झारखंड के रामगढ़ में रहने वाले शिक्षक उपेंद्र पांडे और उनकी पत्नी सतविंदर पांडे प्रतिदिन चार से पांच घंटे घूमते हैं और लोगों से कहते हैं कि पांच प्लास्टिक दो और एक पौधे लो। यह दंपत्ति प्लास्टिक की थैलियों में पौधा लगाकर लोगों के बीच नि:शुल्क बांटते हैं, ताकि समाज में प्लास्टिक के कारण प्रदूषण न फैले। आजकल आप कहीं भी चले जाएं, हर जगह प्लास्टिक नजर आ जाएगी। शहरों में तो प्लास्टिक के पहाड़ खड़े हो गए हैं। छोटे शहरों और गांवों में भी प्लास्टिक के कारण प्रदूषण फैल रहा है। प्लास्टिक कचरे के प्रदूषण की वजह से लोग न तो स्वच्छ हवा ले पा रहे हैं और न ही शुद्ध जल पीने को नसीब हो पा रहा है। प्लास्टिक की वजह से वायु, जल और भूमि के प्रदूषण में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। कई समुद्री जीव—जंतु आज विलुप्ति के कगार पर आ चुके हैं। इस समस्या को देखते हुए रामगढ़ के उपेंद्र पांडे और उनकी धर्मपत्नी सतविंदर पांडे प्लास्टिक—मुक्त समाज बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। इन दोनों ने अपने बागवानी के शौक को पर्यावरण संरक्षण के अभियान में लगा दिया है। ये दोनों पिछले सात साल से इस कार्य में लगे हैं। उपेंद्र पांडे और उनकी पत्नी लोगों को पांच प्लास्टिक के बदले एक पौधा देने का काम कर रहे हैं। लोगों से मिली प्लास्टिक की थैलियों में ये दोनों पौधा लगाते हैं और जो पांच प्लास्टिक देता है, उसे एक पौधा देते हैं। इसके साथ ही ये दोनों लोगों को प्लास्टिक का उपयोग न करने को लेकर जागरूक करते हैं। पिछले सात साल में उनकी यह मुहिम रामगढ़ के सभी क्षेत्रों में पहुंच चुकी है। आज इनसे 5,000 से भी अधिक परिवार जुड़ चुके हैं। पांडे ने बताया कि अब तक वे 12 टन से अधिक प्लास्टिक जमा कर चुके हैं। वे उन प्लास्टिक में पौधा लगाकर पर्यावरण और समाज दोनों की सेवा में लगे हुए हैं। उपेंद्र पांडे अपने 10,000 वर्ग फुट के पूरे क्षेत्र को प्लास्टिक पार्क के रूप में विकसित कर चुके हैं। इन पौधों के लिए यह दंपत्ति प्रतिदिन 4 से 5 घंटे समय निकालता है। पेशे से उपेंद्र पांडे एक शिक्षक हैं और एक शैक्षणिक संस्था चलाते हैं। इसमें वे बच्चों को प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियां करवाते हैं। अपनी कमाई में से कुछ पैसा वे पर्यावरण की रक्षा के लिए लगाते हैं। उनका मानना है कि अगर सरकार इस विषय पर ध्यान दे तो सिर्फ रामगढ़ ही नहीं, पूरा देश प्लास्टिक मुक्त हो सकता है और हम पर्यावरण की इस विकट समस्या से निजात पा सकते हैं। उनका यह भी मानना है कि अपने बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए सबसे पहले हमें अपने पर्यावरण को सुधारना होगा। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो हमारे बच्चे भी सुरक्षित रहेंगे। इसी उद्देश्य के साथ पांडे दंपत्ति काम कर रहा है। इस अभियान की शुरुआत की कहानी बताते हुए कहा पांडे कहते हैं, ''2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने देश में स्वच्छता अभियान की बात की और स्वयं इसकी शुरुआत झाड़ू लगाकर की। उनके इस कार्य से प्रेरणा लेकर मैं अपनी पत्नी के साथ इस अभियान में लगा।'' उन्होंने यह भी कहा कि 2014 में ही हम दोनों दिल्ली गए। वहां के वायु प्रदूषण को देखकर लगा कि अब कुछ करना ही चाहिए। इसके बाद हम दोनों ने लोगों से प्लास्टिक लेकर उनको पौधे देने का कार्य शुरू किया। उपेंद्र पांडे ने बताया कि उन्हें बागवानी का शौक बरसों से था। उस शौक ने इस कार्य को और आसान बना दिया। सतविंदर पांडे ने सबसे पहले घरों में काम करने वाली महिलाओं से संपर्क किया और उनसे कहा कि जिस घर में प्लास्टिक मिले, उसे ले आओ। पांडे कहते हैं कि शुरुआत में लोगों की अपेक्षित प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली मगर धीरे—धीरे समाज के कई लोगों ने साथ देना शुरू कर दिया। इसी क्रम में पांडे दंपति ने रामगढ़ के सबसे बड़े सरकारी विद्यालय से संपर्क कर उस विद्यालय के शिक्षक और बच्चों को पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को बताया और पूरे स्कूल को प्लास्टिक पार्क में तब्दील कर दिया। पांडे इस अभियान के साथ-साथ झारखंड के कई विद्यालयों और कॉलेजों में जाकर वहां के बच्चों को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान की जानकारी देते हैं और प्लास्टिक उपयोग नहीं करने की शपथ भी दिलाते हैं। उनकी इस मुहिम की सराहना रामगढ़ छावनी परिषद के ब्रिगेडियर और मुख्य अधिशासी अधिकारी ने भी की और हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया। पांडे दंपत्ति का सपना है पूरे रामगढ़ को प्लास्टिक—मुक्त बना दिया जाए। उपेंद्र पांडे इस अभियान को जारी रखने और लोगों को जागरूक करने के लिए के लिए समय-समय पर अपने आसपास के क्षेत्रों में रैली भी निकालते रहते हैं। उनका कहना है कि हर काम के लिए अगर हम सरकार या प्रशासन पर ही निर्भर रहेंगे तो देश कभी प्रगति नहीं कर सकता। यह देश हमारा है और इस देश के प्रत्येक नागरिक को अपने कर्तव्य को समझने की आवश्यकता है। भारत मेें प्लास्टिक भारत में प्लास्टिक का प्रवेश लगभग 60 के दशक में हुआ। आज देश के कई हिस्सों में प्लास्टिक का पहाड़ खड़ा हो गया है, जो पर्यावरण के लिए बहुत ही घातक है। दो से तीन साल पहले भारत में अकेले आटोमोबाइल क्षेत्र में इसका उपयोग 5,000 टन वार्षिक था। संभावना यह जताई जा रही है कि यदि इस पर अंकुश नहीं लगा तो जल्दी ही यह 22,000 टन तक पहुंच जाएगा। भारत में जिन इकाइयों के पास यह दोबारा रिसाइकिल के लिए जाता है वहां प्रतिदिन 1,000 टन प्लास्टिक कचरा जमा होता है। इनमें से 75 फीसदी भाग कम मूल्य की चप्पलों के निर्माण में लगाया जाता है। 1991 में भारत में इसका उत्पादन 9,00,000 टन था। आर्थिक उदारीकरण की वजह से प्लास्टिक को अधिक बढ़ावा मिल रहा है। 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टि कचरे के रूप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं। अधिक वक्त बीतने के बाद ये टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो गए हैं। जीव विज्ञानियों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला यह भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है, जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में है या फिर समुद्र तल में छुपा है। —रितेश कश्यप
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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