संजीव कुमार
दरभंगा पार्सल विस्फोट के बाद बिहार में यह चर्चा आम है कि इस राज्य को आतंकवादियों की बुरी नजर लग चुके हैं। दरभंगा से पहले बांका, अररिया और सीवान में बम विस्फोट हो चुका है। वहीं भागलपुर में चिट्ठी के साथ दो बम मिले हैं। इन घटनाओं की गहन जांच करने और दोषियों को कड़ी सजा देने की आवश्यकता
इन दिनों पूरे देश में दरभंगा पार्सल बम विस्फोट को लेकर कई तरह के खुलासे हो रहे हैं। आतंकवादियों ने सिकंदराबाद-दरभंगा एक्सप्रेस को पूरी तरह जला देने की योजना बनाई थी, लेकिन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाए। इस मामले में जो आतंकी पकड़े गए हैं, वे उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और लश्करे-तोयबा के लिए काम करते हैं। इन आतंकवादियों ने जो बातें बताई हैं, वे बहुत ही चौंकाने वाली हैं। एक बात यह भी साफ दिख रही है कि आतंकवादियों ने आतंक के ‘दरभंगा मॉड्यूल’ को एक बार फिर से सक्रिय कर दिया है। इसलिए इस ‘मॉड्यूल’ को गहरे उतर जानने की जरूरत है। बता दें कि पिछले कुछ बरसों से दरभंगा आतंकवादियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में उभरा है। कर्नाटक के आतंकवादी यासिन भटकल ने दरभंगा में आतंक की जो विषबेल बोई थी, वह अब अपना जहरीला असर दिखा रही है। लगभग 15 साल के अंदर जहां भी बम विस्फोट हुआ है, उसके तार दरभंगा से जुडेÞ पाए गए हैं। यही कारण है कि गाहे-बगाहे आतंकी अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए ‘दरभंगा मॉड्यूल’ का सहारा लेते हैं। इस बार भी यही हुआ। आतंकी ‘दरभंगा मॉड्यूल’ के सहारे ही सिकंदराबाद-दरभंगा एक्सप्रेस को ‘बर्निंग ट्रेन’ बनाना चाहते थे।
अब इस कांड की जांच राष्टÑीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे इस षड्यंत्र की परतें खुल रही हैं। यह धमाका पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों की देखरेख में हुआ है। इसका राज पार्सल पर अंकित फोन नंबर से खुला। दरभंगा स्टेशन पर जब कुली ने कपड़े के गट्ठर को फर्श पर पटका तो तेज धमाके के साथ उसमें आग लग गई। प्रशासन इस घटना के तुरंत बाद चौकस हुआ। जब घटनास्थल का निरीक्षण किया गया तो एक छोटी बोतल बरामद हुई। यह बोतल कपड़ों के गट्ठर के बीच में छिपाई गई थी। यह पार्सल मोहम्मद सुफियान के लिए था। धमाके के बाद जब पार्सल पर लिखे फोन नंबर की पड़ताल की गई तो वह शामली (उ.प्र.) के सलीम का निकला। इस पार्सल को तेलंगाना के सिकंदराबाद स्टेशन से ‘बुक’ किया गया था।
इस कांड का सरगना है इकबाल काना। यह इन दिनों पाकिस्तान में रहता है। इकबाल उत्तर प्रदेश के कैराना का रहने वाला है। जानकारी के अनुसार नब्बे के दशक में वह फर्जी पासपोर्ट बनवाने का धंधा करता था। इसके जरिए ही उसका संजाल बढ़ा और बाद में वह तस्कर बन गया। सोना और अन्य सामान की तस्करी के साथ-साथ वह नकली नोट और हथियार के धंधे में आ गया। अक्तूबर, 1995 में पाकिस्तान से भारत भेजी गर्इं 75 पिस्तौल दिल्ली में पकड़ी गई थीं। जांच में पता चला कि इसके पीछे इकबाल काना का हाथ था। इसके बाद गिरफ्तारी के डर से वह पाकिस्तान भाग गया। पाकिस्तान में उसका संपर्क आईएसआई से हुआ। फिर वह लश्कर से जुड़ गया। इसके बाद तो उसने कई स्थानों से युवकों को आतंकवाद की दुनिया में जोड़ा। उसी ने सलीम को भी आतंकवादी वारदात के लिए अपने गिरोह में शामिल किया था।
