बालेन्दु शर्मा दाधीच
माइक्रोसॉफ्ट को एक ऐसे उपकरण के लिए पेटेंट मिल चुका है, जिसके जरिए उपयोगकर्ता केवल सोचकर ही मशीनों और उनके भीतर चलने वाली प्रक्रियाओं को नियंत्रित कर सकेगा
आने वाला समय ऐसे कंप्यूटरों व मशीनों का हो सकता है जिनके साथ काम करने के लिए हाथों का प्रयोग न करना पड़े। आप इन उपकरणों को अपने विचारों भर से चला सकेंगे। मस्तिष्क व मशीन के बीच संदेशों का आदान-प्रदान अब विज्ञान कथाओं की बात नहीं है। माइक्रोसॉफ्ट को एक ऐसे उपकरण के लिए पेटेंट मिल गया है जिसके जरिए यूजर महज सोचकर तमाम किस्म की मशीनों और उनके भीतर चलने वाली प्रक्रियाओं पर नियंत्रण कर सकेगा। आम लोगों की तो छोड़िए, सोचिए कि दिव्यांग लोगों के लिए कितने कमाल की क्रांति दस्तक दे रही है।
यह उपकरण एक हेडबैंड के रूप में आएगा, जिसमें ढेरों सेंसर लगे होंगे, जो मस्तिष्क में विचारों से पैदा होने वाले संकेतों को समझ कर कंप्यूटर या दूसरे उपकरण को जरूरी निर्देश भेज सकेंगे। मतलब, आपने सोचा कि कंप्यूटर आॅन हो जाए तो वह हो जाएगा, माइक्रोसॉफ्ट वर्ड के खुल जाने की कल्पना की तो वह खुल जाएगा, नई फाइल बना लूं तो नया डॉक्यूमेंट खुल जाएगा और इसमें शीर्षक 24 प्वाइंट में बोल्ड टाइपफेस के साथ टाइप करने की सोचेंगे तो वह भी हो जाएगा। फाइल सेव भी हो जाएगी और चाहने पर कंप्यूटर बंद भी। कंप्यूटर ही क्यों, जैसा कि माइक्रोसॉफ्ट के पेटेंट दस्तावेजों में लिखा है, इस उपकरण के जरिए दूसरी मशीनों को भी नियंत्रित किया जा सकेगा।
हाल ही में खबर आई थी कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माता कंपनी सैमसंग एक स्मार्ट टीवी पर काम कर रही है, जिसे व्यक्ति दिमाग से नियंत्रित कर सकेगा। वह स्विट्जरलैंड के इकोल पॉलिटेक्निक फेडरल डी-लॉसैन के सेंटर आॅफ न्यूरोप्रोस्थेटिक्स के साथ ‘प्रोजेक्ट प्वॉइंट्स’ परियोजना पर काम कर रही है। इसका उद्देश्य है कि दर्शक सोचकर ही टीवी चैनल बदल सकें व आवाज कम या ज्यादा कर सकें। अगले साल इस स्मार्ट टीवी का परीक्षण शुरू होने की उम्मीद है। स्वाभाविक जिज्ञासा है कि ऐसा कैसे हो सकता है? सोचने भर से ही विचार बाहर कैसे जा सकता है और भौतिक मशीन के लिए निर्देशों का रूप कैसे ले सकता है जब तक कि कोई अपने शरीर के किसी अंग, अपनी आवाज या कम से कम आंखों के जरिए उसे जाहिर न करे? इसका कुछ-कुछ जवाब इलेक्ट्रोएन्सिफैलोग्राफी (ईईजी) में आज जो कुछ रोजमर्रा के तौर पर हो रहा है, उससे मिल जाता है। ईईजी में मस्तिष्क के भीतर की विद्युतीय गतिविधियों को मापने के लिए सिर के ऊपरी भाग पर इलेक्ट्रॉड्स लगाए जाते हैं। मस्तिष्क में न्यूरॉन्स में प्रवाहित होने वाली आयनीय धारा में वोल्टेज का उतार-चढ़ाव चलता रहता है। ये नॉन-इन्वेजिव (शरीर के भीतर नहीं घुसाए जाने वाले) इलेक्ट्रॉड्स, इन्हीं वोल्टेज परिवर्तनों को मापते हैं व तरंगों जैसी आकृतियों के रूप में अंकित करते जाते हैं। इसी तरह, इस हेडबैंड के भीतर बने सेंसर भी मस्तिष्क में प्रवाहित होने वाले संकेतों को ग्रहण कर सकते हैं। उन्हें बेहतर बनाने के लिए इस उपकरण को प्रशिक्षित किया जाता है। जैसे आप कंप्यूटर को बंद करने के बारे में सोचेंगे और उपकरण को बताएंगे कि मेरे मन में अभी क्या विचार था। कोई सॉफ्टवेयर खोलने के लिए सोचेंगे व उपकरण को बताएंगे कि मैंने यह सोचा था। कीबोर्ड पर कोई खास कुंजी दबाने से लेकर माउस का दायां या बायां बटन क्लिक करने और वेब ब्राउजर में खास वेबसाइट खोलने तक जो भी सोचते हैं, प्रशिक्षण सत्र के दौरान बताते रहते हैं। वह दोनों स्थितियों के बीच तुलना करना सीखता रहता है। इस तरह की निगरानी के बाद यह प्रणाली संकेतों को समझने में काफी सक्षम हो जाती है। याद कीजिए, जब आप बोलकर टाइप करने के किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल शुरू करते हैं तो आपसे कुछ वाक्य बोलने के लिए कहा जाता है ताकि वह प्रणाली आपके उच्चारण और लहजे को भांप सके। लगभग वैसी ही प्रक्रिया यहां होती है। इसे और सटीक बनाने के लिए आंखों की मुद्राओं, उनके फोकस एरिया, घूमने की गति आदि की भी निगरानी की जाती है, जैसा कि सैमसंग कर रहा है।
माइक्रोसॉफ्ट के पेटेंट के अनुसार, ये सेंसर मस्तिष्क में घुमड़ने वाली इच्छाओं (इन्टेंशन) को भांपने में सक्षम हैं। जब कोई यूजर शारीरिक गतिविधि के बारे में सोचता या उस पर ध्यान केंद्रित करता है तो मस्तिष्क के न्यूरॉन्स से इच्छात्मक सूचनाएं (इन्टेंशनडेटा) प्रवाहित होती हैं। इन्हें ग्रहण कर मशीनी निर्देशों में बदलने का रास्ता निकलने से वह न सिर्फ वीडियो गेम खेल सकेगा, बल्कि आॅगमेन्टेड व वर्चुअल रियलिटी जैसे आधुनिक अनुप्रयोगों पर भी काम कर सकेगा।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
टिप्पणियाँ