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उत्तम वक्ता, गायक और गीतकार

by WEB DESK
Apr 7, 2021, 12:16 pm IST
in श्रद्धांजलि
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शशिकांत चौथाईवाले

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के आमंत्रित सदस्य श्री गौरीशंकर चक्रवर्ती का 24 मार्च, 2021 को दिल्ली के एक चिकित्सालय में निधन हो गया। 71 वर्षीय गौरीशंकर जी कुछ दिनों से कर्क रोग से पीड़ित थे। वे कार्यकर्ताओं के बीच गौरी दा के नाम से जाने जाते थे। गौरी दा असम में कछार जिले के जालालपुर ग्राम के निवासी थे। उनके पिताजी स्व. डॉ. खगेंद्र नाथ चक्रवर्ती (मूल रूप से सिल्हट, बांग्लादेश के) विभाजन के पश्चात् असम आए थे। उनकी प्रेरणा से ही यहां संघ का काम आरंभ हुआ। गौरी दा को भी बचपन से संघ संस्कार मिले। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा पूर्ण की। 1972 में उन्होंने दिल्ली से ही प्रचारक जीवन आरंभ किया। आपातकाल के दौरान भूमिगत रहकर उन्होंने आंदोलन चलाया। आपातकाल के बाद 1978 में उन्हें असम भेजा गया।

असम में संघ कार्य के विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण में गौरी दा का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने गुवाहाटी के काटन महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में अच्छी शाखा चलाने और प्राध्यापकों को संघ से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। असम के कार्यकर्ता उन्हें ‘अनेक गुणों के अधिकारी’ के रूप में जानते हैं। 1970 के संघ शिक्षा वर्ग में शिक्षक रहते हुए गौरी दा ने शारीरिक नैपुण्य का परिचय देना शुरू कर दिया था। शारीरिक के साथ असम के घोष दल तैयार करने में भी उनका योगदान है। शंख, आनक, वंशी, ये तीनों वाद्य बजाना और सिखाना, यह काम वे अंतिम बार बीमार होने तक करते रहे। बीमार रहने पर भी वे पथ संचलन में शंख लेकर चलने की जिद करते थे। असम में उन्होंने गुवाहाटी महानगर प्रचारक, डिब्रूगढ़ विभाग प्रचारक, प्रांत तथा क्षेत्र शारीरिक प्रमुख तथा असम के सह क्षेत्र प्रचारक का भी दायित्व संभाला। वे दक्षिण असम प्रांत के प्रथम प्रांत प्रचारक थे। 2007 में परम पूजनीय गुरुजी जन्मशती का अंतिम कार्यक्रम दिल्ली में हुआ था। उस समय दिल्ली में संपन्न अखिल भारतीय घोष शिविर के कार्यवाह गौरी दा ही थे।

गौरी दा उत्तम वक्ता, उत्तम गायक, उत्तम गीत रचनाकार तथा उत्तम लेखक थे। उनकी मातृभाषा बांग्ला थी, किंतु वे असमिया भाषा में विविध विषयों पर लिखा करते थे। उनके द्वारा असमिया में रचित संघ गीत शाखाओं में गाए जाते हैं। विविध विषयों पर उनके लेख समाचार पत्रों में भी छपते थे। गौरी दा ने स्व. नाना पालकर जी द्वारा लिखी पुस्तक ‘डाक्टर हेडगेवार’, दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की पुस्तक ‘कार्यकर्ता,’ पं. दीनदयाल जी की पुस्तक ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’, स्वयंसेवकों के लिए ‘विषय बिंदु’ आदि का असमिया में अनुवाद किया था। इससे असमिया भाषा के कार्यकर्ताओं को एक बड़ा साहित्य संसार मिला। कोरोना काल में संकलित तथ्यों के आधार पर लिखी गई पुस्तक ‘आधुनिक भारतर खनिकर डाक्टर हेडगेवार’ अभी कुछ दिन पूर्व ही प्रकाशित हुई है। उन्होंने ‘क्वेरेंटाइन’ नामक पुस्तक भी लिखी है।

परिवार में सात भाइयों में गौरी दा चौथे क्रमांक के थे। उनसे बड़े डॉ. शिवशंकर जी एमबीबीएस उत्तीर्ण कर विश्व हिंदू परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हुए। पहाड़ी क्षेत्र में रोगियों की सेवा करते समय उनका अकाल निधन हुआ था।

गौरी दा कुशल संगठक थे। व्यक्तिगत जीवन में भी व्यवस्थित रहना उनके स्वभाव में ही था। उनके कमरे में जाने से कमरे की स्वच्छता या वस्तुओं का रखरखाव देखकर देखने वाले प्रभावित होते थे। यही गुण शाखा के कार्यक्रमों में दिखता था। वे कहते थे कि जो एक शाखा व्यवस्थित चला सकता है, वह किसी भी दायित्व को अच्छी तरह से निभा सकता है।

गौरी दा की कार्यशैली से अनेक स्वयंसेवक अच्छे कार्यकर्ता बने तथा प्रचारक भी निकले। केवल शाखा ही नहीं, परिवारों के साथ भी गौरी दा शीघ्र घुलमिल जाते थे। अनेक परिवारों के सदस्य अपनी आयु के अनुसार गौरी दा को भैया, दादा, चाचा, नाना आदि नामों से पुकारते थे, लेकिन वे सभी के लिए गौरी दा ही थे। अब भले ही वे शारीरिक रूप में हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके कर्म उन्हें सदैव हमारे बीच ही रखेंगे। ऐसे कर्मयोगी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
-शशिकांत चौथाईवाले

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