अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है। इस कारण भारत, अमेरिका और रूस सहित कई देशों को चिंता में डाल दिया है। इस बीच, भारत ने अपने 50 राजनयिकों कर्मचारियों को कंधार से वापस बुला लिया है। हालांकि दूतावास खाली करा लिया गया है, लेकिन आपातकालीन सेवाएं चालू हैं। उधर, तालिबान ने कहा है कि वह चीन को अफगानिस्तान के ‘मित्र’ के रूप में देखता है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान ने कहा है कि वह चीन को अफगानिस्तान के ‘मित्र’ के रूप में देखता है। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से एक साक्षात्कार में दावा किया कि अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत क्षेत्र पर अब तालिबान का कब्जा है, जो चीनी निवेशकों और श्रमिकों की सुरक्षा की गारंटी देगा। सुहैल ने कहा कि तालिबान चीन के उइगर लड़ाकों को शिनजियांग से अपने देश में नहीं घुसने देगा, जो पहले अफगानिस्तान में शरण लेते रहे हैं। तालिबान अलकायदा और दूसरे आतंकी समूहों को भी वहां संचालन से रोकेगा। साथ ही, चीन को सुरक्षा का भरोसा देते हुए उम्मीद जताई है कि युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में चीन पुनर्निर्माण के लिए निवेश करेगा।
भारत और रूस की चिंता
कंधार दूतावास को खाली कराने के सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि दूतावास बंद नहीं किया गया है। कंधार में तालिबान और अफगानिस्तान की फौज के बीच लड़ाई चल रही है। इसलिए कुछ दिनों के लिए कर्मचारियों को बुला लिया गया है। बता दें कि भारत ने तालिबान को कभी आधिकारिक मान्यता नहीं दी। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे का दायरा बढ़ने के साथ रूस भी सतर्क है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि तालिबान मध्य एशियाई देशों की सीमाओं का सम्मान करे। ये देश कभी सोवियत संघ का हिस्सा थे। रूस को आशंका है कि अगर तालिबान मजबूत हुआ तो लोग रूस के पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में शरण ले सकते हैं। इससे रूस की सुरक्षा के लिए संकट पैदा कर सकता है।
पाकिस्तान ने चीन से निभाई दोस्ती
माना जा रहा है कि तालिबान के इस बयान के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। तालिबान के साथ उसकी साठगांठ जगजाहिर है। चीन ने हाल ही में अफगानिस्तान में शांति बहाली की प्रक्रिया पूरी होने से पहले अमेरिकी सैनिकों की वापसी की निंदा की थी। पिछले हफ्ते चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि अफगानिस्तान में सबसे बड़ी चुनौती युद्ध और अराजकता को रोकने की होगी। चीन और पाकिस्तान को क्षेत्रीय शांति की रक्षा करने की जरूरत है। उसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर दबाव डाला कि वह अफगानिस्तान में चीनी हितों की रक्षा के लिए आगे आए। अफगानिस्तान के हालात से चीन इस कदर घबराया हुआ है कि उसने इस सप्ताह अपने 210 नागरिकों को विशेष विमान के जरिए अफगानिस्तान से बाहर निकाल लिया।
चीन का डर
दरअसल, अमेरिकी सेना के निकलने के बाद अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव से चीन चिंतत है। इसके पीछे दो कारण हैं- पहला, अफगानिस्तान के साथ शिनजियांग प्रांत की 8 किमी सीमा लगती है। दूसरा, अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते वर्चस्व से चीनी निवेश प्रभावित होगा। चीन को इस बात की चिंता है कि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन कायम होने के बाद अफगानिस्तान पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन का केंद्र बन जाएगा। इस अलगाववादी संगठन का संबंध अलकायदा से भी है। ऐसे में अगर आतंकी संगठनों का शिनजियांग में प्रभाव बढ़ा तो इसका सीधा असर उइगर मुस्लिमों के आंदोलन पर पड़ेगा। चीन को डर है कि उइगर मुस्लिमों को लेकर आतंकी संगठन चीन पर दबाव बना सकते हैं। ऐसे में तालिबान का ताजा बयान चीन को राहत देने वाला है।
टिप्पणियाँ