एस.वर्मा
ऐसे समाचार प्राप्त हुए हैं जिनसे पता चलता है कि चीन और पाकिस्तान एक बड़ा मीडिया समूह बनाने वाले हैं। इसमें पैसा चीन का लगेगा और जगह उपलब्ध कराएगा पाकिस्तान। मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि यह चीन की अपना चेहरा चमकाने की कोशिश है
शी जिनपिन और इमरान खान: उइगरों के उत्पीड़क चीन की पाकिस्तान को साथ रखकर 'इस्लामी उम्मा' को साधने की कोशिश (फाइल चित्र)
आज विश्व भर में यह स्थापित तथ्य है कि विमर्श खड़ा करने में मीडिया की सर्वाधिक प्रभावशाली भूमिका है। यह एक ऐसे आधार की रचना करती है जो लोगों की विचार प्रक्रिया को प्रभावित करता है, उन्हें किसी विशिष्ट ढंग से सोचने और कतिपय विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही इसकी भूमिका इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि लोग मीडिया के द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर विश्वास करते हैं और उसी के अनुसार सकारात्मक अथवा नकारात्मक राय बनाते हैं। ऐसी स्थिति में मीडिया की उपयोगिता न केवल व्यक्तियों, व्यापारिक समूहों बल्कि राष्ट्रों के लिए भी बढ़ जाती है।
दुनिया में अपनी गहरी नकारात्मक छवि के दुष्प्रभावों से जूझ रहे दो देश, चीन और पाकिस्तान अब अपनी छवि चमकाने के लिए मीडिया का उपयोग करने के बारे में गहनता से विचार कर रहे हैं। कतिपय समाचार पत्रों की रपट बताती हैं कि चीन और पाकिस्तान सूचना जगत में प्रभावी स्थिति प्राप्त करने के उद्देश्य से एक टेलीविजन चैनल और मीडिया समूह बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। उनके अनुसार पश्चिमी मीडिया इन दोनों देशों के विरुद्ध पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। अत: उनका लक्ष्य पश्चिमी मीडिया का विकल्प विकल्प प्रस्तुत करना है। यह लगभग उसी तरह का उपक्रम हो सकता है जैसा कतर का अल-जज़ीरा या रूस का आरटी नेटवर्क। कोशिश है कि इस 'विश्वस्तरीय नेटवर्क' में अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों, जिनको दुनिया भर में एक बड़ा वर्ग मान्यता देता है, की सेवाओं का इस्तेमाल कर चीन और पाकिस्तान के क्रूर और रक्तरंजित चेहरे की 'कास्मटिक सर्जरी' की जाए।
चीन को इसकी आवश्यकता क्यों?
2014 में चीन में विदेश मामलों से संबंधित कार्य पर केंद्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि चीन को 'एक अच्छा चीनी नैरेटिव देना चाहिए, और विश्व भर में चीन के संदेशों को बेहतर ढंग से संप्रेषित करना चाहिए'। यह जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के मध्य एक ऐसा बिंदु है, जो बदलते परिदृश्य में ‘कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा’ को एक नए रूप में प्रस्तुत करता है। मई 2017 में, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (बीआरआई-जिसे पहले 'वन बेल्ट, वन रोड' के नाम से जाना जाता था) का औपचारिक उद्घाटन हुआ। इसके अंतर्गत 65 देश, 4.4 अरब लोग आते हैं और आता है वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 29 प्रतिशत। बड़े आकार की 900 महत्वाकांक्षी परियोजनाएं, जिनकी 2017 में अनुमानित लगत लगभग 1.3 ख़रब डॉलर थी, संचालित की जानी थीं। इस बीआरआई से चीन मध्य एशिया और यूरोप से लेकर अफ्रीका और लातीनी अमेरिका तक जुड़ने की योजना बनाये हुए है।
दुनिया में अपनी गहरी नकारात्मक छवि के दुष्प्रभावों से जूझ रहे दो देश, चीन और पाकिस्तान अब अपनी छवि चमकाने के लिए मीडिया का उपयोग करने के बारे में गहनता से विचार कर रहे हैं। वे सूचना जगत में प्रभावी स्थिति प्राप्त करने के उद्देश्य से एक टेलीविजन चैनल और मीडिया समूह बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। उनके अनुसार पश्चिमी मीडिया इन दोनों देशों के विरुद्ध पूर्वाग्रह से ग्रस्त है।
