भारतीय और रोमा एक-दूसरे से सांस्कृतिक, आनुवंशिक, भाषायी, शारीरिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से काफी करीब हैं। दरअसल, ये लोग मूल रूप से भारतीय ही हैं। इनके वंशजों को सन् 1018 में महमूद गजनवी अपने साथ अफगानिस्तान ले गया था। कालक्रम में इनकी संस्कृति का नाम रोमा हो गया। आज रोमाओं की जनसंख्या लगभग सवा दो करोड़ है। ज्यादातर रोमा यूरोपीय देशों में रहते हैं। इस अंक से धारावाहिक के रूप में रोमा और उनकी संस्कृति आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे
रोमा समुदाय का सांस्कृतिक इतिहास उनकी यात्राओं के दौरान विकसित हुआ है, न कि उनके अपने पीछे छोड़े गए भौतिक अस्तित्व से। दरअसल रोमा संस्कृति के सर्वोत्कृष्ट तत्व उसके सामाजिक संबंधों, भाषा, परंपराओं और जीवनशैली, संगीत और नृत्य के कारण जीवित हैं। रोमा संस्कृति की विविधता विभिन्न उप-जातीय समूहों के भौगोलिक फैलाव और बोलियों पर आधारित है, जिसके कारण उनके रीति-रिवाजों, व्यवहारों और दस्तूरों में निरंतर बदलाव हो रहे हैं, हालांकि कुछ क्षेत्रों में रोमा समुदाय में पारंपरिक मूल्यों और धूसर प्रथाओं को देखा जा सकता है। विभिन्न देशों में अपने अविरत प्रवास, अस्मिता-प्रक्रिया और आधुनिक समाजों के साथ अंतर्मिश्रण तथा स्थानीय आबादी के साथ परस्पर मेल-जोल के बावजूद रोमा अपनी सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखे हुए हैं। रोमा का जीवन उनकी प्रथाओं, परंपराओं और मूल्यों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। उनकी कुछ सांस्कृतिक मान्यताएं जैसे पवित्रता, स्वच्छता, सम्मान और न्याय जिसे ‘रोमानो’ के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसका अर्थ गरिमा के साथ व्यवहार करना और सम्मान करना है, जो कि एक रोमा व्यक्ति का कर्तव्य है। शुद्धता और अशुद्धता की पारम्परिक अवधारणा की मदद से, रोमा ने अपनी पहचान और सांस्कृतिक विशिष्टता को बरकरार रखा है।
सांस्कृतिक-नृविज्ञान और नृविज्ञान अध्ययन के अनुसार भारतीय संस्कृति और रोमा संस्कृति के बीच संबंध स्थापित होता है। रोमा विद्वानों ने सर्वसम्मति से इस तथ्य को स्वीकार किया कि रोमा और भारत साझा संस्कृति से बंधे हैं और उनकी जीवनशैली भारतीय मूल्यों, रीति-रिवाजों, आस्था और आदतों का समृद्ध समावेश है। कुछ रोमा विद्वानों का मानना है कि रोमा संस्कृति को जो एकजुट करता है, वह उनकी सदियों पुरानी भारतीय विरासत का तत्व है। एक प्रमुख रोमा विद्वान और भाषा विज्ञानी इयान हैनकॉक ने कहा है कि रोमा के भाषायी, शारीरिक और सांस्कृतिक पहलू बहुत हद तक भारतीय हैं, यहां तक कि उनके आध्यात्मिक और रहस्यमय जीवन के भेद भारतीय अध्यात्म और रहस्यवाद के आधार पर खड़े हैं। रोमा आध्यात्मिक रूप से संतुलित जीवन जीने और द्वैतवाद के दर्शन में विश्वास रखते हैं। उदाहरण के तौर पर उनका दर्शन जिसे ईश्वर और दानव, अच्छा और बुरा, वैध और वर्जित, निर्मल और प्रदूषित आदि, जिसे किंटाला या किंटारी के नाम से जाना जाता है, कर्म की भारतीय अवधारणा से काफी मिलता-जुलता है।
सामाजिक संस्था और पारिवारिक संरचना
चूंकि परिवार रोमा समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, और रोमा करीबी पारिवारिक संबंधों पर बहुत महत्व देते हैं। एक रोमा के परिवार में केवल पति, पत्नी और उनके बच्चे ही नहीं, बल्कि चाचा-चाची, चचेरे भाई, पोते, उनके विवाहित पुत्र और पुत्रवधू भी शामिल होते हैं। अब रोमा परिवार में मूल रूप से माता-पिता, उनके अविवाहित बच्चे और शादीशुदा बेटे अपनी पत्नियों सहित बिना बच्चों के एक साथ एक संयुक्त या विस्तारित परिवार में रहते हैं। रोमा घराने का मुखिया सबसे बुजुर्ग आदमी होता है, जो परिवार के लिए एक नेतृत्वकारी व्यक्ति होता है, हालांकि कभी-कभी एक सफल बेटा परिवार की प्राथमिकताओं को तय करने और निर्णय लेने की जिम्मेदारी ले सकता है।
