गत 31 जुलाई को मुंबई के विशेष एन.आई.ए. न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.के. लाहोटी ने मालेगांव बम विस्फोट के सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। उन्होंने कहा कि सभी साक्ष्यों पर गौर करने के बाद न्यायालय ने माना कि अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त कानूनी आधार नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक गंभीर अपराध था, लेकिन न्यायालय को निर्णय सुनाने के लिए ठोस और निर्विवाद प्रमाण की आवश्यकता होती है। न्यायमूर्ति लाहोटी के मुख से जैसे ही ये शब्द निकले वैसे ही वहां मौजूद सभी आरोपियों- साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, समीर शरद कुलकर्णी, लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी और सुधाकर चतुर्वेदी की आंखें छलक उठीं। उनके चाहने वाले भी झूम उठे।
इस निर्णय के आने के बाद यह भी कहा जाने लगा कि कांग्रेस ने जिस कथित ‘भगवा’ आतंकवाद को गढ़ने और प्रस्थापित करने का प्रयास किया था, वह धराशायी हो गया है। आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के वकील विरेंद्र इचलकरंजीकर कहते हैं, ‘इस निर्णय के बाद कथित ‘भगवा’ आतंकवाद का झूठ तार-तार होने लगा है।’ इसके साथ ही उन्होंने सवाल किया, “साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों को ए.टी.एस. के जिन अधिकारियों ने प्रताड़ित किया था, क्या उन्हें सजा मिलेगी!”
मालेगांव मामले में कुल 16 आरोपी थे। इनमें से 14 को गिरफ्तार किया गया था। 2016 में सबूत के अभाव में सात आरोपियों को छोड़ दिया गया था। शेष सात पर मुकदमा चलाया गया। अब ये भी बरी हो गए हैं। बरी होने वालों में एक हैं सुधाकर द्विवेदी। इन्हें ही दयानंद पांडे भी कहा जाता है। ये संन्यासी हैं और इनका नाम शंकराचार्य अमृतानंद है। सुधाकर कहते हैं, “न्यायालय ने कथित हिंदू आतंकवाद की अवधारणा को ढहा दिया है। पर मेरे जैसों के साथ जो हुआ है, उसे भी भुलाया नहीं जा सकता। झूठे आरोप लगाकर हम लोगों के जीवन को 17 वर्ष तक तबाह किया गया। हमारी प्रतिष्ठा धूमिल की गई। यह सब उस व्यवस्था ने किया, जिसके जरिए देश को चलाया जाता है। ऐसी व्यवस्था में सुधार करने की आवश्यकता है।”
आरोपों से मुक्त हुए मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त) कहते हैं, “आज हमारे लिए विजय का दिन है, बड़ा दिन है। इस दिन मैं 17 वर्ष के कठिन दौर को याद नहीं करना चाहता। केवल इतना कहना चाहता हूं कि हम लोगों की प्रतिष्ठा और देशभक्ति पर कालिख पोतने की कोशिश की गई थी। वह कोशिश विफल हो गई है।” पुणे के रहने वाले समीर शरद कुलकर्णी पर भी षड्यंत्र रचने का आरोप था। अपनी रिहाई के बाद उन्होंने कहा, “आज के दिन की प्रतीक्षा 17 वर्ष से हो रही थी। आज मेरा पुनर्जन्म हुआ है। हमें पहले दिन से ही जो बात पता थी, वह आज दुनिया को पता चली। सब झूठ था। हम लोगों के जीवन को बर्बाद किया गया। इसके लिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सुशील कुमार शिंदे, शिवराज पाटिल, पी. चिदंबरम, अहमद पटेल जैसे नेता शामिल हैं। इनके साथ शरद पवार भी हैं।” वहीं प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने बरी के बाद कहा कि यह हिन्दुत्व की जीत है, यह भगवा की जीत है।
न्यायाधीश ने यह कहा
- सरकारी पक्ष यह सिद्ध करने में सफल रहा कि बम विस्फोट हुआ था, लेकिन यह नहीं सिद्ध कर पाया कि बम स्कूटर में ही रखा गया था।
- आरोप था कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित कश्मीर से आर.डी.एक्स. लेकर आए थे, किंतु इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला।
