अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) पांथिक स्वतंत्रता के नाम पर भारत को बदनाम करने के लिए 'फर्जी एजेंडा' चलाने में सबसे आगे है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर इसी अमेरिकी आयोग ने हाल ही में भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ का दर्जा दिया था।
फेबियन बॉसार्ट ने टाइम्स ऑफ इजरायल में एक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि यूएससीआईआरएफ धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर भारत को बदनाम करने के लिए ‘फर्जी एजेंडा’ का नेतृत्व कर रहा है। यह ‘द्विपक्षीय संघीय सरकारी इकाई होने का दावा करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरों की निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्ट तैयार करता है’, दक्षिण-एशिया के सबसे बड़े राष्ट्र की छवि को बदनाम करने और बिगाड़ने के लिए एक फर्जी एजेंडा चला रहा है।
इस्लामी समूहों का हथियार
वर्ष 2013-14 के आसपास यह संगठन भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (आईएएमसी) और उत्तरी अमेरिका के इस्लामिक सर्किल (आईसीएनए) जैसे इस्लामी समूहों का प्रमुख हथियार बन गया, जिसके जरिये वे भारत के खिलाफ सुनियोजित तरीके से अपने एजेंडे को फैला सकते थे। इस संगठन में शामिल अधिकांश सदस्य ईसाई मिशनरी से जुड़े हैं। वर्ष 2020 में उनके द्वारा जारी रिपोर्ट में इस संगठन ने भारत को ‘विशेष चिंता वाला देश’ बताया है। इसे 1998 के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (आईआरएफए) के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के विशेष रूप से गंभीर उल्लंघन के दोषी अमेरिका के राज्य सचिव (राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यायोजित अधिकार के तहत) द्वारा नामित किया गया है।
भारत की छवि बिगाड़ना और एफडीआई को प्रभावित करना लक्ष्य
द टाइम्स ऑफ इजरायल में फेबियन बौसार्ट ने लिखा है कि "धार्मिक स्वतंत्रता का विशेष रूप से गंभीर उल्लंघन" शब्द का अर्थ व्यवस्थित, चल रहे, गंभीर धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ का दर्जा देने का तात्पर्यदो बातों से है। पहला, यह दुनिया भर में भारत की छवि को धूमिल करता है और दूसरा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और वैश्विक निवेश दोनों पर बहुत प्रभाव डालता है, क्योंकि जब बड़ी मात्रा में निवेश करने की बात आती है तो देश पीछे हट जाते हैं।
वह आगे लिखते हैं, ‘‘इस संगठन के प्रभावशाली सदस्य, जो अपने फर्जी एजेंडे को बढ़ाने में एक आधार के रूप में काम कर रहे हैं, उनमें अनुरिमा भार्गव शामिल हैं, जो यूएससीआईआरएफ की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट की अध्यक्षता कर रही हैं।’’
वे जॉर्ज सोरोस द्वारा स्थापित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की साथी रही हैं, जो चीन, रूस और भारत के प्रबल आलोचक हैं, अपने नेताओं को तानाशाह और उनके शासन को अधिनायकवादी व्यवस्था के रूप में दावा करते हैं।
दूसरे सदस्य हैं जॉर्ज सोरोस, जो वर्ष 2018 में यूएससीआईआरएफ के आयुक्त चुने गए। अनुरिमा भार्गव 2012 से अमेरिकी राजनेता रिक सेंटोरम राजनीतिक अभियान का प्रबंधन कर रही हैं और उसी वर्ष उनके साथ ‘पैट्रियट वॉयस’ नामक मंच की स्थापना की।
भारत को बदनाम करने के एवज में मोटी कमाई
