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फेफड़ों के कैंसर की बीमारी से जूझ रही बेटी के शर्तिया इलाज के नाम पर जालन्धर के एक पादरी ने मुम्बई के हिन्दूू परिवार के तीन सदस्यों-शुभम, नन्दिनी और मां मीना का कन्वर्जन करवाकर उन्हें ईसाई बना दिया। इसके बावजूद नन्दिनी नहीं बच सकी। परिवार ने पुलिस में शिकायत भी की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई
कथित प्रगतिशील व आधुनिक होने का दावा करने वाले ईसाई समाज की पांथिक संस्था किस तरह भारतीय समाज में मध्ययुगीन अन्धविश्वासों का अन्धकार फैला रही, इसका उदाहरण जालन्धर में देखने को मिला। फेफड़ों के कैंसर की बीमारी से जूझ रही बेटी के शर्तिया इलाज के नाम पर जालन्धर के एक पादरी ने मुम्बई के हिन्दूू परिवार के तीन सदस्यों-शुभम, नन्दिनी और मां मीना का कन्वर्जन करवाकर उन्हें ईसाई बना दिया। इसके बावजूद नन्दिनी नहीं बच सकी। परिवार ने पुलिस में शिकायत भी की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मुम्बई के वाशी इलाके के सेक्टर-19 स्थित प्लाट नम्बर आठ के सब्जी विक्रेता शुभम ने बताया कि उनकी 17 वर्षीय बहन नन्दिनी फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित थी। उसका मुम्बई के टाटा अस्पताल में इलाज चल रहा था। वहां जालन्धर के एक चर्च से सम्बन्ध रखने वाली महिला स्वर्णा खेड़ा उनके सम्पर्क में आई। स्वर्णा ने उन्हें यूट्यूब पर कुछ वीडियो बताए और दावा किया कि चर्च के पास्टर मरे हुए लोगों को जीवित कर देते हैं। उसने नन्दिनी को भी प्रार्थना के माध्यम से ठीक करने का दावा किया। स्वर्णा ने उन्हें 14 फरवरी को चण्डीगढ़ स्थित उनके सेण्टर में जाने की सलाह दी। नन्दिनी का परिवार चण्डीगढ़ पहुंचा तो पता चला कि पास्टर जालन्धर में है।
चण्डीगढ़ में उनसे पांच हजार रुपये लेकर चर्च में मिलने का समय दिया गया। यहां पर प्रबन्धकों ने पास्टर से परिवार की वीडियो काल से बात करवाई और एक लाख रुपये जमा करवाने को कहा। परिवार के पास 40 हजार रुपये ही थे। इस पर पास्टर ने परिवार को कन्वर्जन करने और बाकी पैसे छोड़ने की पेशकश की। शुभम के मुताबिक उन्होंने अपनी चोटी कटवा दी और जनेऊ व रुद्राक्ष की माला भी उतार दी। इसके बदले उन्हें एक तेल की शीशी व बाइबल देकर मुम्बई भेज दिया गया। 20 दिनों के बाद नन्दिनी के टेस्ट करवाने को कहा। जब टेस्ट करवाए तो कैंसर पहले से और बढ़ गया था। उन्होंने चर्च से दोबारा सम्पर्क किया तो परिवार को जालन्धर बुला लिया। 11 अप्रैल को वह चर्च पहुंचे। यहां परिवार की पास्टर के साथ वीडियो काल के माध्यम से प्रार्थना करवाई गई। 12 अप्रैल को नन्दिनी की मौत हो गई। परिवार रोने लगा तो पास्टर ने एक लाख रुपये मांगे और कहा कि वह नन्दिनी को जीवित कर देगा। विरोध किया तो प्रबन्धकों ने उन्हें बाहर निकाल दिया।
पीड़ित परिवार ने कुछ हिन्दूू संगठनों से सम्पर्क किया। उन्होंने नन्दिनी का अन्तिम संस्कार करवाया। इसके बाद शुभम व उसकी मां मीना पण्डित को विधिवत रूप से हिन्दूू धर्म में वापस शामिल किया गया। हिन्दू क्रान्ति दल के अध्यक्ष मनोज नन्हा ने कहा कि ईसाई मिशनरी लोगों को गुमराह कर कन्वर्जन करवा रही हैं। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने सरकार से कार्रवाई की मांग की है।
नन्दिनी के भाई शुभम ने 12 को अप्रैल एसएसपी सन्दीप गर्ग को शिकायत दी थी। इसकी जांच एसपीडी मनप्रीत सिंह ढिल्लों को दी गई है। दूसरी शिकायत हिन्दूू नेता कुणाल कोहली व आशीष अरोड़ा ने दी। इसमें चर्च की ओर से लोगों को गुमराह करने की बात कही गई है। इसके बावजूद आरोपितों पर कार्रवाई नहीं की गई। इस बारे में चर्च का पक्ष लेने का प्रयास किया गया, लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया।
चर्च में अन्धविश्वास से उपचार के दावे
पंजाब के चर्च में सरेआम अन्धविश्वास फैला कर लोगों के गंभीर रोगों के उपचार के दावे किए जाते हैं। केवल दावे ही नहीं बल्कि लोगों का उपचार किया भी जाता है और इसके लिए कलाकारों का सहारा लिया जाता है। नादान लोगों को फांसने के लिए पादरी लोग अपने ही साथियों को पहले तो मरीज के तौर पर जनता के सामने पेश करते हैं, फिर प्रार्थना के जरिए उनका उपचार किया जाता है। प्रार्थना के बाद यही कलाकार अपने आप को ठीक होने का दावा करते हैं और इस तरह आम लोगों को झांसे में डाला जाता है। इसी तरह के अन्धविश्वास से लोगों का न केवल आर्थिक शोषण हो रहा है, बल्कि कन्वर्जन कराया जा रहा है। पादरियों ने इसके लिए अपने एजेंट छोड़े हुए हैं जो समाज में दुखी व परेशान लोगों से सम्पर्क कर उन्हें चर्च तक लाते हैं।
अन्धविश्वास से उपचार का दावा दण्डनीय अपराध
जादू, टोने, तलिस्म आदि के माध्यम से किसी व्यक्ति या पशु में रोग का उपचार करने या कम करने का दावा करना औषधीय चमत्कारिक उपचार (अक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम -1954 के तहत दण्डनीय अपराध है। इसके लिए कारावास व आर्थिक दण्ड या दोनों तरह की सजा का प्रावधान है।
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