रूस और कुछ जर्मन संगठनों से आर्थिक सहायता मिलती है।
इस आंदोलन में अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने का एक दिलचस्प खेल चल रहा था। वाम खेमे ने इसमें अश्वेतों को, एशियाइयों को और खासकर मुस्लिमों को रणनीतिक तरीके से लामबंद किया। खूब हिंसा हुई । किन्तु इस पूरे चुनाव के दौरान एंटीफा द्वारा की गई हिंसा की कोई बात नहीं हुई, केवल रिपब्लिकन की हिंसा की बात हुई।
हिंसा कोई भी करे, लोकतंत्र में यह स्वीकार्य नहीं है। किन्तु विसंगति देखिए, दिसंबर 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एंटीफा से जुड़े एक हत्यारे पर कार्रवाई को कॉमरेड की राष्ट्रपति द्वारा हत्या बताते हुए एंटीफा के लोग कार्रवाई का सप्ताह मनाने की तैयारी कर रहे थे। तब उन्होंने जमकर हिंसा की। किस्सा यह था कि 29 अगस्त, 2020 को तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थक जा रहे थे। एंटीफा के एक अतिवादी माइकल रेनोल ने उन पर गोली चला दी जिसमें एक की मृत्यु हो गई। पुलिस की कार्रवाई में माइकल भी मारा गया। इस हत्यारे पर कार्रवाई के विरुद्ध एंटीफा माहौल बना रही थी।
ऐसी ही एक और घटना हुई। जॉर्ज फ्लॉएड नामक एक व्यक्ति, (जो पूर्व में डकैती के जुर्म में सजा पा चुका था) दो लोगों के साथ एक स्टोर में गया। उस स्टोर का मालिक अरबी था। फ्लॉएड ने वहां फर्जी कूपन चलाया और निकल गया। स्टोर के कर्मचारी ने पुलिस को बुलाया। फ्लॉएड 6.6 फुट लंबा था। उसने पुलिस से भिड़ने और भागने की कोशिश की। परंतु पुलिस ने उसे जमीन पर गिरा दिया। लंबे-चौड़े बदमाश को काबू करती आशंकित पुलिस की सख्ती में यह दुखद रहा कि जॉर्ज दम घुटने से मारा गया।
अगले दिन वामपंथ का मुखौटा-एंटीफा पूरे मामले की चर्चा किए बिना सिर्फ पुलिस की निर्दयता का ढिंढोरा पीटता है। लोग गुस्से में आते हैं, तोड़-फोड़ शुरू कर देते हैं, दंगा भड़क जाता है। प्रश्न है -क्या एंटीफा की गतिविधियों से लोगों का उत्पीड़न नहीं होता? नाम इन्होंने ‘एंटी फासिस्ट’ रख लिया परंतु सबसे बड़े फासिस्ट ये स्वयं हैं। बीएलएम की आड़ में कितनी बड़ी हिंसा हुई है, उसका कोई हिसाब नहीं है। अमेरिका के लगभग 40 शहरों में दंगे हुए जिसमें एंटीफा ग्रुप का हाथ था। एंटीफा ग्रुप ने अमेरिका की राजधानी में सेंट जॉन्स चर्च पर हमला किया और उसे जला दिया। जो वामपंथी बीएलएम के साथ थे, एंटीफा के साथ थे, क्या वे हिंसा से परे होने का दावा कर सकते हैं? क्या वे इससे इनकार कर सकते हैं कि उन्होंने हिंसा के माध्यम से लोकतंत्र के दरवाजे में सुराख करके राह बनाई?
