हांगकांग: बीजिंग की तानाशाही, 'बंद हुआ एप्पल डेली'
आखिर हांगकांग का एकमात्र लोकतंत्र समर्थक 'एप्पल डेली' अखबार छपना बंद हो गया। चीन की नीतियों का मुखर विरोधी यह अखबार हुआ चीनी दमन का शिकार
हांगकांग के मुख्य कारोबारी इलाके में मौजूद एप्पल डेली के दफ्तर के बाहर 24 जून की दोपहर बाद से हांगकांगवासियों की लंबी सर्पीली कतारें लगी थीं। वर्षों से एप्पल डेली के निष्ठावान पाठक रहे बुजुर्ग भी हारी-बीमारी भूल कर कतार में लगे थे। क्यों लगी थी यह कतार वहां? कतार इसलिए लगी थी कि लोकतंत्र के धुर समर्थक और बीजिंग की थानेदारी के सतत विरोधी रहे अपने इस चहीते 'टेब्लॉयड' के आखिरी अंक की छपी 10 लाख प्रतियों में से एक उनको मिल जाए। वैसे इस अखबार की 80,000 प्रतियां ही छपा करती थीं रोज।
लेकिन, 24 जून को अंतत: एप्पल बंद हो गया। इसके स्टाफ ने शाम को दफ्तर के बाहर बड़ी तादाद में मौजूद हांगकांगवासियों का शुक्रिया अदा किया, उनके साथ सहयोगा और समर्थन के लिए आभार जताया और लोकतंत्र के प्रति उनके समर्पण को नमन किया। सबकी आंखें नम थीं। 24 जून को एप्पल डेली की वेबसाइट पर एक नोटिस था, जिस पर लिखा था, ''हमें यह बताते हुए दुख है कि एप्पल डेली और नेक्स्ट पत्रिका की वेब और एप पर उपलब्ध सामग्री 23 जून 2021 को रात 11 बजकर 59 मिनट से उपलब्ध नहीं रहेगी। हम सहयोग के लिए अपने सभी पाठकों, उपयोगकर्ताओं, विज्ञापनदाताओं और हांगकांगवासियों का शुक्रिया अदा करते हैं।''
अफसोस और आक्रोश
1995 से लगातार प्रकाशित होते आ रहे एप्पल डेली को आखिर बंद क्यों होना पड़ा। उसे बंद इसलिए होना पड़ा क्योंकि बीजिंग नहीं चाहता कि, कोई भी ऐसी आवाज कायम रहे जो उसकी घुड़कियों को चुनौती दे, उसकी मनमर्जी के खिलाफ मुंह खोले, कोई उसकी नीतियों के खिलाफ खबरें छापकर लोगों को झकझोरे।
और इसीलिए, एप्पल के बंद होने पर दुनिया भर के लोकतंत्र समर्थकों के मन में एक टीस थी, मीडिया और अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या होते देखकर अफसोस था उन्हें, आक्रोश भी था उनमें। लेकिन कइयों को अफसोस इस बात का भी था कि जो मीडिया घराने और जाने—माने पत्रकार 'अभिव्यक्ति की आजादी' का ढोल पीटते नहीं थकते, उन्हें कल मानो सांप सूंघ गया था।
जारी रहा दमन
अभी पिछले हफ्ते एप्पल डेली की हांगकांग पुलिस ने 23 लाख डॉलर की संपत्ति फ्रीज कर दी थी, उसके दफ्तर की तलाशी ली और पांच वरिष्ठ संपादकों के साथ कुछ कार्यकारियों को गिरफ्तार किया था। उसी मौके पर अखबार की तरफ से कह दिया गया था कि वे अब इसे छापना ही बंद कर देंगे। इस पर आरोप क्या था जो पुलिस की कार्रवाई हुई? सरकारी आरोप तो यह है कि 'राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए अखबार ने विदेश से मिलीभगत की थी'। पर असल में, चीन नहीं चाहता था कि ये अखबार लोकतंत्र की भावनाओं को उभारता रहे। हांगकांग को अपने डंडे तले लेने की उसकी शातिर चाल में अड़चन जो डाल रहा था एप्पल!
2019 में हांगकांग के युवाओं के नेतृत्व में लोकतंत्र के प्रति उठे ज्वार को सख्ती से कुचला था पुलिस ने। सैकड़ों युवाओं को पकड़कर मुकदमे ठोक दिए गए थे उन पर। अभी 27 जून 2021 के अंक में पांचजन्य ने इस पर उन कुछ युवाओं से बातचीत के आधार पर विस्तृत रपट प्रकाशित की थी। कई युवा अपने घरों को छोड़कर अन्यत्र रह रहे हैं, सिर्फ इस डर से कि कहीं पुलिस उन्हें पकड़कर न ले जाए और झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल में ठूंस दे, जैसा कि चीन चाहता है। अच्छी बात यह है कि छुपे रहकर भी वे युवा लोकतंत्र की मशाल जलाए हुए हैं।
और अब तो शासन ने 2019 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल असंतुष्टों के खिलाफ कार्रवाई और कड़ी कर दी है। चीन ने एक साल पहले 'राष्ट्रीय सुरक्षा कानून' के अंतर्गत पहले मुकदमे की सुनवाई शुरू की थी। 12 दिसम्बर 2020 को एप्पल के स्वामी जिम्मी लाई को अदालत में ले जाकर उन पर 'मुकदमा' तय किया गया था। वे अब भी कैद में हैं 'चीन की'।
आजादी का घोंटा गला
'एप्पल डेली' के बंद होने पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को खूब सुनाई है। बाइडेन ने कहा है,''पत्रकारिता अपराध नहीं है। हांगकांग में लोगों को मीडिया की आजादी है। बीजिंग, हांगकांग को बुनियादी हक की आजादी नहीं दे रहा है।'' बाइडेन ने कहा कि बीजिंग हमले कर रहा है हांगकांग की स्वायत्तता और प्रजातांत्रिक संस्थानों पर। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हांगकांगवासियों को सहयोग जारी रखने का वादा भी किया।
उधर ब्रिटेन के विदेश सचिव डोमिनिक राब ने टि्वटर पर लिखा,''राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का इस्तेमाल करके आजादी पर लगाम लगाई जा रही है, असंतुष्टों को सजा
दी जा रही है। जर्मनी के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया अदेबार ने कहा कि एप्पल डेली का बंद होना हांगकांग में प्रेस की आजादी पर आघात है।
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