आयकर विभाग का कहना है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई सेवा कार्य करने वाला संगठन, नहीं बल्कि एक राजनीतिक संगठन है और एक विशेष मजहब के लिए काम करता है। इसलिए उसने पीएफआई को दिया 80जी का प्रमाणपत्र रद्द कर दिया है। पीएफआई के कारनामों को देखते हुए उम्मीद जताई जा रही है कि इस संगठन के विरुद्ध आगे भी कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
कुछ वर्षों से अपने कारनामों के लिए चर्चा में रहने वाला इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर सरकारी शिकंजा कसने लगा है। गत 15 जून को आयकर विभाग ने पीएफआई का 80जी का प्रमाणपत्र रद्द कर दिया है। यह कार्रवाई आयकर अधिनियम के खंड 12एए (3)(ए) के अंतर्गत की गई है। बता दें कि आयकर विभाग सामाजिक, सांस्कृतिक और परोपकार के लिए कार्य करने वाले संगठनों को 80जी का प्रमाणपत्र देता है। इससे उन संगठनों को जो लोग दान देते हैं, उन्हें पूरी या आंशिक रूप से आयकर में छूट मिलती है। इस तरह इन संगठनों को अच्छा—खासा चंदा मिल जाता है। पीएफआई ने भी अपने को एक सामाजिक और सेवा संगठन बताकर आयकर विभाग में 80जी का रजिस्ट्रेशन कराया था।
आयकर विभाग ने पीएफआई को सेवा संगठन न मानकर राजनीतिक संगठन माना है और कहा है कि यह संगठन विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारा और मित्रता को समाप्त करने वाले कार्यों में संलिप्त है। यह भी कहा गया है कि पीएफआई एक विशेष मजहबी समुदाय को लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रहा था। यह आयकर अधिनियम 1961 के खंड 13(1)(बी) का उल्लंघन था। इसलिए आयकर विभाग ने पीएफआई के विरुद्ध कार्रवाई की है।
मार्च महीने में जारी एक आदेश के अनुसार पीएफआई को दी गई छूट को मूल्यांकन वर्ष (असेसमेंट ईयर) 2017—18 से रद् किया गया है। अब पीएफआई को आयकर देना पड़ेगा और जो लोग उसे दान देंगे, उन्हें आयकर में कोई छूट नहीं मिलेगी।
आतंकवादी संगठनों से संबंध
केरल में 2006 में स्थापित पीएफआई का नाम सीएए के विरोध से लेकर दिल्ली के दंगों तक में उछला है। यही नहीं, पीएफआई से जुड़े 100 से अधिक युवा आतंकवादी बन चुके हैं। अनेक ऐसे आतंकवादी गुट हैं, जिनके तार पीएफआई से जुड़े हैं। हालांकि ऐसे मामलों से पीएफआई अपने आपको किनारे कर लेती है। वह बार-बार यही कहती है, ‘‘जो लोग आईएसआईएस में शामिल हुए हैं, उन्होंने बहुत पहले ही पीएफआई को छोड़ दिया था या उन्हें निकाल दिया गया था।’’ यह पीएफआई की रणनीति का एक हिस्सा है।
इंडियन मुजाहिद्दीन प्रतिबंधित संगठन सिमी की पैदावार था और सिमी ने बाद में पीएफआई का रूप धारण कर लिया। यानी पीएफआई में वही लोग सक्रिय हैं, जिन लोगों ने सिमी को खड़ा किया था। पीएफआई का नक्सलियों से भी गहरा संबंध है। यही कारण है कि कुछ वर्ष पहले झारखंड सरकार ने पीएफआई को प्रतिबंधित किया था, तो अनेक नक्सली संगठनों ने प्रतिबंध हटाने की बात कही थी।
पीएफआई का छलावा
पीएफआई हमेशा दलित, सिख और मुस्लिम एकता की बात करता है, लेकिन असल में इस कथित सामाजिक एकता का सूत्र विदेशी बुद्धिजीवियों का ईजाद किया हुआ है, जो भारत और पाकिस्तान के झगड़े में अपना हित साधते हैं और जिनका उद्देश्य भारत को हमेशा अपनी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा में उलझाए रखना है।
कांग्रेस और पीएफआई के बीच के संबंध तो जगजाहिर हैं। कांग्रेस ने कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में पीएफआई की राजनीतिक इकाई एसडीपीआई के साथ गठबंधन किया था। यही नहीं, राहुल गांधी के वायनाड लोकसभा चुनाव में भी पीएफआई ने उन्हें खुलकर अपना समर्थन दिया था। पीएफआई बड़ी चालाकी से किसी भी दंगे को बहुसंख्यक समाज के गुंडों द्वारा अल्पसंख्यक समाज के निरीह लोगों पर किए गए अत्याचार के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसमें प्रशासन और खासकर भाजपा शासित सरकारों को मुस्लिम समाज के विरोधी तंत्र के रूप में दिखाने का प्रयास होता है।
पाकिस्तानी एजेंडा
पहले सिमी और बाद में पीएफआई, हमेशा से ही पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आईएसआई की योजना का हिस्सा रहे हैं। भारत को तोड़ने के लिए पाकिस्तान की ‘थ्री-के पॉलिसी’ यानी कश्मीर, खालिस्तान और किशनगंज है। तीन दशक पूर्व से ही पाकिस्तान इस नीति के तहत किशनगंज क्षेत्र में काम कर रहा था, लेकिन उसे उतनी सफलता नहीं मिल रही थी। लेकिन अब उसकी यह नीति कारगर होती दिख रही है, क्योंकि आज की तारीख में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के कई जिले इस्लामिक जनसंख्या और कट्टरता के मामले में किशनगंज से भी कई गुना आगे निकल चुके हैं। यही कारण है कि अब केवल किशनगंज ही नहीं, बल्कि पांच राज्यों के दर्जनों जिलों में पूरा का पूरा एक इस्लामिक गलियारा मूर्त रूप ले रहा है। इन पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम के अलावा झारखंड भी है। यह इस्लामिक गलियारा वास्तव में एक जिहादी गलियारा है, जिसका इस्तेमाल पीएफआई अपने खाद-पानी के लिए कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पीएफआई भारत के विघटन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा है। पीएफआई भारत के खिलाफ छद्म युद्ध के लिए कच्चे माल के तौर पर बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों, रोहिंग्या मुस्लिम, दलित, आदिवासी, सिख और अन्य पिछड़ा वर्ग का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है और झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सहित कई राज्यों में अपनी गतिविधियों के लिए एक मजबूत आधार बनाने की प्रक्रिया में है। पीएफआई देशभर में खुलेआम रोहिंग्या घुसपैठियों को बसाने का काम कर रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि यह सब काम पीएफआई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार का हवाला देकर ही करता है। इसलिए इस पर लगाम लगनी ही चाहिए।
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