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होम भारत पश्चिम बंगाल

बंगाल हिंसा: सत्ता का रक्तस्नान

by WEB DESK
May 10, 2021, 12:52 pm IST
in पश्चिम बंगाल
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2 मई को इधर विधानसभा चुनावों के नतीजे तृणमूल कांग्रेस को बहुमत की तरफ बढ़ता दिखा रहे थे तो उधर ममता की शह पर पोसे जाते रहे मजहबी उन्मादी ‘हिन्दुओं से हिसाब चुकता’ करने के लिए हथियारों पर धार देते जा रहे थे। उस दिन दोपहर को शुरू हुआ तृणमूल का खूनी खेला निर्बाध जारी है। भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या पर न ममता ने एक शब्द बोला, न पुलिस हरकत में आई

पश्चिम बंगाल में 5 मई 2021 को तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भले ही ले ली, लेकिन उससे पहले तीन दिन और बाद में जिस तरह से उनके पाले गए उन्मादी तत्वों ने पूरे प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं और सर्मथकों पर हिंसा का कहर बरपाया उससे उनकी सत्ता रक्तरंजित ही कही जाएगी। 2 मई को विधानसभा चुनावों के नतीजे आते ही तृणमूल कांग्रेस के उन्मादी गुंडों द्वारा लगातार तीन दिन भाजपा कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्याएं, उनके घरों की महिलाओं से बलात्कार और घरों, दुकानों, दफ्तरों में आगजनी की घटनाओं का दौर चला। तृणमूल की इस राजनीतिक हिंसा में भाजपा के महिला कार्यकर्ताओं सहित 28 से ज्यादा कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। नंदीग्राम से ममता बनर्जी को परास्त करने वाले शुवेंदु अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि उन्होंने बंगाल में अब तक ऐसी राजनीतिक हिंसा पहले कभी नहीं देखी। यह नरसंहार है। 2 मई की दोपहर से शुरू हुई तृणमूल के गुंडों, जिनमें ज्यादातर बांग्लादेशी मुस्लिम थे, की हिंसा की तपिश तेजी से पूरे प्रदेश में फैल गई। क्या शहर और क्या गांव, हर तरफ अल्लाहू अकबरके नारे लगाती, डंडे-पिस्तौल लहराती गुंडों की भीड़ बेरोकटोक मंडराते हुए, हर उस घर, दुकान, दफ्तर को निशाना बना रही थी जिस पर उन्हें भाजपा का झंडा दिखता था। घरों में घुसकर महिलाओं का अपमान किया, पुरुषों को मारा, हत्या की, सब तहस-नहस किया। वे बेखौफ थे, क्योंकि पुलिस आती ही नहीं थी, आती थी तो आंख बंद करे तमाशा देखती रहती थी।

हैरानी की बात तो यह है कि अखबारों, चैनलों और सही सोच के दल हिंसा की चर्चा कर रहे थे, उसकी भर्त्सना कर रहे थे लेकिन भारी बहुमत से जीती तृणमूल की नेता ममता बनर्जी एक शब्द नहीं बोलीं इस हिंसा पर। यह एक तरह से उकसावा ही था अपने गुंडों को कि जितना चाहे उपद्र्रव मचाओ, राजनीतिक बदला लो, कोई कुछ नहीं बोलेगा।

जलते रहे घर, मारे जाते रहे लोग
एक नहीं अनगिनत घटनाएं हैं हिंसा और हैवानियत की। बैरकपुर में जगतदल के बूथ नं. 177 के अध्यक्ष भाजपा कार्यकर्ता कमल मंडल पर जानलेवा हमला हुआ था, उनकी मां उन्हें बचाने आर्इं तो तृणमूल के गुंडों ने मां सोवा रानी मंडल की हत्या कर दी। राजनैतिक हिंसा की पराकाष्ठा इस हद तक थी कि तृणमूल के मजहबी उन्मादियों ने पश्चिम मेदिनीपुर के पिंगला विधानसभा क्षेत्र की भाजपा की महिला कार्यकर्ता शाश्वति जाना का सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसकी जघन्य हत्या कर दी। बीरभूम के नानूर में दो भाजपा महिला कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया, उन्हें सड़क पर पीटा गया। नंदीग्राम में तो ममता की पराजय के बाद जिहादियों ने हिन्दू महिलाओं के साथ बेहद अभद्र व्यवहार किया, उनकी जमकर पिटाई की और मरणासन्न कर दिया।