- रमजान के कारण उस समय पूरा क्षेत्र बंद था। ऐसे में वहां स्कूटर कैसे पहुंचा? यह भी आरोप था कि बम विस्फोट का षड्यंत्र रचने के लिए उज्जैन, इंदौर नासिक में बैठकें हुई थीं, लेकिन इसके भी प्रमाण
नहीं मिले। - जांच करने वाले अधिकारियों ने आरोपियों के फोन रिकॉर्ड की जांच के लिए अनुमति नहीं ली थी।
- ‘अभिनव भारत’ मामले में कर्नल पुरोहित, अजय राहिरकर और रमेश उपाध्याय के बीच कुछ वित्तीय लेनदेन के सबूत मिले, पर यह सिद्ध नहीं हो सका कि उस धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों में किया गया था।
बदलते रहे न्यायाधीश
मालेगांव बम विस्फोट मामला मुंबई में विशेष एन.आई.ए. न्यायालय में चला। सबसे पहले न्यायमूर्ति वाई. डी. शिंदे ने इसे सुना। फिर न्यायमूर्ति एस. डी. टेकाले, न्यायमूर्ति वी. एस. पडलकर, न्यायमूर्ति पी. आर. सित्रे ने सुनवाई की। अंत में न्यायमूर्ति ए. के. लाहोटी ने इसका निपटारा करते हुए आरोपियों को बरी किया।
कब क्या हुआ
- 29 सितंबर, 2008 की रात 9:35 बजे मालेगांव (नासिक) में शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच बम विस्फोट हुआ। इसमें छह लोग मारे गए और 101 घायल हुए।
- 30 सितंबर, 2008 की सुबह तीन बजे आजाद नगर पुलिस थाने में एफ.आई.आर. दर्ज हुई, जिसकी संख्या है— 130।
- 21 अक्तूबर, 2008 को ए.टी.एस. ने ए.टी.एस. कालाचौकी पुलिस स्टेशन, मुंबई में पुन: इस मामले को पंजीकृत किया।
- विभिन्न तिथियों में 14 आरोपी गिरफ्तार और 2 आरोपी वांछित।
- 20 जनवरी, 2009 को ए.टी.एस. मुंबई द्वारा विशेष मकोका न्यायालय, मुंबई में आरोपपत्र दाखिल किया गया।
- 2011 में 1 और 13 अप्रैल को एन.आई.ए. ने आगे की जांच के लिए मामले को अपने पास ले लिया।
- 21 अप्रैल, 2011 को ए.टी.एस. मुंबई द्वारा विशेष एन.आई.ए. न्यायालय, मुंबई में पूरक आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया।
- 2012 में 27 फरवरी और 17 दिसंबर को एन.आई.ए. मुंबई ने अन्य दो अभियुक्तों को गिरफ्तार किया।
- मई, 2014 में केंद्र में सरकार बदली। 2015 में सरकारी वकील बदल गया।
- 13 मई, 2016 को एन.आई.ए. मुंबई द्वारा विशेष एन.आई.ए. न्यायालय में पूरक आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया।
- 2017 में सभी आरोपी जमानत पर रिहा हुए।
- 30 अक्तूबर, 2018 को सभी सात आरोपियों पर आरोप तय किया गया।
- 2024 में 25 जुलाई से 27 सितंबर तक अभियोजन पक्ष की बहस हुई।
- 30 सितंबर, 2024 से 3 अप्रैल, 2025 तक बचाव पक्ष की बहस हुई।
- 19 अप्रैल, 2025 को निर्णय सुरक्षित रखा गया।
- 31 जुलाई, 2025 को अंतिम निर्णय आया।
नहीं मिले प्रमाण
महाराष्ट्र ए.टी.एस. ने आरोप लगाया था कि मालेगांव में जो बम विस्फोट हुआ था, उसमें आर.डी.एक्स. का प्रयोग हुआ था। उस आर.डी.एक्स. को कर्नल पुरोहित जम्मू-कश्मीर से लेकर आए थे। उस आर.डी.एक्स. से पुणे में सुधाकर चतुर्वेदी के घर बम बना था। घटनास्थल पर कलसनराव डांगे ने बम लगाया था। आरोप है कि बम विस्फोट के लिए धन ‘अभिनव भारत’ नामक संगठन के कोषाध्यक्ष अजय राहिरकर ने उपलब्ध कराया था। अजय राहिरकर कर्नल पुरोहित के मित्र भी थे। पुणे के ही मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त) पर बम विस्फोट के लिए षड्यंत्र रचने का आरोप था। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर आरोप था कि उनके स्कूटर में बम रखकर विस्फोट किया गया था। दरअसल, संन्यास लेने से पहले साध्वी जी के पास एक एल.एम.एल.वेस्पा स्कूटर था।
