लखनऊ । समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक मोहम्मद अब्दुल्ला आज़म खान की दो याचिकाओं को बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। अब्दुल्ला आज़म खान ने फर्जी पासपोर्ट और दो पैन कार्ड के मामले में दो अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की थीं।
गत 1 जुलाई को इन दोनों याचिकाओं में बहस पूरी हो गई थी, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित कर लिया था। अब, न्यायालय ने अब्दुल्ला आज़म की याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि जनपद न्यायालय में ट्रायल जारी रहेगा। उनकी ओर से इन दोनों मुकदमों की ट्रायल कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
फर्जी पासपोर्ट की पृष्ठभूमि
फर्जी पासपोर्ट से संबंधित यह मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक आकाश सक्सेना द्वारा वर्ष 2019 में रामपुर जनपद के सिविल लाइन थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर से जुड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि गलत जन्मतिथि के आधार पर अब्दुल्ला आज़म ने फर्जी पासपोर्ट बनवाया।
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इस मामले में विवेचना के उपरांत पुलिस ने आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया था, और अब जनपद न्यायालय में मुकदमे का ट्रायल चल रहा है। अब्दुल्ला द्वारा उच्च न्यायालय में रिट दाखिल कर ट्रायल पर रोक की मांग की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया।
1993 बनाम 1990 : जानिए जन्मतिथि विवाद
हाईस्कूल की प्रमाणपत्र में अब्दुल्ला आज़म की जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 दर्ज है। इस आधार पर निर्वाचन के समय उनकी उम्र 24 वर्ष थी, जो कि चुनाव लड़ने की न्यूनतम अर्हता पूरी नहीं करती।
हालांकि, एक अन्य मुकदमे में उनकी माँ की ओर से दाखिल जवाब में जन्मतिथि 30 सितम्बर 1990 बताई गई थी। उन्होंने कहा कि अब्दुल्ला का जन्म लखनऊ के क्वींस मैरी अस्पताल में हुआ था और हाईस्कूल प्रमाणपत्र में जन्मतिथि गलती से दर्ज हुई थी।
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उसे ठीक कराने के लिए विभाग को प्रार्थना पत्र भी दिया गया, लेकिन समयसीमा समाप्त होने के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया। उस मुकदमे में भी हाईकोर्ट ने अब्दुल्ला आज़म के तर्कों को खारिज कर दिया था।
दो जन्म प्रमाण पत्र और मंत्री पद का दुरुपयोग
रामपुर जनपद के भाजपा नेता आकाश सक्सेना ने आज़म खान, अब्दुल्ला आज़म और तन्जीन फातिमा के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 420, 467 एवं 468 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप था कि जौहर विश्वविद्यालय में अनैतिक लाभ देने के लिए अब्दुल्ला का दो जन्म प्रमाणपत्र बनवाया गया, और इसमें मंत्री पद का दुरुपयोग किया गया।
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पहला जन्म प्रमाण पत्र 28 जून 2012 को नगर पालिका परिषद, रामपुर से जारी हुआ, जिसमें जन्म स्थान रामपुर दर्शाया गया।
दूसरा प्रमाण पत्र 21 जनवरी 2015 को नगर निगम, लखनऊ से जारी हुआ, जिसमें एक निजी अस्पताल का प्रमाणपत्र संलग्न है।
इन्हीं में से रामपुर वाले प्रमाणपत्र के आधार पर पासपोर्ट बनवाया गया।
याचिकाकर्ता ने सवाल उठाया है कि किसी एक व्यक्ति का दो जन्मस्थान कैसे हो सकता है..?
परवारिक पृष्ठभूमि और जवाबदेही
जिस व्यक्ति का यह प्रमाणपत्र बनवाया गया है, उसके पिता मंत्री और माँ प्रोफेसर रही हैं। ऐसे में यह तर्क कि “भूलवश ऐसा हो गया”- न्यायालय ने इसे स्वीकार नहीं किया।
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