मजहबी उन्मादियों का खूनी खेल
तृणमूल के उन्मादी गुंडों ने हिंसा का वैसा ही रौद्र रूप दिखाया जैसा नवम्बर 2019 में सीएए के विरोध में दिखाया था। तब मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जमकर उत्पात मचाया गया था, आगजनी की घटनाएं हुई थीं। मुर्शिदाबाद/लालगोला में तो रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया गया था। इस बार तृणमूल के पोसे मजहबी जिहादियों ने ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों को निशाना बनाया है। कूचबिहार से लेकर झाड़ग्राम, मेदिनीपुर से लेकर उत्तर व दक्षिण 24 परगना, नदिया, बीरभूम, बर्धमान व हावड़ा में भाजपा के कार्यकर्ताओं की चुन—चुनकर हत्या की गई है। कूचबिहार के दिनहाटा में चन्दन रॉय व हाराधन रॉय की तृणमूल के गुंडों ने हत्या की तो वहीं झाड़ग्राम में भाजपा किसान मोर्चा, जम्बनी मंडल के अध्यक्ष किशोर मंडी, बीरभूम में सुदीप बिस्वास, बोलपुर में गौरव सरकार, रानाघाट के गगनपुर में उत्तम घोष व इंडस विधानसभा के बूथ एजेंट अरुप रुईदास जैसे अनेक कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई। जिहादियों ने योजनापूर्वक उन स्थानों और घरों को निशाना बनाया है जहां भाजपा के झंडे लगे हुए थे। भाजपा के उन कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया जो चुनाव में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। जिहादियों ने पहले से ही सक्रिय कार्यकर्ताओं व उनके घरों को चिन्हित कर लिया था।

प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं की राजनैतिक हत्याओं का दौर 2018 में पंचायत चुनावों के दौरान शुरू हुआ था, जब 37 भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या तृणमूल के गुंडों द्वारा की गयी थी। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनावी हिंसा में अनेक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। अभी हाल के विधानसभा चुनावों में देश के गृहमंत्री ने एक चुनाव सभा में वक्तव्य दिया था कि अब तक तृणमूल के गुंडों द्वारा 138 भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है। प्रदेश में हुईं राजनैतिक हत्याओं पर प्रदेश की मुख्यमंत्री का एक भी वक्तव्य नहीं आया और न ही आज तक किसी को कोई सजा हुई है, क्योंकि प्रदेश की पुलिस कोई प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करती है। प्रदेश की मुख्यमंत्री स्वयं एक महिला हैं लेकिन भाजपा की महिला कार्यकर्ताओं के साथ तृणमूल के गुंडों द्वारा जो अभद्र व्यवहार किया गया, उनका बलात्कार किया गया उस पर ममता का एक भी बयान न आना लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा लगता है।

हिन्दुओं का पलायन
तृणमूल के उपद्रवी तत्व, जैसा पहले बताया गया, ज्यादातर बांग्लादेशी मुस्लिमों के साथ मिले मजहबी उन्मादी हैं। उन्होंने ही ज्यादातर घटनाओं को अंजाम दिया है। ये जिहादी तत्व चुनाव परिणाम आते ही हरा गुलाल लगाकर हिन्दुओं के बस्तियों में घुसकर हिंसक विजय जुलूस निकालने लगे, और ‘खेला होबे खेला होबे’ के नारे लगाने लगे। रास्ते में जो हिन्दू दिखता, या हिन्दू घर, दुकान दिखती उस पर हमला बोल देते। ठीक वैसा दृश्य था जैसा 16 अगस्त 1946 को बंगाल में ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ या नोआखाली दंगों के वक्त दिखा था जिसमें 5000 से ज्यादा हिन्दुओं को ‘मुस्लिम लीग’ के लोगों ने मौत के घाट उतार दिया था और 10,000 हजार से हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार किया था। उसके बाद प. बंगाल से हजारों हिन्दू परिवार पलायन कर गए थे। आज भी ठीक वैसी स्थिति बनी हुई है। दक्षिण 24 परगना, जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और जहां पर तृणमूल ने 5 लाख से भी ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाया है, में रहने वाले भाजपा के प्रदेश अनुसूचित जाति मोर्चा सचिव भास्कर मंडल ने रो-रोकर वहां की आपबीती सुनाई है। उन्होंने बताया कि यहां स्थिति इतनी ज्यादा खराब है कि जिहादियों ने 400 से ज्यादा हिन्दुओं के घर तोड़कर आग के हवाले कर दिए हैं। उनको बेघर कर दिया गया है। ये 400 से ज्यादा हिन्दू परिवार असम की तरफ पलायन कर चुके हैं।

