डॉ. संगीता मिश्र
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। हालांकि इसका प्रयोग स्वस्थ एवं रोगी, दोनों के हितार्थ किया जाता है। इन अर्थों में देखा जाए तो इसे चिकित्सा के बजाय आरोग्यशास्त्र कहना अधिक उचित होगा।
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। हालांकि इसका प्रयोग स्वस्थ एवं रोगी, दोनों के हितार्थ किया जाता है। इन अर्थों में देखा जाए तो इसे चिकित्सा के बजाय आरोग्यशास्त्र कहना अधिक उचित होगा। आयुर्वेद यह उपाय तो बताता ही है कि रोगग्रस्त होने पर क्या करें, साथ ही यह भी बताता है कि रोगग्रस्त न होने के लिए आयुर्वेद का उपयोग कैसे करें। यानी आयुर्वेद महज चिकित्सा न होकर संपूर्ण जीवनशैली है।
आयुर्वेद शब्द का अर्थ जीवन का विज्ञान अथवा दीघार्यु का ज्ञान प्रदान करने वाला होता है। इसमें सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर के बारे में सूक्ष्मतम विश्लेषण किया गया है। आयुर्वेद में सभी के लिए आदर्श सुव्यवस्थित जीवनशैली के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है जिसका पालन करने से आरोग्य, मानसिक शुद्धि एवं सफलता की प्राप्ति होती है।
आयुर्वेद में जीवनशैली के सिद्धांत
ब्राह्ममुहूर्त में जागरण एवं शौचविधि – प्राय: आयु की रक्षा के लिए प्रात:काल 4-6 बजे उठना चाहिए तथा स्वयं के शरीर की समीक्षा करके मलमूत्रादि का निष्कासन करना चाहिए। इस समय का वातावरण निर्मल, शान्त, प्रदूषणरहित एवं शुद्ध वायु से युक्त होता है।
दातौन का प्रयोग झ्र नीम, आक, खदिर इत्यादि कसैले, कटु एवं तिक्त रसों के वृक्षों की कोमल पतली शाखा से प्रात:काल एवं भोजन करने के बाद दातौन करना चाहिए। इससे दातों, मसूड़ों एवं मुंह की शुद्धि होती है।
अंजन-नस्य-गण्डूषझ्रधूमपान-ताम्बुल सेवन – आंखों में काजल लगाने, नाक के छिद्रों में तेल डालने, कुल्ला करने, भाप लेने, सुगंधित द्रव्यों (पान, लौंग, इलाइची आदि) का सेवन करने से शरीर के ऊपरी भाग की शुद्धि होती है।
अभ्यंग प्रयोग – प्रतिदिन मालिश का प्रयोग करना चाहिए। इससे वृद्धावस्था, थकावट और वात दोषों का नाश होता है। विशेष रूप से सिर, कान एवं पैरों में मालिश करनी चाहिए।
व्यायाम- अर्धशक्तया निशेव्यस्तु बलिभि: स्निग्धभोजिभि:।
शीतकाले वसन्ते च मन्दमेव ततोऽन्यदा।।
तं कृत्वाऽनुसुखं देहं मर्दयेच्च समन्तत:। (अ ॰हृ॰ सू॰2/11-12)
बलवान तथा स्निग्ध भोज्य पदार्थों का सेवन करने वालों को शीत एवं वसन्त ऋतु में स्वयं की आधी शक्ति मात्रा तथा अन्य ऋतुओं में आधी शक्ति से भी कम व्यायाम करना चाहिए। इससे शरीर में लघुता, कार्यक्षमता वृद्धि, जठराग्नि प्रदीप्त आदि का लाभ मिलता है।
उद्वर्तन एवं स्नान – उबटन का प्रयोग करने से कफ दोष का शमन, चर्बी का शोषण, अंगों में स्थिरता एवं त्वचा कांति युक्त होती है।
शुद्ध पानी से स्नान जठराग्नि प्रदीप्त, वाजीकर, आयुष्य, ऊर्जा एवं बल को बढ़ाने वाला होता है और खुजली, त्वचा का मैल, थकावट, तन्द्रा, प्यास, दाह और पापों का नाश होता है।
दीपनं वृष्यमायुष्यं स्नानमूर्धा बलप्रदम्।
कण्डूमलश्रमस्वेदतन्द्रातृड् दाहपाप्मजित्।।(अ ॰हृ॰ सू॰2/16)
करणीय विधान – इन कार्यों का पालन करना चाहिए
- पूर्व में किए भोजन का पाचन होने पर ही भोजन करें।
- हितकर तथा संतुलित आहार का प्रयोग करें।
- मलमूत्रादि के वेगों को रोकना एवं जबरदस्ती निकालना नहीं चाहिए।
- किसी भी रोग से ग्रसित होने पर पहले चिकित्सा एवं उसके पश्चात ही अन्य कार्यों को करना चाहिए।
- धर्म युक्त कर्मों का पालन करते हुए सुख एवं अर्थ की प्राप्ति करना चाहिए।
- अकरणीय विधान – इनका पालन नहीं करना चाहिए
- त्रिविध कायिक कर्म – हिंसा, स्तेय (चोरी करना), अन्यथा काम (पशु एवं पराई स्त्री के साथ संबंध रखना)
- चतुर्विध वाचिक कर्म झ्र पैशुन्य (चुगलखोरी), परूष (कठोर वचन), अनृत (झूठ बोलना), सम्भिन्नालाप (विषय से संबंधित न बोलना)
- त्रिविध मानसिक कर्म – व्यापाद (दूसरे का अनिष्ट सोचना), अभिध्या (दूसरे के धन को लेने की इच्छा), दृग्विपर्यय (आप्त वचनों के विपरीत विचार करना)
