जब पूरी दुनिया भारत से कोरोना वैक्सीन मांग रही है, तब छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस पर सवाल उठा रही है और वैक्सीन की जो खेप उसे भेजी गई है, उसे वह केंद्र से वापस लेने को कह रही है
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार वक्सीन पर राजनीति कर जनता की जान से खिलवाड़ कर रही है।
कोरोना महामारी से जूझती दुनिया के लिए वैक्सीन बनाकर भारत आशा और उम्मीदों के केंद्र के रूप में उभरा है। भारत न केवल अपने यहां दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है, बल्कि दुनिया के अनेक देशों को वैक्सीन भी उपलब्ध करा रहा है। इसके लिए वैश्विक मीडिया तक भारत की सराहना कर रहा है, पर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार वैक्सीन पर ही राजनीति कर रही है। भूपेश बघेल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन के विरुद्ध जैसे युद्ध ही छेड़ दिया है। उन्होंने न केवल कोवैक्सीन का प्रदेश में प्रयोग करने से इनकार कर दिया है, बल्कि इसकी खेप केंद्र को वापस लेने के लिए कह दिया है।
दरअसल, छत्तीसगढ़ की अंदरूनी राजनीति में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की आपस में नहीं बनती। दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप सामान्य सी बात है। केंद्रीय बजट में भूपेश बघेल मीन-मेख निकालते, इससे पहले ही राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव ने बजट की प्रशंसा कर दी। सिंहदेव का कांग्रेस के आधिकारिक रुख के विरुद्ध जाना, चौंकाने वाला था। इसके बाद पार्टी में तत्काल रायपुर से लेकर दिल्ली तक सरगर्मी बढ़ गई। सिंहदेव के विरोधी गुट ने इसे अवसर के रूप में लिया और दिल्ली में पार्टी नेतृत्व के कान भरने में जुट गया। लिहाजा, पार्टी का विश्वास हासिल करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव ने भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन के विरुद्ध मुहिम छेड़ दी। सिंहदेव पहले भी वैक्सीन को लेकर आपत्ति जता चुके थे, लेकिन माना जा रहा है कि केंद्रीय बजट का समर्थन करने के बाद पार्टी में उन्हें जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई करने के लिए उन्होंने कोरोना वैक्सीन के विरुद्ध मोर्चा खोला। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को पत्र लिखा कि वे प्रदेश में किसी को भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोरोना वैक्सीन नहीं लगने देंगे, क्योंकि इसके तीसरे चरण का परीक्षण नहीं हुआ है। महत्वपूर्ण बात है कि केंद्र सरकार द्वारा कोवैक्सीन की 37,760 खुराक राज्य में भेजी जा चुकी थीं और 1,49,120 खुराक भेजी जानी थीं। इससे पहले भी राज्य को 8,11,500 खुराक भेजी गई थी। इनका प्रयोग नहीं हुआ तो दो-तीन माह में ये बेकार हो जाएंगी। जबकि देशभर में अभी तक 70 लाख से अधिक लोगों को टीका लग चुका है।
टीकाकरण अभियान में बाधा डालने को लेकर प्रदेश सरकार जनता के निशाने पर है। भाजपा ने तो सिंहदेव को चेतावनी तक दी है कि वे कोवैक्सीन पर राजनीति कर टीकाकरण अभियान में बाधा उत्पन्न न करें। वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने सिंहदेव के पत्र का जवाब देते हुए टीकाकरण की निराशाजनक गति पर चिंता जताई है। उन्होंने लिखा है, ‘‘वैक्सीन की पर्याप्त खेप छत्तीसगढ़ को भेजी गई है। इसके बावजूद प्रदेश में मात्र 9.55 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों को ही टीका लगाया गया है, जो चिंता का विषय है। टीएस सिंह देव जी, गैर-मुद्दों को सनसनीखेज बनाने के बजाय कृपया राज्य में वैक्सीन कवरेज में सुधार पर ध्यान दें।’’ भाजपा ने तो यहां तक कह दिया कि सिंहदेव जान-बूझकर निजी कंपनियों को प्रोत्साहन दे रहे हैं। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा, ‘‘कोवैक्सीन का निर्माण सरकारी कंपनी ने किया है। लेकिन टीएस सिंहदेव सरकारी कंपनी के ही उत्पाद पर सवाल खड़े कर रहे हैं। आप निजी कंपनियों को बढ़ावा देते हैं, लेकिन सरकारी कंपनियों पर आपको भरोसा नहीं है। इससे संदेह उत्पन्न होता है।’’ प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर ने कटाक्ष करते हुए ट्वीट में सिंहदेव को ‘सबसे बड़ा वैज्ञानिक होने पर’ बधाई भी दी। इससे उनका आशय यह था कि जब दुनियाभर में भारतीय वैक्सीन को स्वीकार किया जा रहा है, तब सिंहदेव द्वारा स्वयं को सबसे बड़ा जानकार साबित करना हास्यास्पद और दुखद है।