अनुरिमा के दूसरे सहयोगी टेरी एलन एक लॉबिस्ट हैं, जो भारत के खिलाफ पैरवी करके टकसाल बना रहे हैं। उनकी कंपनी फिदेलिस गवर्नमेंट रिलेशंस (एफजीआर) को भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (आईएएमसी) ने यूएससीआईआरएफ को सीधे भारत को निशाना बनाने की पैरवी करने के लिए काम पर रखा था। बौसार्ट ने खुलासा किया कि भारत की छवि खराब करने के लिए अकेले आईएएमसी ने 2013 और 2014 के बीच एफजीआर को 40,000 अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया था।
नादिन मेन्ज़ा हार्डवायर्ड ग्लोबल के बोर्ड सदस्य भी हैं, जिनकी सलाहकार सदस्य अंगना चटर्जी हैं। उन्हें गुलाम नबी फई के साथ भी अक्सर देखा गया है, जिन्हें 2011 में एफबीआई द्वारा अमेरिका से पाकिस्तान में 35 लाख अमेरिकी डॉलर का हस्तांतरण छिपाने के लिए दोषी पाया गया था। वह आईएसआई के इशारे पर कश्मीरी अलगाववादियों की पैरवी कर रहा था।
सूची में एक और नाम हैरिसन अकिंस का है जो 2020 की रिपोर्ट में 'दक्षिण एशिया के लिए वरिष्ठ नीति विश्लेषक' थे। अकिंस इब्न खलदुन के अध्यक्ष थे और अमेरिकी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल सर्विसेज में रिसर्च फेलो थे। यहां उनके गुरु अकबर अहमद थे, जो ब्रिटेन में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त थे।
बॉसार्ट लिखते हैं कि अकिंस के सोशल मीडिया प्रोफाइल में कई पाकिस्तानी अधिकारियों, राजनयिकों के साथ उनकी बातचीत दिखती है। यह संयोग नहीं हो सकता है कि तीनों एक ही संगठन हैं जो भारत के खिलाफ यूएससीआईआरएफ को प्रभावित करने के लिए पेशेवर लॉबी कंपनियों को नियुक्त करते हैं।
एक अन्य संगठन जो मुख्य रूप से ध्यान आकर्षित करता है, वह है इंडिया अमेरिका सेंटर फॉर सोशल जस्टिस (आईएसीएसजे) जो भारत में सामाजिक न्याय के लिए काम करने का दावा करता है। आईएसीएसजे से ही आईएएमसी का पुनर्जन्म हुआ है। ट्विटर पर संगठन का पहला अनुयायी कोई और नहीं, बल्कि नादिन था जो इस तरह पूरे गठजोड़ के बिंदुओं को जोड़ता है।
आईएसीएसजे की वेबसाइट 28 अप्रैल, 2020 में पंजीकृत की गई थी। यानी उसी दिन, जब यूएससीआईआरएफ की 2020 की रिपोर्ट लांच की गई थी। आईएसीएसजे के संस्थापक सदस्यों में से एक सैयद अली हैं जो इंडिया अमेरिका मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) के उपाध्यक्ष हैं। बौसार्ट ने कहा कि यूएससीआईआरएफ जैसी संस्थाएं जो सच्चाई को सामने लाने की सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी लेती हैं, उन्हें अपने दृष्टिकोण में उद्देश्यपूर्ण और गैर-पक्षपाती होना चाहिए।
यूएससीआईआरएफ को फटकार चुका है भारत
यूएससीआईआरएफ ने बीते साल दावा किया था कि गुजरात में अमदाबाद के सिविल अस्पताल में कोरोना वायरस के मरीजों को धार्मिक और मजहबी आधार पर अलग-अलग रखा जा रहा है। यूएससीआईआरएफ ने एक ट्वीट किया था, जिसमें लिखा था, "गुजरात के अस्पताल में हिंदू और मुस्लिम मरीजों को अलग-अलग रखा जा रहा है। इस तरह के कदम भारत में मुसलमानों को कलंकित किए जाने की घटनाओं को बढ़ाने में मदद करेंगे और इससे अफवाह फैलेगी कि मुस्लिम कोविड-19 फैला रहे हैं।" आपातकाल में हिन्दू-मुस्लिम के बहाने भारत को बदनाम करने की साजिश पर विदेश मंत्रालय ने यूएससीआईआरएफ को फटकार भी लगाई थी। विदेश मंत्रालय ने कहा था कि अमेरिकी संस्था कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई को मजहबी रंग देने की कोशिश न करे। यूएससीआईआरएफ भारत में कोविड-19 के लिए तय किए गए मेडिकल प्रोटोकॉल पर गुमराह करने वाली रिपोर्ट फैला रहा है। गुजरात सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि अस्पताल में कोरोना मरीजों को महजबी आधार पर अलग-अलग नहीं रखा गया है। ऐसे में विदेशी संस्था भारत को बदनाम करने की साजिश कर रही है।
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