रोमा के बीच रिश्तेदारी एक सामान्य पूर्वज द्वारा बनाई गई है, जो वंश के छह कुल के रिश्तेदारों को एकजुट करती है। रोमा रिश्तेदारी प्रणाली भारतीय रिश्तेदारी से मिलती-जुलती है, जो पिता और माता दोनों के परिवार को समान रूप से पहचानती है। परिजनों के माता-पिता— दोनों को प्रत्यक्ष अभिजन माना जाता है, चाहे वह रिश्ता कितना भी दूर का क्यों न हो।
पितृसत्तात्मक संरचना वाले रोमाओं के लिए परिवार सामाजिक संस्था का अपरिहार्य तत्व है। इसलिए सब कुछ इसके चारों ओर घूमता है। एक ही कबीले के सदस्य रिश्तेदार होते हैं और आवश्यकता के समय एक-दूसरे को सुरक्षा और सहायता प्रदान करने की अपेक्षा करते हैं। इनके कबीले अनुष्ठान संबंधों से बंधे हैं, और इसके सदस्य एक ही कबीले के व्यक्ति के अंतिम संस्कार और पोमाना (मृत्यु भोज) में शामिल होने के लिए बाध्य हैं।
ये अंतर्निहित जातीय-सांस्कृतिक जानकारी प्राप्त करने और जातीय विशिष्टताओं को अपनाने और बनाए रखने के लिए बच्चों को शिक्षित करते हैं। परिवार में रोमा पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाएं संभवत: पारंपरिक और रूढ़िवादी होती हैं; आमतौर पर महिलाएं घर और बच्चों की देखभाल करती हैं, जबकि पुरुष आजीविका कमाने और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है। यह तथ्य स्पष्ट रूप से भारतीय विशेषताओं को प्रकट करता है।
परिवारों के भीतर के टकराव को परिवार के मुखिया द्वारा निबटाया जाता है और शायद ही अदालत के सामने लाया जाता है। कुछ रोमा समूहों में, बुजुर्गों, जिन्हें ‘सेरो रोम या हेड रोम’ के रूप में जाना जाता है, सम्मान की अवधारणा के आधार पर झगड़े को हल करते हैं और सजा देते हैं। सजा का मतलब प्रतिष्ठा का नुकसान हो सकता है और समुदाय से निष्कासित होना सबसे बड़ी सजा माना जाता है।
व्यापक रूप से निष्पक्ष और सदाचारी माने जाने वाले वरिष्ठ व्यक्तियों को उनकी सामाजिक स्थिति, पारिवारिक प्रतिष्ठा और समुदाय के बीच प्रभाव के कारण मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया जाता है। रोमा पाप और अपराध के बीच अंतर नहीं करते, दोनों रोमा कानूनी शब्दावली में वैध हैं। जब भी रोमा द्वारा कोई पाप या अपराध किया जाता है, तो वे क्रिस-रोमानी अदालत में जाते हैं।
रोमा ‘क्रिस’ एक औपचारिक न्यायाधिकरण है, जो विभिन्न कुलों के बुजुर्गों से बना है और एक पितृसत्तात्मक परिषद है जिसकी अध्यक्षता बड़े या परिवारों के प्रमुखों में से चुने गए एक या एक से अधिक न्यायाधीश करते हैं, जिस पर पुरुषों का एकाधिकार होता है। रोमा अदालत, प्रथागत कानूनों के आधार पर, आंतरिक मुद्दों से संबंधित जैसे-ऋण, चोरी, धोखाधड़ी, हिंसा, मूल्यों और नैतिकता का उल्लंघन, समुदाय के भीतर वैवाहिक और संपत्तियों के विवाद जैसे मामलों का निबटारा करती है।
क्रिस का आदेश और निर्णय समुदाय के लिए बाध्यकारी है, अन्यथा किसी रोमा को समुदाय से बहिष्कृत भी किया जा सकता है। सर्वसम्मति इस संस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है जो इसके रूपों और कार्यों को निर्धारित करती है। इसके हर फैसले को आमतौर पर प्रतिवादी और वादी सहित पूरे समुदाय द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है। क्रिस पारंपरिक भारत की पंचायत प्रणाली की तरह समान रूप से काम करता है और न्याय की अमूर्त और संस्थागत अवधारणाओं दोनों को संदर्भित करता है। रोमा क्रिस के विचारण का रूप, रचना और प्रक्रिया के नियम भारतीय पंचायत के अनुरूप हैं।
(लेखक ‘सेंटर फॉर रोमा स्टडीज एंड कल्चरल रिलेशंस, अंतरराट्रीय सहयोग परिषद’ में रिसर्च एसोसिएट हैं)
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