इजरायल और ईरान के बीच हाल ही में 12 दिनों तक चला युद्ध भले ही थम गया हो, लेकिन इसका असर अभी भी दोनों देशों पर गहरा है। ईरान में युद्ध के बाद करीब 2,000 लोगों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से कुछ पर इजरायल के साथ जासूसी और सहयोग जैसे संगीन आरोप लगे हैं। ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख गोलमहुसैन मोहसेनी एजेई ने स्पष्ट किया है कि युद्धकाल में दुश्मन देश के साथ किसी भी तरह का सहयोग बर्दाश्त नहीं होगा, और दोषियों को कड़ी सजा, यहाँ तक कि मौत की सजा भी हो सकती है। लेकिन इन गिरफ्तारियों ने मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर जब संयुक्त राष्ट्र ने इसे “युद्धविराम के बाद की सख्ती” बताया है।
गिरफ्तारियों की बाढ़
ईरान सरकार ने युद्ध के दौरान और उसके बाद बड़े पैमाने पर छापेमारी की। करीब 2,000 लोग हिरासत में लिए गए, जिनमें से कई को शुरुआती जाँच के बाद रिहा कर दिया गया क्योंकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले। एजेई के अनुसार, कुछ लोगों पर इजरायल से सीधे संबंध होने का शक है, और उनकी पूछताछ जारी है ताकि उनके संभावित सहयोगियों का पता लगाया जा सके। जिन मामलों में जासूसी के पुख्ता सबूत मिले हैं, उनके लिए अभियोजन शुरू हो चुका है, और कुछ मामलों में ट्रायल की तारीखें भी तय हो गई हैं।
ईरान की संसद ने हाल ही में एक आपातकालीन कानून पास किया, जो जासूसी और “शत्रु देशों” के साथ सहयोग की सजा को और सख्त करता है। इसका मतलब है कि अब ऐसे मामलों में कार्रवाई और तेज होगी।
मानवाधिकारों पर गहराता संकट
इन गिरफ्तारियों ने दुनिया भर में चिंता पैदा कर दी है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों, जिनमें ईरान में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष दूत माई सातो भी शामिल हैं, ने ईरान से इस सख्ती को रोकने की माँग की है। उनका कहना है कि हिरासत में लिए गए लोगों में पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सोशल मीडिया यूजर्स, विदेशी नागरिक (खासकर अफगानी), और अल्पसंख्यक समुदाय जैसे बहाई, कुर्द, बलूची और अहवाजी अरब शामिल हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या सभी गिरफ्तारियाँ वाकई जासूसी से जुड़ी हैं, या कुछ लोग अपनी राय व्यक्त करने या अपनी पहचान की वजह से निशाने पर लिए गए हैं।
सुरक्षा की आड़ में दमन?
ईरान का दावा है कि ये सारी कार्रवाइयाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी हैं। युद्ध के दौरान इजरायल के साथ कथित सहयोग को सरकार बेहद गंभीरता से ले रही है। एजेई ने कहा कि जिनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला, उन्हें रिहा कर दिया गया, और बाकी मामलों को युद्धकालीन कानूनी प्रक्रियाओं के तहत तेजी से निपटाया जा रहा है। लेकिन आलोचकों का मानना है कि इन गिरफ्तारियों का दायरा जरूरत से ज्यादा व्यापक है, और इसका इस्तेमाल असहमति की आवाजों को दबाने के लिए किया जा रहा है।
नागपुर स्थित राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज विद्यापीठ (नागपुर यूनिवर्सिटी) से मॉस कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएट। बीते एक दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विशेष रुचि। पत्रकारिता की इस यात्रा की शुरुआत नागपुर नवभारत में इंटर्नशिप से शुरू होती है, तदोपरांत GTPL न्यूज चैनल, लोकमत समाचार, ग्रामसभा मेल, मोबाइल न्यूज 24 और Way2News हैदराबाद के बाद अब पाञ्चजन्य के साथ सफर जारी है।
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