रश्मि सामंत ने ‘आक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष के चुनाव में ऐतिहासिक सफलता हासिल की, लेकिन वहां मौजूद सामंती सोच वालों को भारत की यह हिंदू लड़की बर्दाश्त नहीं हुई। उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि उन्हें अपना पद त्यागना पड़ा
कुछ ही महीने पहले कर्नाटक के उडुप्पी जिले से रश्मि सामंत ऊर्जा प्रणाली विषय (एनर्जी सिस्टम्स) से एमएससी करने के लिए आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय पहुंचीं। एक छोटे से घर में पली-बढ़ी रश्मि कॉलेज शिक्षा लेने वाली अपने घर से पहली सदस्य हैं। वे आॅक्सफोर्ड में बहुत जल्दी छात्रों से घुल-मिल गर्इं। इस कारण आक्सफोर्ड में कई वर्ष से पढ़ रहे छात्रों की समस्याएं उनके संज्ञान में आने लगीं। उन्होंने आॅक्सफोर्ड के छात्रों की समस्याओं को आवाज देने के लिए ‘आॅक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का फैसला लिया। उनका यह फैसला कई मामलों में अलग था। आॅक्सफोर्ड स्टूडेंट युनियन के अध्यक्ष अक्सर मानविकी विधाओं से होते हैं, जबकि रश्मि विज्ञान की छात्रा हैं और भारतीय मूल की हैं। दिलचस्प बात यह हुई कि चुनाव में उन्हें ‘आक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा वोट मिले। कुल पड़े 3,708 मतों में से रश्मि को 1,966 मत मिले और वे ‘प्रेफेरेंटिअल वोटिंग सिस्टम’ चुनाव प्रणाली में पहले ही चक्र में सबसे ज्यादा मतों से जीत गर्इं। ‘आॅक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष पद के लिए उनके खिलाफ तीन और प्रत्याशी थे। परंपरा के अनुसार वे तीनों श्वेत यूरोपीय पुरुष थे। नामांकन और चुनाव तक किसी ने रश्मि पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक भारतीय हिंदू लड़की की जीत से ‘आक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के बरसों से चले आ रहे श्वेत पुरुष प्रधान ढांचे में जैसे भूकंप ही आ गया। अब शुरू हुआ रश्मि पर वैचारिक आक्रमण का एक निकृष्ट सिलसिला, जिसने आक्सफोर्ड के ‘अभिव्यक्ति की आजादी’, ‘नारी सम्मान’, ‘रंग भेद’, ‘मत भेद’ ऐसे सभी झूठे लबादों को गिरा दिया।
जीत के अगले ही दिन रश्मि का ईमेल, फेसबुक और इंस्टाग्राम आक्रामक प्रतिक्रियाओं से भर गया। उनके पुराने सोशल मीडिया पोस्ट्स को तोड़-मरोड़ कर उन पर अटपटे व बेतुके आरोप लगाए जाने लगे। ‘आॅक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के पुराने कार्यकर्ता और अन्य शिक्षाविद् मिलकर रश्मि को इस पद से हटाने में लग गए। रश्मि का जीना मुश्किल कर दिया गया। रश्मि आॅक्सफोर्ड में छात्रों के वास्तविक मुद्दों को उठाने के लिए चुनाव लड़ी थीं। उनका चुनावी घोषणापत्र और उनके चुनावी संबोधन भी छात्रों को लेकर थे। इसी कारण उनकी ऐतहासिक जीत हुई। लेकिन शायद रश्मि को आॅक्सफोर्ड की संस्कृति में गहरे छुपे हिंदू विरोधी और भारत विरोधी तत्वों की जानकारी नहीं थी। इन तत्वों ने आतंक मचा कर रश्मि को इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया। रश्मि के इस्तीफे के बाद आॅक्सफोर्ड के इन तत्वों में खुशी की कोई सीमा नहीं थी। ये हिंदू विरोधी व भारत विरोधी तत्व तब पूरी तरह से बेनकाब हो गए जब भारतीय मूल के हिंदू विरोधी शोधकर्ता अभिजीत सरकार ने रश्मि पर व्यक्तिगत भद्दी टिप्पणियां शुरू कर दीं। अभिजीत सरकार से रश्मि के पिता के सोशल मीडिया में राम मंदिर के समर्थन में पोस्ट देखा न गया और उन्होंने रश्मि के हिंदू होने पर उनको सोशल मीडिया पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