आजादी के 70 साल बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में पिछड़े छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की कुनीति का यह कोई पहला मामला नहीं है। प्रदेश की पुरानी पीढ़ी याद करती है कि किस तरह अविभाजित मध्य प्रदेश के जमाने से सामान्य बुखार, आंत्रशोध जैसी बीमारियों से सैकड़ों वनवासी और अन्य लोग काल-कवलित हो जाते थे, पर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी। पहली बार भाजपा की अगुआई वाली डॉ. रमन सिंह की सरकार ने स्मार्ट कार्ड योजना को प्रदेश में लागू कर हर निवासी के लिए पहले 30,000 रुपये और बाद में 50,000 रुपये तक की सालाना मुफ्त चिकित्सा योजना शुरू की। इस योजना के आशातीत परिणाम भी प्रदेश में देखने को मिले। लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आते ही उस योजना को भी राजनीतिक दुराग्रह के कारण बंद करने की कोशिश शुरू हो गई। सिंहदेव तो स्वास्थ्य सेवाओं के अध्ययन के लिए थाईलैंड भी गए। कहा गया कि वे थाईलैंड की तर्ज पर नई योजना लागू करेंगे, लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही छत्तीसगढ़ के वनवासी क्षेत्र दंतेवाड़ा के एक गांव जांगला से ‘आयुष्मान भारत’ की शुरुआत की, जिसे अमेरिका के ‘ओबामा केयर’ से बड़ा माना गया, पर कांग्रेस की ओर से इसके विरुद्ध भी लगातार बयानबाजी होती रही। नतीजा, प्रदेश में न तो थाईलैंड का कथित मॉडल लागू हुआ और न ही आयुष्मान भारत योजना को सही ढंग से लागू होने दिया गया। इसी तरह, राज्य सरकार प्रधानमंत्री आवास सहित केंद्र की अन्य क्रांतिकारी योजनाओं के प्रति भी दुराग्रही है, जिसका खामियाजा जनता को उठाना पड़ रहा है। सूबे के एक वरिष्ठ चिकित्सक कहते हैं कि जब महामारी के टीके पर इस तरह की राजनीति हो रही है तो अन्य मामले में क्या कहा जा सकता है।
वास्तव में जिस टीके के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ने भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ कहा, ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो ने इसकी तुलना हनुमान द्वारा संजीवनी लाने से करते हुए ट्वीट किया और किसानों के मुद्दे पर भारत विरोधी बयान देने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने मदद की गुहार लगाते हुए दुनिया को कोरोना मुक्त करने के अभियान में भारत को अगुआ बताया है। वहां ऐसी हालत में राजनीतिक लड़ाई में छत्तीसगढ़ का उलझे रहना बदकिस्मती नहीं तो और क्या है?
लगातार चर्चा में सिंहदेव
मुख्यमंत्री बनने से चूक गए सिंहदेव। नई सरकार के शपथ ग्रहण के समय से ही चर्चा है कि टी.एस. सिंहदेव अगले ढाई वर्ष के लिए मुख्यमंत्री बनेंगे, पर उन्होंने इसका कभी खंडन नहीं किया। खुद ही इसे हवा देते रहे।
मुख्यमंत्री बनने के लिए 100 से अधिक बकरों की बलि देने की घोषणा कर वे आलोचना के केंद्र में रहे।
कोरोना काल में एक क्वारेंटाइन केंद्र में सबसे अधिक लोगों के मरने का रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के नाम।
स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद कोरोना को लेकर होने वाली बैठकों में नहीं बुलाए जाने पर भी खुलेआम नाराजगी जताई थी और मुंबई जाकर बैठ गए थे।
कांग्रेस जन घोषणा समिति के संयोजक के रूप में एक ही भाषण में राहुल गांधी को करीब 150 बार ‘सर’ कहा। अपने से काफी छोटे राहुल गांधी के पांव छूने के कारण भी चर्चा में रहे।
प्रदेश के आंतरिक संसाधनों से चुनावी वादे पूरा करने का वादा किया। अब हर बात के लिए केंद्र से मदद मांगने पर राज्य सरकार कठघरे में।
अपनी सरकार द्वारा किसानों को तय समयसीमा में भुगतान नहीं मिलने पर इस्तीफा देने की धमकी। न तो पूरा भुगतान हो पाया और न इस्तीफा दिया।
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