उन्होंने ये भी बताया कि वह स्वयं तीन दिनों तक यहां—वहां छुपकर अपने आपको बचाते रहे थे। इसी क्षेत्र के सोनारपुर में प्रतापनगर के एक भाजपा कार्यकर्ता की हत्या कर दी गयी। 2019 के लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा चुनावी हिंसा यहीं हुई थी और उस समय भी हिन्दू घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। देशी बमों व घातक हथियारों से लैस जिहादियों ने कई हिन्दू परिवारों को पलायन करने को मजबूर कर दिया है। उनके घरों पर बम—पत्थर आदि से हमला कर रहे हैं। कोलकाता के बेलियाघाटा में जिहादियों ने भाजपा कार्यकर्ता अभिजीत सरकार को मौत के घात उतार दिया।

उत्तर 24 परगना के बशीरहाट से किशोर बिस्वास ने बताया कि यहां पर चुन-चुन कर हिन्दुओं की बस्तियों को आग के हवाले किया गया है। कई दफ्तरों को जला दिया गया है। बदुरिया, टाकी, स्वरूपनगर, हरवा आदि क्षेत्रों की हालत बहुत ज्यादा खराब है। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद सन्देशखाली में तीन भाजपा कार्यकर्ताओं को जिहादियों ने गोलियों से भून दिया था, जिसमें से एक का शव आज तक नहीं मिला है। कूचबिहार, मालदा, बीरभूम, नंदीग्राम, पिंगला, इंडस (पूर्व मेदिनीपुर व पश्चिम मेदिनीपुर), आरामबाग, हावड़ा, बर्धमान, नदिया, उत्तर व दक्षिण 24 परगना आदि में तृणमूल के गुंडों व जिहादियों के गठजोड़ ने हिन्दुओं की बस्तियों को निशाना बनाया और उनके घरों को तोड़ दिया गया या आग के हवाले कर दिया गया है। यहां पर भय का ऐसा वातावरण है कि भाजपा के सांसद व उम्मीदवार रहे स्वप्न दासगुप्ता ने ट्वीट करके बताया कि हजारों हिन्दू परिवार नानूर में सड़क पर आ गए हैं। बहुत से बेघर हो गए हैं। हिन्दू परिवार इसलिए भी घरों से बाहर आ गए हैं क्योंकि तृणमूल—जिहादी गठजोड़ के गुंडे घरों में घुसकर मारपीट करते हैं। बताते हैं, 300—400 हिन्दू परिवारों ने असम के धुबरी जिले में शरण ली है।

प्रायोजित थी चुनावी हिंसा
प्रदेश में हो रही चुनावी हिंसा पूरी तरह से पूर्व नियोजित है। जिहादी सिर्फ चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। चुनाव परिणाम तृणमूल के पक्ष में आते ही जिहादियों ने आरामबाग व नंदीग्राम में भाजपा कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया। वहीं बिष्णुपुर में एक भाजपा कार्यकर्ता के घर को आग के हवाले कर दिया। इस सबके बीच सोशल मीडिया और ट्विटर पर इस्लामी कट्टरपंथियों के ऐसे ट्वीट देखने में आए, जिनमें स्पष्ट लिखा है—”तुम 100 करोड़ होकर कुछ नही उखाड़ पाए और हम 30 करोड़ होकर अपनी सरकार बनाते हैं। 10 साल रुक जाओ, हम तुम्हें बताते हैं कि सरकार कैसे बनती है।” वहीं एक अन्य ट्वीट में चुनाव के बाद रा.स्व. संघ के कार्यकर्ताओं को खुली धमकी देते हुए, उनके ‘सिर से खून बहते देखने’ की बात की गई है। देखा जाए तो इस हिंसा को शह तो ममता बनर्जी ने नंदीग्राम में अपनी एक चुनावी सभा में दे दी थी। उन्होंने कहा था—‘केन्द्रीय बल आपको कब तक बचाएंगे, चुनाव के बाद जब केन्द्रीय सुरक्षा बल चले जाएंगे उसके बाद…!’ प्रदेश में हुई इस चुनावी हिंसा में पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही, क्योंकि हावड़ा के शिबपुर में ‘हांगकांग फैशन स्टोर’ को उन्मादियों द्वारा पुलिस की मौजूदगी में लूटा गया था। उस दुकान पर भाजपा का झंडा लगा हुआ था।