आज सूचनाओं का महत्व किसी से छुपा नहीं है। चीन 1949 से लगातार अपने देश के अंदर कड़ी सेंसरशिप लगाकर समाचार माध्यमों को कठोरता से नियंत्रित करता आ रहा है। परन्तु अब वित्तीय और सामरिक परियोजनाओं के चलते दुनिया के हर महाद्वीप में उसकी उपस्थिति है। चीन अपने देश में मानवाधिकारों के हनन, जातीय समूहों के दमन समेत अपनी क्रूर और अमानवीय नीतियों के चलते दुनिया भर में कुख्यात हो चुका है, विश्व भर में मीडिया उसकी अन्यायपूर्ण नीतियों को लगातार उजागर करता रहता है। लेकिन अब उसका भाग्य इन महत्वाकांक्षी परियोजनाओ में दांव पर लगा हुआ है। अत: इन देशों में, जिनमें अधिकांश लोकतांत्रिक देश हैं, वह उनके जनमत को अपना विरोधी बनाने का खतरा नहीं ले सकता।
हाल ही में, अप्रैल के अंत में ऑस्ट्रेलिया का बीआरआई से बाहर निकलना चीन के लिए एक बड़ा आघात है, जिसकी वह पुनरावृत्ति नहीं देखना चाहेगा। इस सबके लिए उसे इस 'नकारात्मक विमर्श' के बढ़ते प्रसार को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
इस नकारात्मक विमर्श का उदहारण उइगर मुस्लिमों से जुड़ा हुआ है। उइगरों पर किये जा रहे अमानवीय अत्याचारों को लेकर चीन के खिलाफ विश्व स्तर पर आक्रोश उमड़ रहा है। इस्लाम के ध्वजवाहक ओआईसी के 56 इस्लामी देशों के शासक भले ही चीन के समक्ष अपनी आर्थिक प्रतिबद्धताओं के चलते, विरोध दर्ज कराने में सक्षम न हों, परन्तु चरमपंथी इस्लामी विचारधारा अपने हम—मजहबियों पर हो रहे इन अत्याचारों के कारण चीन के विरुद्ध मुखर होती जा रही है, जो आने वाले समय में चीन के लिए समस्या का कारण बन सकती है। साथ ही इसे मानवाधिकार हनन का ज्वलंत मुद्दा मानते हुए संयुक्त राष्ट्र से लेकर यूरोपीय संघ और अनेक क्षेत्रीय संगठनों में चीन विरोधी भावना मुखर है। इन सब कारणों से चीन को अपनी छवि सुधारने और इस तरह की सूचनाओं के 'उचित निस्तारण' के लिए ऐसे मीडिया समूह की आवश्यकता है।
पाकिस्तान की भूमिका
इस सारे उपक्रम में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पाकिस्तान ने न तो सूचना तकनीकी, न ही वैश्विक पत्रकारिता में कोई महारत हासिल की है, जो चीन उसे इस उपक्रम में सहयोगी की भूमिका दे रहा है। पाकिस्तान विश्व का छठा सर्वाधिक आबादी वाला तथा दूसरा सबसे बड़ी इस्लामी आबादी वाला देश है। इसके साथ ही वह इस्लामी दुनिया की सबसे 'बड़ी सैन्य शक्ति' भी है। पाकिस्तान को साथ रखने से चीन को लगता है उसे इस्लामी दुनिया में प्रवेश करने और खुद के इस्लाम विरोधी होने के नैरेटिव से निपटने में सहायता हासिल होगी। आगे चलकर यह भी हो सकता है कि कुछ लक्षित समूहों में प्रवेश करने की रणनीति के तहत इस तरह की भूमिका मध्य एशिया, अफ्रीका और लातीनी अमेरिकी देशों को भी दी जाए, जहां से चीन को सर्वाधिक आर्थिक और सामरिक लाभ होने होने की संभावना है। वहीं दूसरी ओर, इस अवसर का लाभ उठाकर पाकिस्तान इस्लामोफोबिया को लेकर अपना पक्ष विश्व भर में प्रसारित कर सकता है, जिसकी विगत दिनों में वह लगातार कोशिश करता रहा है। हालांकि इसके लिए उसे तुर्की और मलेशिया को छोड़ कहीं से कोई समर्थन प्राप्त नहीं हो पा रहा है|
पाकिस्तान की भूमिका के बारे में भी अनुमान लगाया जा सकता है। पाकिस्तान ने न तो सूचना तकनीकी, न ही वैश्विक पत्रकारिता में कोई महारत हासिल की है, जो चीन उसे इस उपक्रम में सहयोगी की भूमिका दे रहा है। दरअसल, पाकिस्तान को साथ रखने से चीन को लगता है उसे इस्लामी दुनिया में प्रवेश करने और खुद के इस्लाम विरोधी होने के नैरेटिव से निपटने में सहायता हासिल होगी।
