छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पुरेनाखार गांव की सरपंच ज्ञानेश्वरी की सूझबूझ की बदौलत न सिर्फ इस गांव में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला नहीं है बल्कि गांव वाले काढ़े और घरेलू दवाओं से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ा रहे हैं
आज जब चारों तरफ कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर कहर बरपाती मालूम दे रही है वहीं छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पुरेनाखार गांव की संघर्षगाथा अनूठा विश्वास जगाती है। वहां की महिला सरपंच ज्ञानेश्वरी की जितनी तारीफ की जाए, कम है। उन्हीं की सूझबूझ और तत्परता का नतीजा है कि तेरह सौ की आबादी वाले उस गांव में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला देखने में नहीं आया है। जबकि बगल के दो गांवों में संक्रमण जोरों पर है और वहां कंटेनमेंट जोन बनाने पड़े हैं।
अद्भुत ही कहा जाएगा पुरेनाखार वालों का यह प्रयास, जिसका नतीजा है कि 1300 की आबादी अब तक अछूती बनी हुई है महामारी से भी और बाहरी व्याधियों से भी। और इसकी प्रशंसा सिर्फ गांव के बड़े, बूढ़े, महिलाएं, नौजवान ही नहीं कर रहे, बल्कि प्रशासनिक अधिकारी भी कर रहे हैं। सरपंच ज्ञानेश्वरी का यह जज्बा, उनकी सूझबूझ और दूर की सोच की प्रशंसा चहुंओर है।
तो, ऐसा क्या किया ज्ञानेश्वरी ने। स्थानीय प्रशासन के हरकत में आने की बांट देखने बिना उन्होंने सबसे पहले गांव के नौजवानों की एक मंडली बनाई और उसे गांव की हदों की चौकसी करने का काम दिया। लक्ष्य था किसी भी बाहरी व्यक्ति को गांव में और गांव के व्यक्ति को बाहर जाने से रोकना। सरपंच ज्ञानेश्वरी तंवर को साथ मिला गांव की दो और महिलाओं का—स्कूल में पढ़ाने वाली गुलेश्वरी और अनीता। वे दोनों भी साथ हो लीं ज्ञानेश्वरी के। एक से भले तीन।
तीनों ने घर—घर जाकर पहले बड़े—बूढों की सेहत कायम रखने का बीड़ा उठाया। सबसे मिलीं और कोरोना से बचने के तरीके समझाए, जिसके पास मास्क नहीं था उसे मास्क दिया, साफ—सफाई रखने का अनुरोध किया। ज्ञानेश्वरी जान गई थीं कि कोरोना की ये लहर गांवों तक भी मार करने लगी है। अब उन्होंने गांव में गर्भवती महिलाओं और छोटै बच्चों को सुरक्षित रखने का बीड़ा उठाया। उन्हें संक्रमण से दूर रहने के उपाय बताए और हल्का सा भी शक होेने पर सावधानी के लिए दवा लेने को कहा। जिसके पास दवा नहीं थी, ज्ञानेश्वरी ने उन्हें वे दवाएं उपलब्ध कराईं। गांव के युवाओं को पहले अपनी फिर बाकी सबकी संक्रमण से सुरक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी। गांव वालों में खूब नाम है ज्ञानेश्वरी का लिहाजा वे उनकी बात अनसुनी नहीं करते। घर—घर जागरण हुआ। हर एक ने कमर कस ली कि इस महामारी को गांव में नहीं घुसने देना है। पड़ोस के दो गांव पंचायतों, मड़वामौहा और धनरास का हाल पुरेनाखार वाले जानते थे, जहां 100 से अधिक गांव वाले संक्रमित पाए जा चुके थे। हालत इतनी खराब हो गई थी वहां कि कंटेनमेंट जोन बनाने पड़े थे। इसलिए अपने गांव में चूक की कोई गुंजाइश न छोड़ने का बीड़ा उठा लिया सबने ज्ञानेश्वरी की अगुआई में।
सरपंच ज्ञानेश्वरी जानती हैं कि बचाव के उपायों के साथ साथ टीकाकरण भी बेहद जरूरी है गांव के सब लोगों का। उन्होंने फौरन टीकाकरण के प्रति सबको जगारूक किया और खुद यह कमान संभाली कि 45 से ज्यादा उम्र वालों को सबसे पहले शत—प्रतिशत टीके लग जाएं। इसके बाद अब वहां 18 से ज्यादा उम्र वाले आधे युवाओं को भी टीके लग चुके हैं।
इतना होने पर भी सरपंच हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी रहीं, वे रोज गांव में जाकर सबके हालचाल लेती हैं और जरूरी दवाएं, मास्क आदि की व्यवस्था करती हैं। उनका प्रयास रहता है कि सब काढ़ा और परंपरागत घरेलू दवाओं का प्रयोग करें। शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाएं और सामाजिक दूरी बनाए रखें।
अद्भुत ही कहा जाएगा पुरेनाखार वालों का यह प्रयास, जिसका नतीजा है कि 1300 की आबादी अब तक अछूती बनी हुई है महामारी से भी और बाहरी व्याधियों से भी। और इसकी प्रशंसा सिर्फ गांव के बड़े, बूढ़े, महिलाएं, नौजवान ही नहीं कर रहे, बल्कि प्रशासनिक अधिकारी भी कर रहे हैं। सरपंच ज्ञानेश्वरी का यह जज्बा, उनकी सूझबूझ और दूर की सोच की प्रशंसा चहुंओर है। पुरेनाखार गांव एक मिसाल बना है आसपास के इलाके वालों के लिए। इसने दिखा दिया है कि हर काम सरकार, शासन-प्रशासन के मत्थे मढ़कर केवल लाचार बने रहकर कुछ नहीं होता, अपने से आगे बढ़ना होता है, अपने और अपनों के लिए।
-आलोक गोस्वामी
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