जर्मनी ने हाल ही में तालिबान के साथ एक खास समझौते के तहत 81 अफगान लोगों को काबुल वापस भेजा। यह कदम यूरोप में बढ़ते प्रवासी संकट के बीच उठाया गया। दूसरी ओर, ब्रिटेन एक डेटा लीक की वजह से मुश्किल में है, जिसने हजारों अफगानों की जान खतरे में डाल दी। यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (ECHR) के दबाव के चलते ब्रिटेन पर इन लोगों को शरण देने की जिम्मेदारी बढ़ रही है।
जर्मनी की निर्वासन नीति
जर्मनी ने कतर की मदद से तालिबान के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत वह नियमित रूप से लोगों को वापस भेज सकता है। इस समझौते के तहत 81 अफगानों को, जिनमें कुछ हिंसक अपराधी भी थे, वापस भेजा गया। ECHR के नियम कहते हैं कि किसी को ऐसी जगह नहीं भेजा जा सकता जहां यातना का खतरा हो, लेकिन जर्मनी ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को पहले रखा। जर्मनी के कुछ नेता, जैसे फ्रेडरिक मर्ज़ और जेन्स स्पैन, ECHR से बाहर निकलने की बात कर रहे हैं ताकि देश अपनी सीमाओं पर पूरा कंट्रोल रख सके।
ब्रिटेन का डेटा लीक और ECHR का दबाव
ब्रिटेन में मामला उलझा हुआ है। 2022 में एक ब्रिटिश सैनिक की गलती से करीब 19,000 अफगानों का डेटा लीक हो गया, जो शरण के लिए आवेदन कर रहे थे। इस लीक ने तालिबान के लिए इन लोगों को निशाना बनाने का रास्ता खोल दिया। मानवाधिकार वकील ECHR के नियमों, जैसे जीवन का अधिकार (आर्टिकल 2) और यातना से सुरक्षा (आर्टिकल 3), के आधार पर ब्रिटेन पर दबाव डाल रहे हैं कि वह इन लोगों को शरण दे।
इसके चलते ब्रिटेन ने अप्रैल 2024 में एक नई योजना शुरू की, जिसके तहत अब तक 4,500 लोग (900 आवेदक और उनके 3,600 परिवारवाले) ब्रिटेन पहुंचे हैं। इस योजना का खर्च करीब 850 मिलियन पाउंड है, और कानूनी खर्चे इसे और बढ़ा सकते हैं।
कानूनी और सामाजिक चुनौतियां
ECHR के नियमों की वजह से ब्रिटेन पर दबाव है कि वह डेटा लीक में शामिल सभी लोगों को शरण दे, चाहे उनके दावे सही हों या नहीं। वकीलों का कहना है कि यह लीक तालिबान के बदले की वजह बन सकता है। लेकिन रक्षा मंत्रालय के लोग कहते हैं कि हर सही दावे के साथ 15 फर्जी आवेदन भी आ रहे हैं। ब्रिटेन में कई लोग और कुछ नेता मानते हैं कि ECHR देश की आजादी को कमजोर कर रहा है। वे चाहते हैं कि ब्रिटेन ECHR से बाहर निकले ताकि अपनी आव्रजन नीतियों को खुद तय कर सके।
जर्मनी ने सबसे पहले दिखाई थी उदारता
गौरतलब है कि सीरिया, यमन जैसे देशों में चल रहे अंदरूनी कलह के चलते वहां से जान बचाकर भाग रहे लोगों को शरण देने के लिए एंजेला मर्केल के शासनकाल के दौरान 2015 में सबसे पहले जर्मनी ने ही अपने दरवाजे खोले थे। उसके बाद उसका अनुसरण करते हुए यूरोप के कई देशों ने इन्हें शरण दी। लेकिन, बाद में ये अवैध शरणार्थी इन्हीं के लिए मुसीबत बन गए। अचानक से यूरोपीय देशों में अपराधों की संख्या बढ़ गई। वहां की डेमोग्राफी बदल गई।
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