बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। गत दिनों ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें हिन्दू पुरुषों और महिलाओं को अगवा किया गया है, इनमें से अनेक का तो अभी तक अता—पता नहीं चल पाया है। ताजा घटना उस इस्लामी देश के खुलना जिले में घटी है। वहां खाद्य निरीक्षक सुशांत कुमार मजूमदार को नदी के घाट नंबर 4 से पुलिस के बाने में आए अपहरणकर्ता मजहबियों ने अगवा कर लिया था। हिन्दू समुदाय के जबरदस्त विरोध के बाद पुलिस हरकत में आई और लगभग पांच घंटे की खोज के बाद मजूमदार को छुड़ाया जा सका। उनके हाथ-पैर बंधे मिले। इस कांड में पाचं अपराधियों को पकड़ा गया है।
सुशांत के अपहरणकर्ताओं ने खुद को पुलिस वाला बताकर ‘पूछताछ’ के लिए साथ चलने को कहा। लेकिन जब उन्होंने सुशांत के हाथ पैर बांधे तो उन्हें शक हुआ। सुशांत को एक गुमनाम जगह ले जाया गया और उनके परिवार से फिरौती की मांग की गई। घटना के बाद, सुशांत कुमार की पत्नी माधबी रानी मजूमदार ने खुलना सदर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई। इस बीच स्थानीय हिन्दुओं ने आक्रोश जताते हुए अपराधियों को तुरंत पकड़ने की मांग की।
सुशांत की पत्नी की शिकायत के अनुसार, 4 नंबर घाट पर प्रभारी खाद्य निरीक्षक के रूप में कार्यरत सुशांत को गत रविवार शाम लगभग 7 बजे कुछ लोगों ने अगवा कर लिया, जिन्होंने खुद को पुलिस अधिकारी बताया था। कथित तौर पर उन्होंने सुशांत को हथकड़ी लगाई, उसके साथ मारपीट की और उसे जबरन एक बोट पर बैठाकर ले गए।
खुलना सदर पुलिस स्टेशन के प्रभारी के अनुसार, शिकायत मिलने के तुरंत बाद पुलिस ने खोज अभियान शुरू कर दिया था। पुलिस की कार्रवाई से घबराकर अपहरणकर्ताओं ने सुशांत को तेरोखड़ा उपजिले के अजगोरा गांव स्थित बीआरबी हाई स्कूल के मैदान में छोड़ दिया था।

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों की हाल की घटनाएं न केवल मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन को दर्शाती हैं, बल्कि देश की राजनीतिक अस्थिरता और मजहबी कट्टरता के खतरनाक मेल को भी उजागर करती हैं। खाद्य अधिकारी घोष का अपहरण और एक विवाहिता हिंदू महिला की गुमशुदगी इस संकट की गंभीरता दिखाती हैं कि वहां हिन्दुओं का निरंतर उत्पीड़न हो रहा है।

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति लंबे समय से संवेदनशील रही है। 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद से ही हिंदुओं को राजनीतिक अस्थिरता, मजहबी कट्टरता और सामाजिक भेदभाव का कमोबेश सामना करना पड़ा है। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के गठन के बाद हिंदुओं पर हमलों में तेजी आई है।
उस इस्लामी देश में लचर सत्ता तंत्र ने कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों जैसे जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम को फिर से हरकत में ला दिया है। इन संगठनों ने हिंदुओं को भारत समर्थक और आंतरिक दुश्मन मानते हुए उनके खिलाफ हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश की है।
खाद्य अधिकारी सुशांत मजूमदार का अपहरण बांग्लादेश में बड़े पद पर बैठे हिन्दुओं को भी खतरे में दिखाता है। हिंदू समुदाय के हितों के लिए आवाज उठाने वाले सुशांत कट्टरपंथियों को अपने एजेंडे के लिए खतरा मामूल देते हैं। हिन्दू विवाहिता महिलाओं को भी मजहबी उन्माद को शिकार बनाने की घटनाएं सामने आती रही हैं। हिन्दू महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और अपहरण की घटनाएं बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक भयावह वास्तविकता बन चुकी हैं। कई मामलों में पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है।
इन घटनाओं के अलावा, मंदिरों पर हमले, हिन्दू देवी—देवताओं की मूर्तियों की तोड़फोड़, हिंदू व्यवसायियों की हत्या और धार्मिक स्थलों में लूटपाट जैसी घटनाएं तो मानो आम हो चली हैं। पिछले दिनों ही वहां एक दुर्गा मंदिर को निशाना बनाया गया था। मंदिर की मूर्तियों तोड़ी गई थीं और सामान चुरा लिया गया था।
भारत ने हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे व्यवस्थित उत्पीड़न पर लगातार चिंता जताई है। विदेश मंत्रालय ने बभेश चंद्र रॉय की हत्या को इस पैटर्न का हिस्सा बताते हुए वहां की अंतरिम सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए भारतीय मीडिया पर चीजों को बढ़ा—चढ़ाकर बताने का आरोप लगाया था।

इसमें संदेह नहीं है कि उस इस्लामी देश में पीड़ियों से बसे हिंदू समुदाय में भय और असुरक्षा की भावना गहराती जा रही है। कई परिवार अपने घर छोड़ने को मजबूर हैं, जबकि अन्य सार्वजनिक रूप से अपनी धार्मिक पहचान को छुपाने की कोशिश करते हैं। यह स्थिति न केवल पांथिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि वहां के सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करती है।
अंतरिम सरकार में मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस शायद ऐसी घटनाओं पर पर्दा डालने के लिए ‘आम कूटनीति’ के तहत भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमों का टोकरा भेज रहे हैं। लेकिन अगर वे मोदी को ठीक ठीक पहचानते तो समझ जाते कि ऐसे दिखावों की बजाय हिन्दुओं की सुरक्षा के ठोस कदम उठाने से ही भारत संतुष्ट होगा, बांग्लादेशी आमों की मिठास उसे कर्तव्य से डिगा नहीं पाएगी।
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