आमतौर पर आस्था और विज्ञान दोनों मानव जीवन के दो छोर माने जाते हैं। कहा जाता है कि आस्था का विज्ञान से और विज्ञान का आस्था से कोई लेना देना नहीं होता; लेकिन यह सच नहीं है। ईश्वरीय आस्था हम सनातनियों की सबसे बड़ी शक्ति है और देश के विभिन्न चमत्कारी मंदिर हमारी इसी आस्था को पोषित और सुदृढ़ करते हैं। देश का ऐसा ही एक चमत्कारी मंदिर है कानपुर देहात का हजारों साल पुराना भगवान जगन्नाथ का मंदिर। इस मंदिर में क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था है। गौरतलब हो कि मानसून की सटीक भविष्यवाणी करने वाले इस मंदिर के चमत्कारों को देख वैज्ञानिक तक हैरान हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में घाटमपुर तहसील के बेहटा बुजुर्ग गांव में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर जल की बूंदों के माध्यम से बारिश की सटीक जानकारी देने के कारण पूरे जिले में “मानसून मंदिर” के नाम से प्रसिद्ध है।
मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोगों के अनुसार मानसून से लगभग एक सप्ताह पहले मंदिर के गुंबद से पानी की बूंदें सीधे भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा पर गिरने लगती हैं। अगर भगवान की प्रतिमा हल्की नमी लिए होती है तो यह उस वर्ष बारिश कम होने के संकेत होता है। अगर प्रतिमा पर हल्के जलबिंदु दिखाई देते हैं तो यह सामान्य बारिश का संकेत होता है। किन्तु अगर गुंबद से टपकने वाली जल बूंदों से देव प्रतिमा पूरी भीगी दिखायी दे तो यह उस वर्ष क्षेत्र में अच्छी बारिश होने का संकेत होता है। जानना दिलचस्प हो कि मौसम विभाग ने भी मंदिर की इन भविष्यवाणियों को सही माना है।
इसी वजह से देशभर के कई वैज्ञानिक इस रहस्य जानने के लिए यहां आ चुके हैं। इस मंदिर का दो बार निरीक्षण करने वाले चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक सुनील पांडेय के अनुसार पत्थर में नमी जमने से बूंदें बन जाती हैं, जिसे श्रद्धालु लोग मानसून का संकेत मानते हैं। लेकिन आज तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि आखिर ये बूंदे सिर्फ इसी मंदिर में क्यों बनती हैं। इसके पीछे का असली कारण क्या है, यह रहस्य आज तक सुलझ नहीं सका है। एक तरफ जहां वैज्ञानिक मंदिर के इस रहस्य को अपने नजरिये से समझने में जुटे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणों के लिए यह सब भगवान की महिमा है। बेहटा गांव के निवासी 76 वर्षीय रमानाथ की मानें तो वे कई वर्षो से मंदिर के इस अनोखे चमत्कार के साक्षी रहे हैं। इसी तरह गांव की ही मालती देवी बताती हैं कि भीषण गर्मी के बीच देव प्रतिमा पर जल की बूंदें देखना एक रहस्य जैसा लगता है। वे ही नहीं, उनके पूर्वज भी इन्हीं जल बिन्दुओं के आधार पर मानसून का अनुमान लगाया करते थे जो हमेशा सटीक रहता था। स्थानीय किसान आज भी इस मंदिर की बूंदों को देखकर फसलों की बुआई और कटाई की योजना बनाते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है पुराणकालीन मंदिर
इस मंदिर का गोलाकार गुंबद, 14 फीट मोटी दीवारें और 12 खंभों पर खड़ा विशाल ढांचा इसे ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। इसकी वास्तुकला सांची के बौद्ध स्तूप से मिलती-जुलती है। गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काले पत्थर से बनी दुर्लभ मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी बताते हैं कि मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ था। कालांतर में इस मंदिर का जीर्णोद्धार क्षेत्र के एक जमींदार ने कराया था। उनके अनुसार मंदिर परिसर सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मौर्य काल तक के अवशेष मिले हैं। मंदिर समिति ने प्रदेश सरकार व पुरातत्व विभाग से इनके संरक्षण की मांग की है। इस पौराणिक मंदिर में आज भी अर्द्ध सूर्य चिन्ह मौजूद हैं। प्राचीन समय में सूर्यवंशी राजा माथे पर अर्द्ध सूर्य तिलक धारण करते थे। राम जन्मभूमि मंदिर की खुदाई में भी अर्द्ध सूर्य चिन्ह का मिलना इस मंदिर की पौराणिकता को प्रमाणित करता है। मंदिर परिसर में स्थित राम कुंड तालाब त्रेतायुग का माना जाता है। किवदंती है कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद यहां आकर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। वे बताते हैं कि प्रतिवर्ष जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर आसाढ़ माह में यहां भी एक भव्य कलश यात्रा निकाली जाती है जिसमें बड़ी संख्या में क्षेत्र के श्रद्धालु भाग लेते हैं।
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