चीन के पूर्व में किये गए प्रयास
चीन का मीडिया एक बंद सरकारी निकाय की तरह काम करता है, जहां चीन के बारे में केवल वही सूचना बाहर निकल पाती है, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को आवश्यक लगती है। नए आक्रामक पूंजीवादी चीन को विश्व भर में अपनी पहुंच को सुदृढ़ बनाने के लिए अपनी नीतियों में कुछ परिवर्तन लाना पड़ा है। 2000 में चीन की 'गोइंग आउट' रणनीति के तहत चीन के सरकारी समाचार नेटवर्क सीसीटीवी-9 ने चीन का पहला अंग्रेजी भाषा का वैश्विक समाचार नेटवर्क का प्रारंभ किया। इसका उद्देश्य विश्व में चीन के विचारों और दृष्टि को व्यापक रूप से बढ़ावा देना और अमेरिका के प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा चीन के कथित नकारात्मक चित्रण का मुकाबला करना था। आज चीन के इस वैश्विक अभियान को सीसीटीवी, जो 2016 से चीन ग्लोबल टेलीविज़न नेटवर्क-सीजीटीएन—के रूप में जाना जाता है, के साथ और जिन्हुआ के अंग्रेजी भाषा के टीवी चैनल, सीएनसी वर्ल्ड जैसे चीनी प्रसारण नेटवर्क संभाले हुए हैं।
अमेरिकी प्रतिद्वंद्विता
1990 के बाद से चीन ने अमेरिका को एक नई चुनौती की उपस्थिति का आभास कराया है। आज चीन कई बहुपक्षीय भू-राजनीतिक और आर्थिक संगठनों में शामिल है, जिनमें ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक शामिल हैं। परन्तु सामरिक और आर्थिक क्षेत्र में उन्नति के बाद भी चीन की मीडिया पर पकड़ कमजोर ही रही। वहां अभी भी वैश्विक संचार साधनों पर अमेरिकी मीडिया का बोलबाला बना हुआ है| आज अमेरिकी कंपनियां संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण से लेकर विश्व के कोने—कोने में दूरसंचार केंद्रों की स्थापना और वैश्विक संचार के बुनियादी ढांचे और नेटवर्क की मालिक हैं। इनकी स्थिति को चुनौती दे पाना अत्यधिक कठिन है। आज सीएनएन, एचएलएन सीएनबीसी, समाचार पत्रों में न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट से लेकर खेल, फिल्म, संगीत, गेमिंग और मनोरंजन में विश्व के सबसे बड़े प्रदाताओं के साथ—साथ नए बने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर पर अमेरिकी प्रभुत्व निर्विवाद है। बढ़ते तकनीकी विकास के दौर में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में परिवर्तन सहज ही देखा जा सकता है।
इसमें चीन केवल अपने बल पर अमेरिका को चुनौती दे पाने में सक्षम नहीं है। ऐसी स्थिति में वह एक वैश्विक समूह का नेतृत्व इस अमेरिकी गढ़ को भेदने के लिए कर सकता है, क्योंकि वह यह भलीभांति जानता है कि इस संचार जगत को नियंत्रित किये बिना उसकी प्रगति कभी भी निर्बाध नहीं हो सकती।
आज चीन के थिंक टैंक जिस स्तर पर काम कर रहे हैं, वह दिखातेा है कि कैसे चीनी सरकार अगली पीढ़ी तक वैश्विक शक्ति और शायद वैश्विक प्रधानता के लिए लक्ष्य कर रही है। इसका उद्देश्य अमेरिकी नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय प्रणाली से अलग स्वयं के नेतृत्व में एक प्रतिस्पर्धी, विश्व व्यवस्था का निर्माण करना भी शामिल है। इसका संकेत राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अक्तूबर 2017 में 19वीं पार्टी कांग्रेस में अपने ऐतिहासिक संबोधन में किया था। तमाम ज्ञात तथ्यों से इस बात के बहुत कम संकेत हैं कि बीजिंग का रणनीतिक क्षितिज मात्र पश्चिमी प्रशांत या एशिया तक सीमित रहने वाला है। इसलिए आज अगर चीन वैश्विक मीडिया बनाने की कोशिश में है तो कोशिश बस चीनी दुष्प्रचार को और निखार देना ही है।
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