ए.टी.एस. का आरोप था कि उस स्कूटर के इंजन के चेसिस नंबर को मिटाया गया था। रसायनिक प्रतिक्रिया के जरिए उस चेसिस से दो नंबर मिले थे। उनमें से एक नंबर साध्वी जी के स्कूटर से मिलता था। लेकिन ए.टी.एस. इस संबंध में और प्रमाण जुटाने में विफल रही। ए.टी.एस. ने यह भी आरोप लगाया था कि बम विस्फोट करने के लिए कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा सिंह, शंकराचार्य आदि आरोपी जगह—जगह बैठकें किया करते थे और भारत को ‘आर्यावर्त’ बनाने के लिए षड्यंत्र रचते थे। भले ही ए.टी.एस. ने ये आरोप लगा दिए थे, लेकिन वह इनके लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाई। इसलिए ए.टी.एस. ने जो कहानी गढ़ी, उसकी कड़ी एक दूसरे से नहीं जुड़ पाई और सभी आरोपी रिहा हो गए।
यह था मामला
बता दें कि मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को बम विस्फोट हुआ था। इसमें छह लोगों की जान गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। 30 सितंबर, 2008 को एफ.आई.आर. दर्ज कर महाराष्ट्र पुलिस ने जांच शुरू कर दी। प्रारंभिक जांच के बाद कहा गया कि यह आतंकवादी घटना है। यही कारण है कि इनके आरोपियों के विरुद्ध गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) के अंतर्गत मामला चलाने का निर्णय लिया गया था। 17 जनवरी, 2009 को महाराष्ट्र सरकार ने यू.ए.पी.ए. की धारा-45 के तहत इसकी गहन जांच की अनुमति भी दे दी। लेकिन राज्य सरकार ने इससे पहले के आवश्यक नियम का पालन नहीं किया।
इस कानून का दुरुपयोग न हो, इसके लिए इसमें प्रावधान है कि अगर केंद्र या राज्य सरकार किसी मामले की जांच करती है और अगर जांच के बाद उसको लगता है कि मामला यू.ए.पी.ए. के तहत चलाना चाहिए, तो इसके लिए संबंधित सरकार एक विशेषज्ञ समिति का गठन करेगी। यह समिति जांच एजेंसियों द्वारा की गई जांच का अध्ययन कर उसकी समीक्षा करती है। इसके बाद यदि लगता है कि जांच में जो तथ्य मिले हैं, वे आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं, तो वह समिति सरकार से इसकी अनुशंसा करती है। इसके बाद ही सरकार आगे मामला चलाने की अनुमति दे सकती है। सरकार की अनुमति मिलने के बाद ही न्यायालय भी इस तरह के मामले पर संज्ञान लेता है, लेकिन मालेगांव मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया। न तो सरकार ने यू.ए.पी.ए. के अंतर्गत मुकदमा चलाने की अनुमति दी और न ही न्यायिक प्रक्रिया चलाने वालों ने नियमों का पालन किया। इसके बावजूद आरोपियों के विरुद्ध जांच की गई। 20 जनवरी, 2009 को महाराष्ट्र ए.टी.एस. ने आरोपपत्र भी दाखिल कर दिया।
यही नहीं, इस मामले की कथित गंभीरता को देखते हुए 1 अप्रैल, 2011 को तत्कालीन सोनिया-मनमोहन सरकार ने इसकी जांच का जिम्मा एन.आई.ए. को दे दिया। केंद्र सरकार ने भी एन.आई.ए. को जांच देने से पहले कोई विशेषज्ञ समिति नहीं बनाई। जांच के बाद एन.आई.ए. ने 13 मई, 2016 को आरोपपत्र भी दाखिल कर दिया। एन.आई.ए. ने आरोपपत्र दाखिल करने से पहले केंद्र सरकार से आवश्यक अनुमति नहीं ली। तब भी सभी आरोपियों के विरुद्ध मामला चलाया गया। इस कारण मई, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने समीर शरद कुलकर्णी के विरुद्ध मुंबई के ट्रायल कोर्ट में चल रहे मुकदमे पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद एन.आई.ए. के विशेष न्यायालय में सभी आरोपियों पर मुकदमा चला और अब उसी का निर्णय आया है। मुक़दमे के दौरान सरकारी पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 40 अपने बयान से मुकर गए।
इस निर्णय पर पूर्व महान्यायाभिकर्ता अशोक मेहता ने जो कहा वह गौर करने लायक है। वे कहते हैं, “लंबे समय तक भारतीय फौज और साधु—संतों को फंसाने का जो षड्यंत्र चल रहा था, वह न्यायालय में नहीं टिका। वहां दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।”
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