डीयू न्यूज ने एक वृत्तचित्र जारी की है, जिसमें पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से गठजोड़ का खुलासा किया गया है। उधर, पेरिस में एफएटीएफ की बैठक शुरू हो गई है। इसमें पाकिस्तान के भाग्य का फैसला होना है।
पाकिस्तान एक तरफ तो यह आस लगाए बैठा है कि वह फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे सूची से बाहर आ जाएगा। इसके बाद उसे दुनिया के कुछ देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से कर्ज मिलेगा, फिर उसकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। लेकिन वह न तो आतंकवाद का समर्थन बंद करेगा और न ही आतंकी समूहों से अपना संबंध खत्म करेगा। डीडब्ल्यू न्यूज ने एक वृत्त्चित्र जारी की है, जिसमें पाकिस्तान की करतूतों का खुलासा किया गया है। इसमें बताया गया है कि पाकिस्तान न केवल आतंकवाद का समर्थक है, बल्कि दुनिया भर की तमाम आतंकी घटनाओं और इस्लामिक स्टेट से भी उसके तार जुड़े हुए हैं।
इस वृत्रचित्र में सीओबीआर के पूर्व खुफिया सेवा समन्वयक सिचर्ड केम्प के हवाले से कहा गया है कि दुनिया भर में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जितने भी हमले हुए उनके तार आईएसआई से जुड़े हुए हैं। केम्प कहते हैं, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि आईएसआई पश्चिम के खिलाफ आतंकियों को सक्रिय और उन्हें पनाह देने में रुचि रखता है। अगर दुनिया भर में हुए अधिकांश आतंकी हमलों की पड़ताल की जाए तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसमें आईएसआई का हाथ मिल जाएगा। इसलिए वह पश्चिम के खिलाफ आतंकी गतिविधियों का सूत्रधार, समर्थक और निर्देशक है।
मुशर्रफ के लिए मुजाहिदीन हैं आतंकी
वृत्तचित्र में कहा गया है कि अमेरिका में 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जो आतंकी हमला हुआ था, उसमें पाकिस्तानी मूल के नागरिक डेविड हेडली का हाथ था। इस आतंकी हमले में करीब 3,000 लोग मारे गए थे। यही नहीं, दूसरे आतंकी हमलों के साथ 2008 के मुंबई हमले को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया था। हालांकि पाकिस्तान हमेशा ही मुंबई हमले में न केवल लश्कर-ए-तैयबा की भूमिका से, बल्कि उसे आतंकी संगठन मानने से भी इनकार करता रहा है। पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में आईएसआई ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के साथ तेजी से बढ़ाया। हालांकि वृत्तचित्र निर्माताओं को संयुक्त अरब अमीरात में निर्वासन में रह रहे मुशर्रफ ने कहा, "आप उन्हें आतंकवादी कैसे कहते हैं, मैं उन्हें 'मुजाहिदीन' कहता हूं। ये जो लश्कर-ए-तैयबा का संगठन है, वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गैर सरकारी संगठनों में से एक है।" आतंकवाद विशेषज्ञ और सुरक्षा विश्लेषक सज्जन गोहेल ने कहते हैं, "यह जरूरी नहीं कि व्यक्तिगत रूप से कट्टरपंथी हो गए हैं, ये ऐसे लोग हैं जिनकी खुफिया पृष्ठभूमि है। वे राज्य की मशीनरी में शामिल हो सकते हैं, चाहे वह पाकिस्तान और लीबिया की पहाडि़यों में हों।"
मादक पदार्थों की तस्करी से कमाई
पाकिस्तान 2008, 2012 और 2015 में भी ग्रे सूची में रह चुका है। अभी 2018 से वह इस सूची में है। धनशोधन और आतंक वित्तपोषण से निपटने में इसकी लगातार विफलता सीधे तौर पर उसी तौर-तरीके से जुड़ी हुई है, जिसमें पाकिस्तानी सेना देश और विदेश की राजनीति में और व्यापार पर हावी है और उसका प्रबंधन करती है। पिछले चार दशक से भी अधिक समय से पाकिस्तानी फौज अफगानिस्तान से लेकर कश्मीर घाटी तक जिहाद का वित्तपोषण करती रही है। 1980 के दशक के सोवियत-विरोधी जिहाद के साथ-साथ कश्मीर में हिंसा के लिए पूंजी के निर्बाध प्रवाह की आवश्यकता थी। यह कमाई मादक पदार्थों की तस्करी से हुई है। शुरुआत में पाकिस्तानी फौज और आईएसआई ने पाकिस्तान को हेरोइन की खपत के लिए एक घरेलू बाजार के तौर पर लिया। 1980 के दशक में हजारों लोग इस ‘ड्रग कल्चर’ के शिकार हुए, जिसे पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान ने प्रोत्साहित किया।
एफएटीएफ की बैठक शुरू
इस बीच, पेरिस में एफएटीएफ की बैठक शुरू हो गई है। 21-25 जून तक चलने वाली बैठक में पाकिस्तान के भाग्य का फैसला होना है। पाकिस्तान यह उम्मीद संजोए बैठा है कि इस बार वह ग्रे सूची से बाहर आ जाएगा और दिवालिया होने की कगार पर खड़ी उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की मदद से पटरी पर आ जाएगी। हालांकि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने बीते सप्ताह एक साक्षात्कार में कहा था कि इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान पर एफएटीएफ की तलवार लटकी हुई है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के अफसर भी मानते हैं कि ग्रे लिस्ट से बाहर आना इस बार भी मुश्किल है। ‘फॉरेन पॉलिसी’ मैगजीन ने अप्रैल में जारी रिपोर्ट में एफएटीएफ को आगाह किया था कि ‘जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे कई आतंकी संगठनों पर सिर्फ दिखावे की कार्रवाई हुई है। अगर पाकिस्तान को ग्रे सूची से बाहर किया गया तो ये आतंकी संगठन फिर खुलेआम हिंसा फैलाएंगे। अभी ये सिर्फ मौके का इंतजार कर रहे हैं। दुनिया पहले भी पाकिस्तान के झांसे में आ चुकी है।
उधर, अमेरिका और फ्रांस जैसे कई देशों को आशंका है कि अगर पाकिस्तान इस सूची से बाहर आया और उसे प्रतिबंधों से राहत मिली तो इसका फायदा वहां मौजूद आतंकी संगठन उठा सकते हैं। ग्रे सूची से बाहर निकलने के लिए पाकिस्तान को कम से कम 12 सदस्य देशों के वोट चाहिए चाहिए। उसे जून तक एफएटीएफ की 27 शर्तें पूरी करनी थी। एफएटीएफ के अनुसार वह 24 शर्तों पर अमल कर चुका है और उसे शेष तीन शर्तें पूरी करनी थी। ग्रे सूची में होने के कारण पाकिस्तान को न तो किसी देश से कर्ज मिल पा रहा है और न ही अंतरराष्ट्रीय वित्तीय से। प्रतिबंधित सूची में होने के कारण कर्जदाताओं को लगता है कि उन्होंने अगर पाकिस्तान को कर्ज दिया तो वह डूब जाएगा।
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