पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : महान भारतीय
क्रांतिकारी
पृष्ठ : 166
पुस्तक का नाम : महान भारतीय
वीर पुरुष
पृष्ठ : 150
इन दोनों पुस्तकों के लेखक हैं विजय कुमार गुप्ता और गौतम सपरा। दोनों पुस्तकें सुरुचि प्रकाशन, केशवकुंज, झंडेवाला, नई दिल्ली-110055 से प्रकाशित हुई हैं। प्रत्येक का मूल्य 100 रु. है।
सुरुचि प्रकाशन से हाल ही में दो बेहतरीन किताबें आई हैं- ‘महान भारतीय क्रांतिकारी’ और ‘महान भारतीय वीर पुरुष’। इन पुस्तकों में अनेक प्रेरणादायी भारतीय वीर पुरुषों और क्रांतिकारियों के जीवनवृत्त को हमारे सामने रखा गया है। इसमें क्रूर अंग्रेजों से जूझते बंगाल के 16 वर्षीय युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस हैं, तो मृत्यु जैसे जटिल विषय पर यमराज से निडर हो सवाल करते वीर नचिकेता भी हैं। क्रूर-अत्याचारी औरंगजेब के जल्लादों द्वारा खड़ी की जा रही दीवार में चिनते गुरु गोबिंद सिंह के जांबाज शेर बच्चे जोरावर और फतेह हैं, तो कालापानी की सेलुलर जेल में अंग्रेजों के अत्याचारों से लोहा लेते, दोहरा आजीवन कारावास भोगते भारत के महान सपूत वीर सावरकर भी हैं।
ऐसी किताबें, खासकर हमारी नई पीढ़ी के किशोरों और युवाओं के लिए नितांत आवश्यक हैं। क्योंकि उनमें से अधिकांश तो केवल 1947 के बाद के भारत की ही बातें करते हैं। हमारे हजारों वर्षों के संघर्षशील और गौरवशाली इतिहास से वे लगभग अनभिज्ञ ही हैं। हमारे विद्यालयों में भी जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है, उसमें भी हमारे अनेकानेक वीर पुरुषों, क्रांतिकारियों का या तो जिक्र ही नहीं है और अगर है भी तो बहुत ही उथले रूप में है। लेकिन सवाल यह है कि ऐसी आवश्यक किताबें उन तक पहुंचें कैसे? ऐसी किताबों को छापने के साथ-साथ, इनके उपयुक्त पाठकों तक ये कैसे उपलब्ध हों, इस विषय पर प्रकाशकों को विचार करना चाहिए।
इन किताबों के जरिए नई पीढ़ी को न केवल आधुनिक भारत, अपितु प्राचीन और पौराणिक भारत के गौरवशाली व्यक्तित्वों के बारे में भी जानकारी मिलेगी। भक्त प्रह्लाद, नचिकेता, कार्तिकेय, अभिमन्यु, एकलव्य से लेकर खारवेल, लचित बड़फूकन, वीर हकीकत राय, फतेह सिंह, जोरावर सिंह जैसे वीर सपूतों के जीवन से जब नई पीढ़ी रूबरू होगी तभी उसे भारत के निर्माण का वास्तविक अर्थ समझ आएगा। जब वे छत्रसाल, महराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, वीर सावरकर, बिरसा मुंडा, सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा, खुदीराम बोस जैसे महान क्रांतिकारियों के सच्चे जीवनवृत्त से अवगत होंगे तभी वे भारत की आजादी के मर्म को महसूस कर पाएंगे।
प्रेरणा, पराक्रम और पवित्रता से परिपूर्ण इन वीर सपूतों का जीवन नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बने, यही इन किताबों का उद्देश्य है। ‘महान भारतीय वीर पुरुष’ के प्रकाशकीय में लिखा गया है, ‘‘भारतीय जन समाज में ऐसे अनेक धीर-वीर, साहसी और निडर बालक हुए, जिन्होंने अपने शौर्य, तप व अदम्य साहस के बल पर असंभव को संभव कर दिखाया। इन वीर सपूतों ने देश व धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।’’ विद्यालय-स्तर पर ऐसी पुस्तकों को पूरे भारत में पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए और सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में इनका अनुवाद भी होना चाहिए, ताकि किशोरावस्था में ही हर प्रांत के विद्यार्थी इन्हें पढ़ सकें। आप भी एक बार इन पुस्तकों को जरूर पढ़ें।
—नरेश शांडिल्य
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