- असमर्थ व्यक्ति के प्रति अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए।
आयुर्वेद जीवनशैली के फायदे
आयुर्वेद जीवनशैली अपनाने से दोष, धातु, मल शरीर में सामान्य अवस्था में रहकर आरोग्य की प्राप्ति होती है। असम्यक् जीवनशैली के परिणामस्वरूप प्रतिरक्षा प्रणाली दुर्बल होने के कारण रोगों का संक्रमण ज्यादा हो रहा है।
आयुरारोग्यमैस्वर्यं यशो लोकांश्च शाश्वतान। (अ.हृ. सू.2/48)
जीवन में विधिपूर्वक आहार, विहार, आचार, औषध का प्रयोग करने से प्राणियों को आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, यश एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त इन्द्रियों को बल, एकाग्रचित मन, बुद्धि- धैर्य- स्मरण शक्ति की वृद्धि एवं सुन्दर व्यक्तित्व का लाभ मिलता है।
आयुर्वैदिक जीवनशैली के लिए उचित समय
वर्तमान परिपेक्ष्य में आयुर्वेद और जीवनशैली प्रासांगिक और सहज- आधुनिक समय में जिस प्रकार सभी विभिन्न भौतिक संसाधनों एवं सुविधाओं जैसे मोबाइल, सोशल मीडिया, घर से ही आॅनलाइन शॉपिंग आदि का उपयोग कर रहे हैं, इसके कारण जहां एक ओर जीवन सरल हुआ है, वहीं दूसरी ओर धीरे-धीरे प्रकृति से दूरी बन रही है तथा शारीरिक चेष्टाएं लगभग समाप्त होती जा रही हैं। सभी प्रतिस्पर्धा में व्यस्त होने से शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक स्वास्थ्य को भूल गये हैं जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न व्याधियों एवं दुष्प्रभावों से ग्रस्त होते जा रहे हैं।
इस समय सबसे अच्छा उदाहरण कोरोना वैश्विक महामारी का है जिसके संक्रमण के कारण सम्पूर्ण विश्व में त्राहि-त्राहि मची है तथा शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत क्षति पहुंची है। इस महामारी की चिकित्सा हेतु आयुर्वेद और सम्यक् जीवनशैली की तरफ विश्वास बढ़ा है। आयुर्वेद में बताये हुए नियमों एवं औषधियों का प्रयोग करके रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने तथा कोविड-19 की मृदु- मध्यम- तीव्र अवस्थाओं को नियंत्रित एवं रोकथाम करने का सफल प्रयास किया जा सकता है।
आचार्य: सर्वचेष्टासु लोक एव हि धीमत:।
अनुकुर्यात्तमेवातो लौकिकऽर्थे परीक्षक:।। (अ ॰हृ॰ सू॰2/45)
संसार के संपूर्ण लौकिक व्यवहारों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बुद्धिमान व्यक्ति के लिए समस्त संसार ही गुरू के समान हैं। इसलिए परीक्षक को लौकिक अर्थों में संसार का ही अनुसरण करना चाहिए।
सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत्त होकर पानी पिएं ताकि आपके शरीर से विजातीय पदार्थ (गंदगी) बाहर निकल जाएं। प्रसिद्ध कहावत है कि रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है, आज भी पूर्णत: सहज है। अपनी रोजमर्रा की जीवनशैली में व्यायाम एवं योग को अपनाएं जिससे शारीरिक शक्ति, मानसिक बल, विचारों में शुद्धि एवं सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। संपूर्ण पोषक तत्वों से युक्त ऋतु मौसम के अनुसार संतुलित भोजन, फल इत्यादि सुबह, दोपहर शाम को करना चाहिए ताकि शरीर को बाहरी और आंतरिक रूप से पोषण मिल सके क्योंकि आहार ही औषधि है।
प्राकृतिक तत्वों जैसे सूर्य, वृक्ष, अग्नि, जल, मिट्टी आदि के पास रहें, जिससे स्वाभाविक रूप से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़े। कहा भी जाता है कि प्रकृति स्वयं सबसे बडी चिकित्सक है, शरीर में स्वयं को रोगों से बचाने व अस्वस्थ हो जाने पर पुन: स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान है। रात्रि को अच्छी नींद मन एवं शरीर को पूर्ण आराम करने में सहायता करती है। अत: आयुर्वेद के माध्यम से जीवनशैली में सुधार करके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं व्यक्तिगत विकास की अनुभूति को सहजता से प्राप्त कर सकते हैं।
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