यह हिंदू विरोधी और भारत विरोधी विचारधारा, जो आक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में सिखाई जाती है, यही विचारधारा वहां से वापस होकर भारत में तनाव पैदा करती है। यही नहीं, भारत के विरोध में आवाज उठाने वालों के साथ डटकर खड़ी रहती है। भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय बहुत से प्रसिद्ध लोग आॅक्सफोर्ड में पढ़े हैं। जैसे- पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद, सोया अली खान, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, सेकुलर पत्रकार राजदीप सरदेसाई और करण थापर आदि। अब इन लोगों ने जो किया है, उसे भी जान लेना चाहिए। सबको पता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने तो यहां तक कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का होना चाहिए। इंदिरा गांधी ने गोरक्षा पर कानून की मांग कर रहे हिंदू संतों पर गोलियां चलवा दी थीं। इस कारण दिल्ली में बड़ी संख्या में संत-महात्मा बलिदान हुए थे। सलमान खुर्शीद ‘हिंदू आतंकवाद’ की फर्जी कहानी गढ़ने वालों में से एक हैं। राजदीप सरदेसाई और करण थापर की हिंदू विरोधी पत्रकारिता को तो बच्चा-बच्चा जानता है।
रश्मि ने ‘आक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल कर इस हिंदू और भारत विरोधी विचारधारा को उसके गढ़ में मात दे दी थी। लेकिन वहां इन तत्वों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उन्होंने उन्हें पद से इस्तीफा देने को बाध्य कर दिया। आश्चर्य की बात तो यह है कि ये तत्व दुनियाभर में अनेक देशों की चुनी हुई सरकारों को भी गिराने के लिए साजिश रचते रहते हैं। हाल ही में मोदी सरकर के विरुद्ध आई ग्रेटा थन्बर्ग की ‘टूल किट’ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। ‘आॅक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ का चुनाव तो बस ‘प्रयोगशाला’ का एक प्रयोग लगता है। सच तो यह है कि ये तत्व वास्तविक जीवन में इस प्रयोग के इस्तेमाल के अवसर तलाशते रहते हैं।
यह देखकर बहुत दु:ख होता है कि जो लोग आॅक्सफोर्ड की तारीफ में बड़े-बड़े लेख लिखते हैं, उन्होंने वहां की सामंती सोच पर कुछ भी नहीं कहा। ऐसे लोगों की पोल खोलने की जरूरत है और सुखद बात यह है कि अनेक लोग इस कार्य में पूरी तन्मयता के साथ लगे हैं।
( लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीवनी
‘द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर’ के लेखक हैं)
सामंत को मिला दुनिया का साथ
जैसे ही लोगों को पता चला कि रश्मि सामंत ने मजबूर होकर ‘आॅक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष पद को छोड़ दिया है तो अनेक लोगों ने सोशल मीडिया में उनके समर्थन में लिखा। पूर्व आईपीएस अधिकारी एम. नागेश्वर राव ने रश्मि की हिम्मत बढ़ाते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘‘मैंने यह देखने से मना कर दिया कि उपनिवेश कॉलोनियों के स्वदेशी लोगों के लिए एक सकारात्मक अनुभव था।
हिंदू होने के कारण मुझे असहिष्णु नहीं बनाया गया है। मैं रश्मि सामंत हूं…’’ एक अन्य यूजर गलाता जैक ने लिखा, ‘‘यह असिहष्णुता और सहिष्णुता का सवाल नहीं है।…यह गांधी तत्व पर हमला है…।’’ वहीं पीके मुरलीधरन ने लिखा, ‘‘अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए बधाई युवा पीढ़ी।’’ अमित नामक एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘‘हम जनेऊ और रुद्राक्ष पहनकर सांप्रदायिक हैं और वे टोपी पहनकर भी सेकुलर।’’ इस तरह की बहुत सारी प्रतिक्रियाओं से सामंत का मनोबल बढ़ा।
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