प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों में हमें यह सिखाते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, लेकिन डरने का नहीं, डटकर सामना करने का नाम है। हमें जीवन की कठिनाइयों से भागना नहीं है, बल्कि उनसे लड़ना सीखना है। हार मान लेना मनुष्य का धर्म नहीं है। यह मनुष्य जीवन बहुत ही अनमोल है। हमें यह सोचकर नहीं जीना चाहिए कि बस जैसे-तैसे दिन काट लें। नहीं, बल्कि यह समझकर जीना चाहिए कि हम परमात्मा के अंश हैं, हम अविनाशी आत्मा हैं। हमें भीतर से शक्तिशाली बनना है, निर्भीक बनना है।
जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें डरना नहीं है। हर कष्ट को, हर बाधा को एक अवसर की तरह देखना है। जैसे शेर दहाड़ता है, वैसे ही हमें भी जीवन के हर संघर्ष में दहाड़ मारकर आगे बढ़ना चाहिए। रो-रो कर, दुखी होकर, निराश होकर जीना मनुष्य जीवन का उद्देश्य नहीं है। जानवर भी रोते हैं, डरते हैं और अंत में मर जाते हैं। लेकिन हम तो इंसान हैं – और इंसान भी साधारण नहीं, हम भगवान के अंश हैं।
हमें याद रखना चाहिए कि जब तक हम भगवान से जुड़े रहेंगे, तब तक कोई भी शक्ति हमें हरा नहीं सकती। भगवान की भक्ति ही वो ताकत है जो हमें हर परिस्थिति में संभाल सकती है। लेकिन अगर हमने भगवान से नाता तोड़ दिया, तो फिर यह दुनिया हमें रौंद देगी। “उठो, जागो और समझो कि तुम कौन हो। तुम कमजोर नहीं, बल्कि शाश्वत, चेतन और आनंद से भरे हो। तुम्हारे अंदर वही आत्मा है जो परमात्मा की है। इसलिए डरना क्यों?”
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इसलिए जीवन में जो भी कठिनाइयाँ आएं, उनसे डरने की नहीं, उनसे लड़ने की ज़रूरत है। जब हम भगवान से जुड़ते हैं, तो हमें एक नई ऊर्जा मिलती है, एक नई दिशा मिलती है। फिर चाहे दुनिया में कितनी भी माया हो, कितनी भी भ्रम पैदा हो, हम उससे ऊपर उठ सकते हैं। लेकिन अगर हम माया में उलझ गए, तो यह माया हमें अपने पैरों तले रौंद देगी। इसलिए माया के पीछे नहीं भागना है, भगवान के पीछे भागना है। भगवान की भक्ति से ही हम इस माया पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए अब उठो, जागो और जीवन को समझो। प्रभु की भक्ति को अपना सहारा बनाओ और संसार की चुनौतियों को जीतने की शक्ति प्राप्त करो।
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