राकेश सेन
सैटेलाइट से देखा जाए तो आज पंजाब स्वर्णिम नजर आएगा, क्योंकि राज्य में गेहूं की फसल पूरी तरह पक कर तैयार है। लेकिन अगर राज्य सरकार ने सहयोग नहीं किया तो यही पीलापन भयभीत भी कर सकता है क्योंकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसानों को सीधी अदायगी नहीं की गई तो केंद्र सरकार गेहूं भी नहीं खरीदेगा। दूसरी ओर किसान संगठनों यहां तक कि दिल्ली की सीमा पर बैठे किसान संगठनों में भी इस बात को लेकर उत्साह है कि केंद्र सरकार उनके खातों में सीधे पैसे डालने वाली है और उन्हें अब आढ़तियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसीलिए किसान यूनियन के नेता जोगिंदर सिंह उगराहां जो पहले किसान व आढ़तियों का रिश्ता नाखून मांस का बताते थे, आज इसे खरबूजे और छूरी का बता रहे हैं जिसमें कटना तो अंतत: किसान को ही पड़ता है। गेहूं की फसल खरीद की सीधी अदायगी किसानों के खाते में डालने के मामले में केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को स्पष्ट कर दिया है कि अगर इस साल से ऐसा न किया गया तो केंद्र सरकार पंजाब से गेहूं की खरीद नहीं करेगी। केंद्र ने पंजाब को यह झटका उस समय दिया जब शनिवार (10 अप्रैल) से पंजाब में गेहूं की खरीद शुरू होनी है।
केंद्र के इस रुख पर पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने कहा कि केंद्र के कड़े रुख के बाद अब हमारे पास सीधी अदायगी करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। दिल्ली में केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री पीयूष गोयल ने पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल, खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु, शिक्षा मंत्री विजय इंद्र सिंगला और मंडी बोर्ड के चेयरमैन लाल सिंह के साथ बैठक की। गोयल ने सीधी अदायगी के मामले में पंजाब की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यदि इस बार किसानों के खाते में सीधी अदायगी नहीं की गई तो इस रबी के सीजन में केंद्र पंजाब से गेहूं की खरीद नहीं करेगा।
वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने कहा कि जब केंद्रीय मंत्री को एपीएमसी एक्ट में सीधी अदायगी का प्रवधान न होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने पंजाब सरकार को अपने एक्ट में बदलाव करने की सलाह दी। इसके साथ ही कहा कि जब अन्य राज्यों में सीधी अदायगी हो रही है तो पंजाब ऐसा क्यों नहीं कर सकता।
मनप्रीत ने कहा कि पांच विभिन्न मुद्दों को लेकर हुई इस बैठक में सीधी अदायगी के मुद्दे को छोड़कर शेष सभी मांगें केंद्रीय मंत्री ने मान ली हैं। फसल खरीद के साथ जमीन रिकार्ड का ब्यौरा देने की शर्त को छह महीने के लिए टाल दिया है। अभी यह तय नहीं हो रहा था कि ठेके पर जमीन लेकर कृषि कर रहे किसानों को भुगतान कैसे किया जाएगा। गोयल ने कहा कि इसके लिए बाकायदा सिस्टम तैयार किया जाए।
किसानों को फसल की सीधी अदायगी को लेकर भले ही आढ़ती व पंजाब सरकार विरोध कर रही हो लेकिन किसान संगठन इसके हक में है। किसान संगठन खुद चाहते हैं कि फसल की सीधी अदायगी किसानों के खाते में जानी चाहिए। किसान चार महीने तक फसल को पालता है। लेकिन आढ़ती एक माह में ही किसानों से न सिर्फ ज्यादा कमाई कर लेता है। इससे किसान का शोषण ही होता है।
केंद्र सरकार द्वारा किसानों के खाते में सीधी फसल की अदायगी को लेकर किसान व किसान संगठनों में उत्साह है। यही कारण है कि आढ़ती व खुद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब डीबीटी का विरोध किया तो किसानों ने कभी भी इसका समर्थन नहीं किया। सीधी अदायगी को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले संयुक्त किसान यूनियन के नेता प्रो. जगमोहन सिंह कहते हैं, किसानों की लंबे समय से सीधी अदायगी की मांग रही है। इसके लिए बाकायदा हाईकोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया गया है।
इस फैसले को लेकर किसान केंद्र सरकार के साथ हैं, लेकिन अभी समय ठीक नहीं था। टाइमिंग पर संदेह व्यक्त करते हुए प्रो. जगमोहन सिंह कहते हैं कि यह किसानों के कृषि बिलों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को कमजोर करने के लिए किया गया है। सरकार को सीधी अदायगी का फैसला कुछ समय आगे बढ़ा देना चाहिए था। अलबत्ता केंद्र सरकार का यह फैसला अच्छा है।
वहीं, जोगिंदर सिंह उगरांहा तो सीधे किसान और आढ़ती के रिश्ते में किसानों को खरबूजा बताते हैं। चाहे छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छूरी पर कटना तो खरबूजे को ही है। यही कारण है कि राज्य सरकार को डीबीटी के मामले में किसानों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है। जैसा की कृषि सुधार कानून के मामले में नहीं था।
कृषि कानून के मामले में कांग्रेस द्वारा विरोध करने पर किसान संगठन सड़कों पर उतर आए थे। जोकि अभी तक सड़कों पर बैठे हुए हैं। वहीं, किसान भी केंद्र सरकार के इस फैसले से खुश हैं।
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