ममता तीसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री भले बन गई हैं लेकिन आतंकित हिन्दुओं को अब बंगाल असुरक्षित लगने लगा है। देश के संघीय स्वरूप के लिए भी यह राज्य एक सवाल खड़ा करता है। लोकतांत्रिक मूल्यों की जिस तरह यहां धज्जियां उड़ाई जाती रही हैं उसे देखते हुए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण मालूम देता है।

प्रदेश में जनसंख्या की बात करें तो यहां 35 प्रतिशत मुस्लिम हैं जो ममता का वोट बैंक हैं। प्रदेश की 70 सीटों पर उनका प्रत्यक्ष प्रभाव है। ममता वोट बैंक के गणित को ध्यान में रखते हुए यहां की जिहादी गतिविधियों और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं की तरफ से आंखें मूंदे रहती हैं। चुनावों के दौरान अपने आपको शांडिल्य गोत्र का बताने वाली ममता के कुर्सी पर रहते शांडिल्य गोत्र वालों की ही हत्या कर दी जाती है पर वे मुंह नहीं खोलतीं। महिला होते हुए भी अभी तक प्रदेश की महिलाओं पर हुए जघन्य अपराधों पर उन्होंने चुप्पी ही नहीं साधी हुई है बल्कि उल्टा उन ‘स्त्रियों के चरित्र’ पर ही प्रश्नचिन्ह लगाया है। मजहबी उन्मादियों के जिहादी कृत्यों पर आज तक ममता ने एक शब्द नहीं बोला है।

खतरनाक संकेत
सीमावर्ती राज्य पश्चिम बंगाल में जिस तरह से सरकार की शह पर तृणमूल-जिहादी गठजोड़ ने चुनावी हिंसा का खूनी खेल रचा है वह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे की ओर संकेत करता है। प्रदेश में हिन्दुओं की चल व अचल सम्पति को नष्ट किया गया है। चुनावी हिंसा व हत्या से एक आतंक का वातावरण उत्पन्न किया गया है ताकि हिन्दू अपनी सपंत्ति को छोड़कर चले जाएं जिससे वह जिहादियों के द्वारा कब्जा ली जाए। प्रदेश के मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर व दक्षिण 24 परगना, हावड़ा, बीरभूम व बर्धमान जिलों में मुस्लिम बहुसंख्या में हैं। मालदा के कालियाचक में बांग्लादेश से अवैध कारोबार होता है। इसको ‘मिनी पाकिस्तान’ नाम से जाना जाता है। यहां पर नकली मुद्रा, एके 47 जैसे घातक हथियारों व मादक पदार्थों का अवैध व्यापार होता है। वहीं उत्तर 24 परगना जिला बांग्लादेश की सीमा से जुड़ा हुआ है। वहां भी बांग्लादेशी घुसपैठ व नशीले पदार्थों और गोतस्करी चरम पर है। दक्षिण 24 परगना से भांगर होते हुए उत्तर 24 परगना के बशीरहाट तक रोहिंग्या मुस्लिमों की अवैध बसाहट है। बांग्लादेश के सुंदरबन से रोहिंग्या मुस्लिम भारत के सुंदरबन इलाके में प्रवेश करते हैं। वहां से बशीरहाट तक एक पट्टी विकसित हो गयी है। बशीरहाट गोतस्करी का मुख्य केंद्र है। वहीं टाकी में इक्षामती नदी के उस पार बांग्लादेश का सातखीरा है, जहां मजहबी कट्टर गुट जमाते-मुजाहिद्दीन आॅफ बांग्लादेश का मुख्यालय है। वहां यह गुट पश्चिम बंगाल में जिहादी गतिविधियों के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाता है। वहां मदरसों का निर्माण कर उनमें जिहादी तैयार करता है। मुर्शिदाबाद, मालदा, बशीरहाट में सबसे ज्यादा मदरसों का निर्माण तृणमूल सरकार के सहयोग से किया गया है। वहीं बीरभूम जिला अवैध हथियार (बम-कट्टा) निर्माण का गढ़ बनकर उभरा है। पिछले साल प्रदेश के राज्यपाल ने बीरभूम जिले में बन रहे अवैध हथियारों को लेकर चिंता जताई थी। ये वही स्थान हैं जहां से तृणमूल के सबसे ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर विधानसभा में पहुंचे हैं। प्रदेश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है और मदरसों में जिहादी गतिविधियों की तालीम दी जाती है। यह प्रदेश अवैध हथियारों, नशीले पदार्थों और मानव तस्करी का केंद्र बन गया है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है। इसलिए सीएए का सबसे ज्यादा विरोध यहीं पर हुआ था। वह विरोध भी ममता बनर्जी सरकार के द्वारा प्रायोजित था।

