पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई है कि उसे अपने सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। पाकिस्तान में महंगाई भी चरम पर है। लोग इमरान सरकार से बहुत नाराज हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान की इतनी बुरी स्थिति कभी नहीं हुई थी।
पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली इस हालत में पहुँच गई है कि वहां कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी उधार लेना पड़ रहा है। एक मामले की सुनवाई करते हुए पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने इसे अत्यंत खतरनाक बताते हुए टिप्पणी की कि जहाँ एक ओर सरकार ऋण के गहरे दुश्चक्र में फंसी हुई है और वह कर्मचारियों के वेतन भत्तों का भुगतान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक समेत अनेक ऋणदाताओं से ऋण लेती जा रही है। हालाँकि यह मामला खैबर पख्तून्ख्वा की सरकार से जुड़ा हुआ था परन्तु सारे पाकिस्तान के हालात इसी की तरह हैं। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के कर्मचारियों का वेतन अत्यधिक है, बल्कि 90 प्रतिशत मध्यम और निचले स्तर के कर्मचारियों का इस लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति और तज्जनित महंगाई के कारण जीवन निर्वाह करना कठिन हो गया है। पाकिस्तान की विवेकहीन कर प्रणाली से जहाँ एक ओर धनाढ्य वर्ग आसानी से कराधान से खुद को बचा ले जाता है, वहीँ दूसरी ओर वेतनभोगी वर्ग वास्तव में अन्य स्रोतों की तुलना में राजस्व संग्रह के लिए एक आसान लक्ष्य है, क्योंकि वे अपने पेशेवर श्रम को एक अवलोकन योग्य और औपचारिक प्रणाली के भीतर बेचते हैं।
2018 के बाद से लगातार पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। पाकिस्तान अपने सभी संभावित स्रोतों से इतना ऋण ले चुका है कि अब उसके ब्याज तक के भुगतान में दिक्कत आने लगी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हालांकि उसे एक ‘बेल आउट पैकेज’ दिया है पर उसके साथ—साथ मितव्ययिता की शर्तें इतनी कठोर हैं कि पाकिस्तान की सरकार के लिए उनका पालन कठिन हो गया है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों (जुलाई-फरवरी) में पाकिस्तान का राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत यानी 1.603 ख़रब पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच गया है। केंद्र के साथ ही प्रांतों की वित्तीय स्थिति बहुत खराब है। पाकिस्तान के लिए चिंताजनक तथ्य यह भी है कि उसके वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किया गया राजकोषीय आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान का कुल राजस्व सिर्फ 3.3 ख़रब रुपये रहा है, जो सकल घरेलू उत्पाद का एक मात्र 7.4 प्रतिशत है, और उसमें भी सकल घरेलू उत्पाद का केवल दो प्रतिशत हिस्सा ही गैर-कर राजस्व से आया है। एक चिंताजनक बात यह भी यह कि जहाँ एक ओर व्यय में वृद्धि हुई है, वहीँ विकास व्यय में गिरावट आई है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने पिछले वर्ष इसी अवधि में विकास पर 464 अरब रुपये की तुलना में केवल 414 अरब रुपये खर्च किए हैं। और इस गैर विकास व्यय मद का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा वेतन भत्तों पर किये जाना वाला व्यय भी है| इसका अर्थ यह है कि जहाँ एक तरफ ‘विकास’ सरकार के प्राथमिक एजेंडे में नहीं है, वहीँ प्रशासनिक और वित्तीय कार्यकुशलता में कमी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए नवीन संकटों का सृजन कर रही है।
अंतरराष्ट्रीय (आईएमएफ) मुद्रा कोष द्वारा ‘एक्सटेंडेड फण्ड फैसिलिटी’ के तहत जो ऋण दिए जा रहे हैं, उनकी शर्तें भी शासकीय कर्मचारियों के लिए अत्यधिक कठिनाई पैदा करने वाली हैं। पिछले साल ठीक इन्हीं दिनों आईएमएफ ने पाकिस्तान सरकार से सरकारी कर्मचारियों का वेतन कुछ समय के लिए पूरी तरह से रोकने के लिए कहा था। इस समय जहाँ सिंध की प्रादेशिक सरकार समेत केंद्र भी कर्मचारियों के वेतन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि की बातें आने वाले बजट के लिए कर रहे हैं, वह इस लगातार दस प्रतिशत से अधिक के स्तर पर रहने वाली मुद्रा स्फीति के समय में कर्मचारियों के निर्वाह के लिए आवश्यक है, पर वह इस ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते कैसे संभव हो पायेगा यह अनिश्चित है।
इस फैसले में न्यायाधीश गुलज़ार अहमद ने पाकिस्तान में आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों का मुद्दा भी उठाया और दूसरी ओर आईएमएफ के मितव्ययिता संबंधी उपायों और प्रशासनिक सुधारों से जुड़े जानकार भी मानते हैं कि पाकिस्तान में केंद्र और प्रदेश स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से अधिक है और इनकी छंटनी अर्थव्यवस्था में सुधार और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाने का कारक बन सकता है। परन्तु पिछली सरकारों के समय से भी यह देखने में आया है कि सरकारी नौकरियों का प्रलोभन वोट पाने का एक आसान तरीका रहा है और इमरान खान की सरकार आगामी चुनावों के पहले इस तरह का खतरा नहीं लेना चाहेगी। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक कार्यकुशलता के समन्वय के लिए कुछ ही दिनों में आने वाला बजट क्या उपाय लेकर आता है, यह जिज्ञासा का विषय रहेगा।
—एस.वर्मा
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