यह घटना नहीं, वामपंथ का मॉडल है— एक और ऐसा मॉडल जिससे लोकतंत्र में आक्रोश बढ़ाने और अराजक तत्वों को आगे बढ़ाने के अवसर गढ़े जाते हैं। ध्यान दीजिए, ऐसी ही घटनाएं दिल्ली में हुर्इं। पहले गड़बड़ी करो, पकड़े जाओ तो निरीह और निर्दोष होने का स्वांग करो, इसके वीडियो बनाओ और वायरल करके पुलिस को निर्दयी बताओ और दंगे फैला दो।
अब अमेरिका में एक नया आंदोलन 'सेव अवर डेमोक्रेसी' के नाम से चल रहा है। टेक्सॉस के डेमोक्रेट्स (वामपंथियों) ने यह मुहिम छेड़ी हुई है। वे भाग-भागे एक विमान में चढ़कर वाशिंगटन गए कि उनके यहां लोकतंत्र को बचाया जाए। लोकतंत्र को बचाने के दावे जो भी हों, नारे कुछ भी लगें परंतु मूल रूप से यह एक विधेयक के विरोध में है। टेक्सॉस राज्य में मतदाता सुधार पर एक विधेयक प्रस्तावित है जिसके बारे में ये कह रहे हैं कि यदि यह विधेयक आया तो इससे मतदाताओं का उत्पीड़न होगा। वे कह रहे हैं कि ये गैरआनुपातिक अल्पसंख्यक हैं। विधेयक आता है तो इससे अल्पसंख्यकों के हितों पर कुठाराघात होगा। यह विधेयक चुनावों की गरिमा बनाए रखने, लोकतंत्र को सुरक्षित रखने और गड़बड़ियां रोकने के लिए और चुनाव की प्रक्रिया ठीक से चल पाए, इसके प्रावधान के साथ है। इसे लेकर डेमोक्रेट्स में खलबली है और वे इसी का विरोध करने टेक्सॉस से वाशिंगटन आए। वे डेमोक्रेट राष्ट्रपति बाइडेन के प्रशासन से टेक्सॉस राज्य में आने वाले एक कानून को रुकवाने में मदद चाहते हैं।
जाहिर है, जिनके लिए हिंसा लोकतंत्र के गढ़ में सेंध लगाने का औजार है, उन्हें चुनाव सुधार, आधार कार्ड, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, इलेंक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और कोई भी पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था रास नहीं आएगी।
ये बताते कुछ और हैं, और करते उलटा हैं। इसी तरीके से लिबरल उदारवादी खेमे में लोगों को भ्रमित करने का पूरा खेल चलता है।
वामपंथ दुनिया में जो भी आंदोलन करता है, शेष स्थानों पर भी उसकी प्रतिच्छाया दिखती है। भारत में भी आप देखेंगे कि जो घोर अलोकतांत्रिक काम थे, वे ये कर रहे थे, यथा, दिल्ली को बंधक बनाने का काम, सीएए से नागरिकता छीने जाने की अफवाह फैलाने का काम। किसी एक की भी नागरिकता आज तक तो गई नहीं। और यदि गई है तो कोई वामपंथी बता दे कि किसकी नागरिकता गई! कहते रहे कि किसानों की उपज के पैसे मारे जाएंगे, लेकिन एक आना भी किसी का मारा गया हो, ऐसी कोई खबर नहीं है, उलटा किसानों को लाभ की खबरें हैं। साफ है, ये लोग फर्जी-फरेबी आंदोलन चला रहे हैं। ये लोग झूठ पोसने-परोसने में माहिर हैं और इनका पूरा तंत्र है। इसे देखना चाहिए विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र के संदर्भ में और विश्व के सबसे जीवंत लोकतंत्र को निशाना बनाने के संदर्भ में। एक तरफ चीन अपनी ताकत बढ़ा रहा है, दूसरी ओर, वामपंथ नए औजारों से विश्व की बड़ी लोकतांत्रिक शक्तियों का शिकार करने निकल पड़ा है। चाहे अमेरिका हो या भारत। इन विषधरों के विषदंत तोड़ना वक्त की जरूरत है।
@hiteshshankar
टिप्पणियाँ