अभाविप कार्यालय पर हमला

कोलकाता के मानिकतला में स्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यालय में 3 मई को तृणमूल के जिहादियों ने हमला बोल दिया। परिषद् के कार्यालय में तृणमूल के गुंडों ने वहां पर लगे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सुभाष चंद्र बोस, मां काली के चित्रों को उखाड़ फेंका। कार्यालय में उस समय मौजूद पूर्व क्षेत्र के संगठन मंत्री व सह संगठन मंत्री गोविन्द नायक व शेखर तथा अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री श्रीनिवास के साथ धक्का-मुक्की की गई। धमकी दी गई कि ‘तुम लोगों के कारण नंदीग्राम से ममता दीदी को हार का सामना करना पड़ा, अब तुमको यह कार्यालय छोड़ना पड़ेगा। तुरंत कार्यालय छोड़कर चले जाओ’।

जला दिए गांव के गांव
पश्चिम-बंगाल में पिछले वर्ष भीषण चक्रवात ‘अम्फान’ आया था जिसमें सबसे ज्यादा तबाही दक्षिण व उत्तर 24 परगना में देखने में आई थी। लोगों के घर उजड़ गए, सम्पत्ति का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था। अभी ये घाव भरे भी नहीं थे कि इन क्षेत्रों में इस हिंसा ने हिन्दुओं के गांव के गांव उजाड़ दिए हैं। बशीरहाट के संदेशखाली में 14 पक्के मकानों को ढहा दिया गया है। यह सब प्रशासन की शह पर हुआ है। यहां स्थानीय तृणमूल इकाई में सभी मजहबी उन्मादी तत्व हैं। उन्होंने कई हिन्दू गांवों को आग के हवाले कर दिया है।

आहत परिवारों से मिले नड्डा

चुनावी हिंसा के बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा दो दिन के दौरे पर प. बंगाल आए। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष व अन्य पदाधिकारियों के साथ वे हिंसा प्रभावित हिन्दू परिवारों से मिले। उनको ढाढस बंधाया। नड्डा दक्षिण 24 परगना के सोनापुर भी गए जहां उन्होंने हिंसा में मारे गए मृतकों के परिजनों के साथ बात की और उन्हें हरसंभव सहायता का वचन दिया। भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने कोलकाता के बेलियाघाटा में मृत कार्यकर्ता अभिजीत सरकार के परिवारजनों से मुलाकात की। इस हिंसा की भयावहता पर नड्डा का कहना था कि उन्होंने आजाद भारत में इस तरह की घटना पहले कभी नहीं देखी। प. बंगाल में इतनी असहिष्णुता देखकर सभी आहत हैं। बंगाल में हिंसा के विरोध में 6 मई को भाजपा ने पूरे भारत में धरना दिया।

महिलाओं के लिए नरक बनी दुर्गा की भूमि

पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा को लेकर देश के संस्कृतिकर्मियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर उसकी निंदा की है। यहां उसी बयान को प्रकाशित किया जा रहा है-

प. बंगाल में दंगे कराने के लिए किए जा रहे घृणित प्रयास अत्यंत निंदनीय हैं। लोकतांत्रिक तरीके से अपनी जीत का जश्न मनाने के बजाय, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) लगातार अपने ही नागरिकों, अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को आतंकित कर रही है। टीएमसी की क्रूरता का शिकार होने वालों में भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवारों की महिलाएं और मासूम बच्चे भी शामिल हैं। राहत की बात थी कि आठ चरणीय चुनाव प्रक्रिया के दौरान छिटपुट हिंसा के बावजूद ऐसी धारणा बनी थी कि पश्चिम बंगाल में कांटे की टक्कर का चुनाव निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। इसी वजह से चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों, सुरक्षा बलों और अन्य सभी ने लोकतंत्र के त्योहार के इस सफल आयोजन के लिए बंगाल के लोगों की प्रशंसा भी की थी।

परंतु राज्यभर में हिंसा के जघन्य कृत्यों ने मानवता की अंतरात्मा को झिंझोड़ दिया है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन और विचारों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, परंतु भारी पैमाने पर हिंसा, नृशंस हत्याएं, बलात्कार देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर धब्बे के रूप में सामने आए हैं। यह अकल्पनीय है कि अलग राजनीतिक राय रखने के ‘पाप’ के कारण किसी को अपनी जान गंवानी पड़े; उसके घर पर हमला हो जाए; उसे अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़े और महिलाओं के साथ बलात्कार हो!