देश में पिछले सात-आठ साल से कोई बम धमाका नहीं हुआ है। निश्चित रूप से यह इकबाल काना जैसे आतंकवादियों को ठीक नहीं लग रहा था। इसलिए इन लोगों ने आतंकवाद के ‘दरभंगा मॉड्यूल’ के सहारे बम से रेलगाड़ी को उड़ाने की योजना बनाई थी। इस घटना के लिए ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो किसी सुरक्षित शहर में कपड़े का कारोबार करता हो। उनकी तलाश हैदराबाद में कपड़े का कारोबार करने वाले मलिक ब्रदर्स पर जाकर पूरी हुई। मलिक भाइयों ने ही कपड़े के पार्सल की बुकिंग कराई। पार्सल में बम विस्फोट का आवश्यक सामान रखा गया।
इस बम विस्फोट के मुख्य रूप से चार साजिशकर्ता थे। इकबाल काना पाकिस्तान में बैठकर अपने गुर्गे सलीम को निर्देश दे रहा था। उसके इशारे पर सलीम सारी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था। कहा जाता है कि धमाके के बाद पाकिस्तान से हवाला के जरिए सलीम को 2,00,000 रु. भी मिले। अगर आतंक की यह घटना सफल हो जाती तो सलीम और उसके सहयोगियों को करोड़ों रु. मिलते। इकबाल काना ने मोबाइल के माध्यम से तरल बम बनाने का वीडियो भेजा था। उसी को देखकर तरल बम बनाया गया था। दरभंगा बम विस्फोट मामले में सलीम, नासिर, इमरान और कुछ अन्य लोगों को पकड़ा गया है। नासिर और इमरान दोनों भाई हैं।
जून महीने में ही चार धमाके
बिहार में जून माह में कई बम धमाके हुए। 7 जून को बांका के नूरी मस्जिद परिसर स्थित मदरसे में बम धमाका हुआ था। इसमें मदरसे के मौलाना अब्दुल की जान चली गई थी। यह धमाका इतना तेज था कि पूरा मदरसा ही ध्वस्त हो गया। 10 जून को अररिया में बम विस्फोट हुआ, जिसमें अफरोज नामक एक युवक घायल हो गया था। 17 जून को दरभंगा में बम धमाका हुआ। 20 जून को सीवान के हुसैनगंज स्थित जुड़कन गांव में जबरदस्त बम धमाका हुआ। यह धमाका गांव की मस्जिद के पीछे हुआ था। 27 जून को भागलपुर में चिट्ठी के साथ दो बम मिले। ये सभी धमाके बिहार के अलग-अलग कोनों में किए गए। बांका बिहार के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। अररिया बिहार के उत्तर-पूर्व में स्थित है। दरभंगा बिहार के मध्य में है, जबकि सीवान बिहार के पश्चिमी हिस्से में पड़ता है। वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश इन सभी घटनाओं को बिहार को बम धमाकों से दहलाने की गंभीर साजिश का एक पूर्वाभ्यास मान रहे हैं।
आतंकवादी बिहार में पहले भी कई वारदात कर चुके हैं। 2013 में बोध गया मंदिर परिसर और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की गांधी मैदान रैली में आतंकियों ने धमाके किए थे। इस बार छोटे-छोटे समूहों से बम धमाके की खबरें आ रही हैं। राष्टÑीय जांच एजेंसी को दरभंगा बम विस्फोट के साथ ही इन सभी बम धमाकों की जांच भी करनी चाहिए जिससे पता चल सके कि कहीं बिहार को दहलाने के लिए कोई बड़ी साजिश तो नहीं चल रही है।
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