आलोक गोस्वामी
न्यूयार्क टाइम्स की फर्जी और एकपक्षीय खबर की बखिया उधेड़ डाली 'एल्डर आफ जायोन' पोर्टल ने, बताया कि कैसे अबुल आउफ इमारत गिरने के पीछे इस्राएली बमबारी नहीं, बल्कि हमास दोषी
दुनिया के बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों पर इस्लामी कट्टरपंथियों का कैसा प्रभाव है इसकी पुष्टि भारत ही नहीं, तमाम देशों के मीडिया घरानों की रिपोर्टिंग और प्रस्तुतियों से होती रहती है। अमेरिका के बड़े अखबार भी इस 'प्रभाव' से प्रभावित हैं, इसे लेकर कई बार सवाल उठे हैं। अमेरिका का एक बड़ा दैनिक है न्यूयार्क टाइम्स। अभी पिछले दिनों इजराएल और फिलिस्तीन के आतंकी गुट हमास के लड़ाकों के बीच चली 11 दिन की जंग की रिपोर्टिंग 'फिलिस्तीन में मारे जा रहे नागरिकों' को लेकर कमोबेश एकपक्षीय रही।
लेकिन हाल में उसके एक लेख की 'फिलिस्तीन के लिए हमदर्दी जताने की कोशिशों' पर तथ्यों की काट के साथ पानी फिर गया। गत 17 जून कोे न्यूयार्क टाइम्स ने एक लेख छापा-Dreams In The Rubble: An Israeli Airstrike and 22 Lives Lost.” लेख की शुरुआत से ही 'फिलिस्तीन की अल वेहदा स्ट्रीट पर इस्राएल की बमबारी से ध्वस्त रिहायशी इमारत में मारे गए नागरिकों' पर अफसोस जताकर पाठकों की आंखें नम करने की कोशिश की गई। लेख में हमास के बताए विवरणों को तो विस्तार छापा गया, लेकिन इस्राएल की सेना का एक भी कमेंट नहीं लिया गया। उस इस्राएली पायलट को पानी पी—पीकर कोसा गया जिसने 'जानबूझकर 22 निर्दोष जिंदगियों को लीलने के लिए बम गिराए'।
लेकिन 'एल्डर आफ जायोन' नामक पोर्टल ने उस लेख की बखिया उधेड़ते हुए कहा कि उस रिहायशी इमारत के ढहने का कोई जिम्मेदार है तो सिर्फ और सिर्फ हमास। उसका कहना है कि ये इस्राएल का किया हो ही नहीं सकता, क्योंकि अगर ये इमारत इस्राएल के निशाने पर होती, तो बम गिराने से पहले इस्राएल वहां के लोगों को आगाह करता जिससे कि वे जगह खाली करके चले जाएं। ऐसा करने के उसके कई तरीके हैं, जैसे—टेलीफोन पर खबरदार करना, पर्चे डालना, ईमेल करना या छत पर छोटा—मोटा, बिना ज्यादा नुकसान करने वाला धमाका करके वहां रहने वालों को उसे खाली कर देने की चेतावनी देना। क्योंकि इस्राएल जब भी किसी रिहायशी ठिकाने पर बम गिराता है तो वहां लोगों को सावधान जरूर करता है।
पोर्टल ने लिखा है कि, 'जबकि हमास की यही मंशा रही कि अपने फिलिस्तीनियों में ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को हताहत दिखाए। इसके बरअक्स इस्राएल हमेशा से फिलिस्तीनी नागरिकों को कम से कम नुकसान पहुंचाने के कायदे पर अमल करता आया है।
दूसरे, न्यूयार्क टाइम्स ने इस्राएली सेना के प्रवक्ता ले.ज. जोनाथन कॉनरिकस के हवाले से बताया कि '11 मिसाइल दागी गई थीं उस गली में, इस हमले में कई इमारतें खड़ी रही थीं जबकि एक अबुल आउफ गिर गई थी।' इस बयान की काट करते हुए पोर्टल ने इंडिपेंडेंट अखबार में छपी रपट के हवाले से लिखा, ''हमले की वजह पूछने पर इस्राएली सेना ने बताया कि गाजा पर दबदबा चलाने वाले आतंकी गुट हमास अपना सैन्य खाका जानबूझकर नागरिकों के घरों के नीचे बनाता है जिससे नागरिकों पर खतरा बढ़ जाता है।''
यह खुला राज है कि हमास स्कूलों, रिहायशी इलाकों, अस्पतालों, दुकानों आदि के आसपास अपने लांचिंग पैड, हथियार भूमिगत ठिकानों में रखता है। इससे वह दो मकसद साधता है। एक, नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल करना, जिससे इस्राएली सेना नागरिकों के भारी जानोमाल के नुकसान को बचाने के लिए वहां बमबारी न करे। दूसरे, अगर इस्राएल बम गिराता भी है तो भारी तादाद में नागरिकों की मौत होने पर उसे हमास अपने दुष्प्रचार का खाद-पानी बना सके, और हमास मगरमच्छी आंसू बहाकर दुनिया के मीडिया के सामने अपनी छाती पीटे, 'यहूदी शासन के जुल्मोसितम' दिखाकर बुक्के फाड़कर रो सके।
बताते हैं, हमास ने गाजा में नागरिक रिहायशों के नीचे बड़े पैमाने पर सुरंगों का संजाल बना रखा है। कई किलोमीटर तक फैली इन सुरंगों में उसके हथियार, मिसाइलें, लांच पैड, यंत्र, मशीनें, आतंकी प्रशिक्षण के अड्डे आदि मौजूद हैं। और ये सुरंगें अधिकांशत: नागरिकों की आबादी के बीच से होकर गुजरते हैं। एक अंदाजे के अनुसार, ये सुरंगें 300 मील लंबी हैं। यूएन का भी मानना है कि हमास ने यूएन के एक स्कूल के नीचे से भी एक सुरंग बना रखी है। कुल मिलाकर हमास का मकसद है, नगारिकों को ढाल बनाकर अपनी आतंकी गतिविधियां चलाए रखना। उधर हमास का यह दावा है कि उसने गाजा में 500 किलोमीटर लंबी सुरंगें तो बनाई हुई हैं लेकिन वे नागरिक इलाकों के नीचे नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि इस्राएल-फिलिस्तीन के 11 दिन के युद्ध के दौरान भी एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें गोद में बच्चा लिए एक फिलिस्तीनी औरत के कंधे के पीछे एक हमास आतंकी बंदूक ताने खड़ा था। दुनिया भर के अखबारों में 'गाजा के रोते-बिलखते बच्चों, घायल महिलाओं, ध्वस्त इमारतों' आदि के चित्र खूब छापे जाते थे और आम लोगों की आंखों को जबरन नम करने की कोशिशें होती थीं।
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