आलोक गोस्वामी
गलवान में पिछले साल हुए संघर्ष के बाद, देश के प्रति समर्पित भारतीयों ने चीन को तगड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाने का संकल्प लिया था, जो बहुत हद तक पूरा हुआ
ऐतिहासिक लेह युद्ध स्मारक पर गलवान संघर्ष में बलिदान होने वाले वीर जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए सैन्य अधिकारी
हाल ही में चीन के उत्पादों के संदर्भ में एक दिलचस्प आंकड़ा सामने आया है। इसके अनुसार बीते एक साल में यानी गलवान में हुई भारत—चीन मुठभेड़ के बाद, ऐसे भारतीयों की एक बड़ी तादाद है जिसने चीन में बनी चीजों का बहिष्कार किया है।
पाठकों को याद होगा, 15 जून 2020 की रात, लद्दाख सरहद पर चीन के सैनिकों ने भारत के हिस्से में घुसपैठ का प्रयास किया था जिसका संख्या में दुश्मन से बेहद कम भारतीय सैनिकों ने करारा जवाब दिया था। एक अपुष्ट आंकड़े के हिसाब से उस मुठभेड़ में चीन के 100 सैनिक हलाक हुए थे जबकि भारत के भी 20 सैनिक ने बलिदान दिया था। उस घटना से पूरा देश चीन के विरुद्ध आक्रोशित था और चीन का हर तरह से बहिष्कार करने की भावना पूरे देश में दिखाई देती थी। 'सबसे पहले देश' की भावना रखने वाले भारतवासियों ने चीन के हर उत्पाद का विरोध और बहिष्कार किया। और बीते एक साल में, एक सर्वे का आंकड़ा बताता है कि 43 प्रतिशत भारतीयों ने चीनी उत्पाद बिल्कुल भी नहीं खरीदे।
यह सर्वे देश में 281 जिलों में रहने वाले 18,000 लोगों के बीच किया गया है। पता चला कि सिर्फ 14 प्रतिशत लोगों ने चीन के सामान को अच्छी गुणवत्ता वाला बताया। गलवान घाटी में मुठभेड़ के ठीक बाद के कुछ दिनों की बात करें तो, 71 प्रतिशत भारतवासियों ने चीन में बनी एक भी चीज नहीं खरीदी थी।
भारत के लोगों ने गलवान घाटी के बाद, आर्थिक मोर्चे पर भी चीन को सबक सिखाने की ठानी है। सिर्फ उत्पाद ही नहीं, लोगों ने अपने मोबाइलों, कम्प्यूटरों से चीन के एप, साफ्टवेयर हटा दिए गए। भारत सरकार ने करीब 100 चीन एप प्रतिबंधित कर दिए। नि:संदेह भारत की किसी सरकार ने दशकों बाद, चीन के प्रति इतना कड़ा रुख दिखाया था। भारत के इस रुख को देखकर अमेरिकी सरकार भी प्रभावित हुई थी। उसने भी अपने यहां कार्यरत चीनी कंपनियों पर निगरानी बढ़ा दी और कुछ को अपनी दुकान बंद करने के हुक्म दिए थे। सच में, भारतीय नागरिकों ने पड़ोसी देश की वस्तुओं का इतने बड़े स्तर पर बहिष्कार किया था कि दुनिया में यह बात तेजी से फैली थी। कई देशों में इस पर बहस चलीं।
यह सर्वे किया है 'लोकलसर्कल्स' नाम की एक कंपनी ने। सर्वे में बताया गया है कि कुछ लोगों ने चीन का सामान खरीदा तो है, पर बस एक—दो बार। लोकलसर्कल्स कंपनी के अनुसार, यह सर्वे देश में 281 जिलों में रहने वाले 18,000 लोगों के बीच किया गया है।
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले ज्यादातर लोगों ने चीन के समान को खरीदने के पीछे वजह उनके कम दाम से पैसे की होने वाली बचत बताई। ऐसा कहने वाले करीब 70 प्रतिशत लोग हैं। लेकिन ऐेसे बहुत कम लोग यानी सिर्फ 14 प्रतिशत हैं जिन्होंने चीन के सामान को अच्छी गुणवत्ता वाला बताया है। पिछले एक साल में सिर्फ 5-7 प्रतिशत लोगों ने ही चीन में बनी सिर्फ 5-10 चीजें ही खरीदी हैं। एक और दिलचस्प बात, गलवान घाटी मुठभेड़ के ठीक बाद के कुछ दिनों की बात करें तो 71 प्रतिशत भारतवासियों ने चीन में बनी एक भी चीज नहीं खरीदी थी।
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