खबरों के मुताबिक, चुनाव परिणाम घोषित होने के कुछ ही घंटों में कम से कम 14 लोगों की जान चली गई। लगभग 1,00,000 नागरिक बेघर हो गए। जीतने वालों का समर्थन कर रहे गुंडों की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई के कारण भाग कर शरण लेने वाले बहुत से लोगों के लिए पड़ोसी राज्य असम को व्यवस्था करनी पड़ी। यह हमारे देश पर एक धब्बा है।

जनता और लोकतंत्र के प्रेमियों को निराश करने वाली बात है कि पश्चिम बंगाल में एक पार्टी की जीत के बाद फैली हिंसा के इस दौर में असंख्य महिलाओं पर हमले हुए हैं। विडंबना यह है कि महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटनाएं एक महिला राजनीतिज्ञ की जीत के बाद हो रही हैं। यह अकल्पनीय है कि बंगाली ‘अस्मिता’ पर गर्व करने वाली दुर्गा पूजा की भूमि महिलाओं के लिए नरक बन गई है।

शांति निकेतन की भूमि को आग लगा दी गई है। टैगोर की भूमि को आज उन्हीं लोगों ने आग लगा दी है जो उनके वारिस होने का दावा करते रहे हैं। जाहिर है कि यह सब रबींद्रनाथ टैगोर की स्मृति का मजाक उड़ाने जैसा है। यह और दु:खद बात है कि हिंसा की कई घटनाएं ‘शांति निकेतन’ क्षेत्र में हुई हैं।

दुर्भाग्य से, पश्चिम बंगाल में पिछले दशकों में राजनीतिक हिंसा का इतिहास रहा है, जो माकपा के लाल आतंकवादियों से विरासत में मिला है। इसके अलावा, लोगों के दिमाग में विभाजन के दिनों में हुई हिंसा की कटु स्मृतियां हैं। परंतु पिछले सप्ताह हमने कुछ ऐसा देखा है जो बंगाल में राजनीतिक हिंसा के हाल के इतिहास की तुलना में भी बदतर है। इस पृष्ठभूमि में हम बंगाल के अधिकारियों का आह्वान करते हैं कि वे शांति पुनर्स्थापित करने के साथ ही बिना किसी भय के राजनीतिक गतिविधियों की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित करें। यह भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को प्रत्याभूत अधिकार है। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वह राज्य के प्रत्येक नागरिक के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करे। अतएव, बंगाल के अधिकारियों को सुनिश्चित करना है कि राज्य में हिंसा फैलाने वाले अपराधियों को दंड दिया जाए, पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए और उन्हें घर वापसी पर सुरक्षा का आश्वासन दिया जाए। उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से अपना दैनिक जीवन-यापन करते हुए गरिमापूर्ण तरीके से अपनी रोजी-रोटी कमाने दिया जाना चाहिए। इसमें किसी भी तरह की देरी स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो, टैगोर और ईश्वर चंद्र विद्यासागर की भूमि की पहले से ही खराब हो रही छवि को और धूमिल करेगी।

क्या अपराध था शाश्वति का!

जिहादियों ने पश्चिम मेदिनीपुर के पिंगला विधानसभा क्षेत्र में 20 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता शाश्वति जाना के साथ सामूहिक बलात्कार किया। उसके बाद उसकी नृशंस हत्या कर दी गई। इस युवती का दोष यह था कि वह भाजपा के लिए कार्य करती थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में हुगली के चुरचुरा में एक भाजपा समर्थक कार्यकर्ता की मां को तृणमूल के गुंडों ने इतना पीटा कि वह मरणासन्न हो गयीं।

अम्बा शंकर बाजपेयी

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Turban Tornado: विश्व के सबसे उम्रदराज एथलीट फौजा सिंह का सड़क हादसे में निधन, 100 साल की उम्र में बनाए 8 रिकॉर्ड

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समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

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श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

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